एक्सप्लोरर

क्या जम्मू-कश्मीर में 31 साल पहले ऐसे ही हालात थे?

21 अगस्त, 1989. जम्मू-कश्मीर के इतिहास की वो तारीख है, जब जम्मू-कश्मीर में पहली राजनीतिक हत्या हुई. मरने वाले थे मोहम्मद यूसुफ हलवाई, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के ब्लॉक प्रेसिडेंट थे. उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने आतंकियों की बात मानने से इन्कार कर दिया था. तब 15 अगस्त, 1989 को आतंकियों ने पूरे जम्मू-कश्मीर में ब्लैक आउट का आदेश दिया था, लेकिन मोहम्मद यूसुफ हलवाई ने आतंकियों का आदेश मानने से इन्कार कर दिया था. नतीजा हुआ कि आतंकियों ने हलवाई की हत्या कर दी. इसके बाद 14 सितंबर को हब्बा कदल में घाटी के भाजपा अध्यक्ष और वकील टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई. 4 नवंबर को मकबूल भट्ट को फांसी की सजा देने वाले जस्टिस नीलकांत गंजू की हत्या हो गई. इन सभी हत्याओं की जिम्मेदारी ली जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट यानी कि जेकेएलएफ ने और कहा कि हत्याओं की वजह धार्मिक नहीं, राजनीतिक हैं.

जेकेएलएफ 1987 में जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में हुई धांधली का नतीजा था, जिसे बनाने वाले थे हामिद शेख, अशफाक माजिद वानी, जावेद अहमद मीर और यासीन मलिक. यासीन मलिक ने 1987 के विधानसभा चुनाव में श्रीनगर की सभी विधानसभा सीटों पर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के लिए प्रचार किया था. लेकिन चुनावी हार के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. रिहाई के बाद वो पाक अधिकृत कश्मीर में चला गया और लौटा तो उसने जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट जैसा अलगाववादी संगठन खड़ा कर दिया. अशफाक भी 1987 के चुनाव के दौरान गिरफ्तार हुआ था और नौ महीने जेल में रहने के बाद पैरोल पर रिहा हुआ था तो पाकिस्तान चला गया था. वो भी जेकेएलएफ में शामिल हो गया था.

जेकेएलएफ जम्मू-कश्मीर का ऐसा अलगाववादी संगठन था, जो कश्मीर की आजादी की हिमायत करता था और कश्मीर के भारत और पाकिस्तान दोनों में विलय के खिलाफ था. इसका आतंक इतना था कि इसने उस वक्त देश के गृहमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का भी अपहरण कर लिया था. वो वारदात 2 दिसंबर, 1989 की है, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे और भारतीय जनता पार्टी का इस सरकार को समर्थन हासिल था. आतंकी चाहते थे कि रूबिया की रिहाई के बदले सरकार पांच आतंकियों को रिहा करे, लेकिन तब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला इसके लिए तैयार नहीं थे. फिर केंद्रीय मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और आरिफ मोहम्मद खान श्रीनगर पहुंचे और फारुख अब्दुल्ला को धमकी दी कि अगर आतंकियों को रिहा करके रूबिया को नहीं छुड़ाया जाएगा तो केंद्र अब्दुल्ला सरकार को बर्खास्त कर देगा.

मजबूरन पांच आतंकियों हामिद शेख, शेर खान, नूर मोहम्मद, मोहम्मद अल्ताफ और जावेद अहमद को रिहा किया गया. हालांकि इसके बारे में तब के जम्मू-कश्मीर के आईबी चीफ रहे दुलत ने कहा था कि बिना आतंकियों को रिहा किए भी रूबिया को छुड़ाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आतंकियों ने बंदर घुड़की दी और केंद्र सरकार ने डरकर आतंकियों को रिहा कर दिया. इससे आतंकियों का मनोबल बढ़ गया और वो हर दिन किसी न किसी की हत्या करने लगे. मुख्यमंत्री के घर के पास भी बमबारी और फायरिंग होने लगी. सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया जाने लगा और हालात इतने खराब हो गए कि इंटेलिजेंस के अधिकारियों को छोड़कर शायद ही कहीं कोई केंद्रीय कर्मचारी बचा था.

इस बीच पड़ोसी अफगानिस्तान में भी सोवियत यूनियन की सेनाओं ने अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया था और खुद बाहर निकल गए थे. एक कट्टरपंथी तबके ने इसे इस्लाम की जीत करार दिया था, जिसका सीधा असर कश्मीर पर भी दिख रहा था. नारे लगते थे कि जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है. वहीं पाकिस्तान की ओर से भी कश्मीर में सुगबुगाहट बढ़ गई. जेकेएलएफ का कश्मीर में दखल तो था, लेकिन वो पाकिस्तान परस्त न होकर जम्मू-कश्मीर की आजादी की मांग कर रहा था. इससे नाराज पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन को समर्थन करना शुरू कर दिया था. हालांकि तब तक हिज्बुल कश्मीर में स्थापित नहीं हो पाया था, लेकिन इसके लड़ाकों को मुहम्मद अहसान डार और सैयद सलाहुद्दीन को आईएसआई ने सपोर्ट करना शुरू कर दिया था.

ऐसी परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर की आम जनता दो पाटों में पिस रही थी. एक था जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और दूसरा था बन रहा हिजबुल मुजाहिदीन. इसके बाद 4 जनवरी, 1990 को उर्दू अखबार आफताब में एक खबर छपी. ये खबर हिज्बुल मुजाहिदीन के हवाले से छपी थी, जिसमें कहा गया था कि सभी कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ दें, वरना अंजाम बुरा होगा. चौराहों और मस्जिदों के इसका ऐलान किया जाने लगा, जिससे कश्मीरी पंडितों में दहशत भर गई. कुछ लोगों ने डर की वजह से घाटी छोड़ भी दी, लेकिन अधिकांश कश्मीरी पंडित वहीं रह गए. लेकिन इस दहशत को और बढ़ाने के लिए जेकेएलएफ और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने हिंदू पंडितों के घरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं सामने आने लगीं. घरों को आग लगाया जाने लगा. हाथों में एके 47 लेकर घरों में घुसे आतंकी लोगों की घड़ियों को पाकिस्तान की घड़ी के साथ मिलाने लगे. दफ्तरों और दुकानों को हरे रंग में रंगा जाने लगा, जो इस्लामिक सत्ता का प्रतीक था.

इस बीच केंद्र की ओर से जगमोहन को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा गया. जगमोहन इमरजेंसी के दौरान दिल्ली की मुस्लिम बस्तियों को खाली करवाने के लिए बुलडोजर चलाकर मुस्लिमों में कुख्यात हो चुके थे. 18 जनवरी की रात को ही कश्मीरी पंडितों के घर के बाहर पोस्टर चस्पा कर दिए गए, जिसमें पंडितों को घाटी छोड़कर जाने के लिए कह दिया गया. 19 जनवरी को जगमोहन को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का कार्यभार संभालना था. उस दिन सुबह से ही मस्जिदों से एलान होने लगा कि यहां क्या चलेगा, निजाम ए मुस्तफा...कश्मीर में रहना है तो अल्लाहू अकबर कहना है...असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान यानी कि हमें पाकिस्‍तान भी चाहिए और कश्मीरी पंडितों की औरतें भी, कश्मीरी पंडित नहीं चाहिए. इन नारों और तकरीरों ने कश्मीरी पंडितों की बची-खुची उम्मीदों को भी खत्म कर दिया. वो अपना सामान बांधकर घाटी छोड़ने की तैयारी करने लगे.

और उसी दिन जगमोहन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बन गए. जगमोहन की शपथ के साथ ही अर्धसैनिक बलों ने घरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी. रात होते-होते सीआरपीएफ के डीजी जोगिंदर सिंह ने करीब 300 युवाओं को शक के आधार पर गिरफ्तार कर लिया. इसका प्रतिरोध तुरंत ही दिख गया, जब करीब-करीब पूरा श्रीनगर अर्धसैनिक बलों के इस ऐक्शन के विरोध में सड़क पर उतर आया. इसे रोकने के लिए 21 जनवरी को श्रीनगर में कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन लोग नहीं माने. 21 जनवरी को फिर पूरा श्रीनगर सड़क पर उतर आया. बार-बार मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों के घाटी छोड़ने का आदेश दिया जाने लगा और सुरक्षाबलों के खिलाफ नारेबाजी होने लगी. इस बार भीड़ को रोकने के लिए अर्धसैनिक बलों ने फायरिंग कर दी. आधिकारिक तौर पर 35 और अनाधिकारिक तौर पर 50 से 100 लोग मारे गए. इसने लोगों को और भड़का दिया.

कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने के लिए सामान तो बांध ही लिया था, सड़कों पर उतरे जत्थों ने उनकी दहशत और भी बढ़ा दी. नतीजा ये हुआ कि 19-20 जनवरी, 1990 को करीब 60 हजार कश्मीरी पंडितों के परिवारों ने घाटी छोड़ दी. इसके बाद भी जो घाटी में बचे रहे, आतंकियों ने उनको निशाना बनाना शुरू कर दिया. 25 जनवरी 1990 को आतंकियों ने इंडियन एयरफोर्स के जवानों को निशाना बनाया. चार जवान स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना, कॉर्पोरल डीबी सिंह, कॉर्पोरल उदय शंकर और एयरमैन आजाद अहमद आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए. 10 दूसरे जवान घायल हो गए. 2 फरवरी, 1990 को एक हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता सतीश टिक्कू की श्रीनगर के हब्बा कदल में हत्या कर दी गई. श्रीनगर दूरदर्शन के स्टेशन डायरेक्टर लासा कौल की 13 फरवरी, 1990 को हत्या कर दी गई. 29 अप्रैल, 1990 को कश्मीर के मशहूर कवि सर्वानंद कौल प्रेमी की हत्या कर दी गई. 4 जून, 1990 को कश्मीरी हिंदू शिक्षिका की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई. आतंकियों ने उनकी बॉडी को दो टुकड़ों में काट दिया था. दिसंबर, 1992 में एक ट्रेड यूनियन लीडर हृदय नाथ वांचू की आतंकियों ने हत्या कर दी. ये तो सिर्फ चंद नाम हैं, जो जेहन में हैं. बाकी सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं, जहां कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और सरकारी अधिकारियों को मौत के घाट उतारा गया. ऐसी वारदात ने बचे-खुचे लोगों के हौसले को भी तोड़ दिया और वो भी पलायन के लिए मजबूर हो गए.

कश्मीरी पंडितों के पलायन का ये दौर अलग-अलग आतंकी वारदात की वजह से 1997 तक जारी रहा. और आंकड़े कहते हैं कि करीब साढ़े छह से सात लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घर बार छोड़कर दूसरी जगहों पर शरण लेनी पड़ी. करीब 31 साल बाद एक बार फिर से आतंकियों ने वैसा ही माहौल बनाने की कोशिश में अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी है. इस बार उनके निशाने पर कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ प्रवासी भी हैं. और इसका असर भी दिखने लगा है कि प्रवासी अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर जम्मू-कश्मीर से बाहर निकल रहे हैं, अपने घरों को लौट रहे हैं.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
Wed Feb 19, 12:38 pm
नई दिल्ली
25.8°
बारिश: 0 mm    ह्यूमिडिटी: 30%   हवा: W 10.2 km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

27 महीने, 31 महीने और 52 दिन... दिल्ली में BJP नहीं दोहराएगी 27 साल पुरानी गलती
27 महीने, 31 महीने और 52 दिन... दिल्ली में BJP नहीं दोहराएगी 27 साल पुरानी गलती
इन्हीं चार दावेदारों में से एक बनेगा दिल्ली का CM, पंजाब चुनाव को लेकर ये नाम भी लिस्ट में शुमार
इन्हीं चार दावेदारों में से एक बनेगा दिल्ली का CM, पंजाब चुनाव को लेकर ये नाम भी लिस्ट में शुमार
चैंपियंस ट्रॉफी से पहले शुभमन गिल ने छीनी बाबर आजम की बादशाहत, ODI में नंबर 1 बल्लेबाज बने 'प्रिंस'
चैंपियंस ट्रॉफी से पहले शुभमन गिल ने छीनी बाबर आजम की बादशाहत, ODI में नंबर 1 बल्लेबाज बने 'प्रिंस'
'संगम का पानी पीने लायक', CM योगी ने फेकल बैक्टीरिया रिपोर्ट को बदनाम करने वाला प्रचार बताया
'संगम का पानी पीने लायक', CM योगी ने फेकल बैक्टीरिया रिपोर्ट को बदनाम करने वाला प्रचार बताया
ABP Premium

वीडियोज

Delhi CM Name Announcement: आज किसके हाथों सौंपी जाएगी दिल्ली की कमान? | BJP | ABP NewsDelhi New CM Announcement News : BJP कार्यकर्ताओं ने किसे बताया दिल्ली का मुख्यमंत्री ? ABP NEWSBreaking News: जल्द ही दिल्ली के नए सीएम का एलान संभव | Delhi New CM | BJP | ABP NewsDelhi CM Name Announcement: इन 4 चेहरों में से एक बनेगा दिल्ली का नया मुख्यमंत्री? | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
27 महीने, 31 महीने और 52 दिन... दिल्ली में BJP नहीं दोहराएगी 27 साल पुरानी गलती
27 महीने, 31 महीने और 52 दिन... दिल्ली में BJP नहीं दोहराएगी 27 साल पुरानी गलती
इन्हीं चार दावेदारों में से एक बनेगा दिल्ली का CM, पंजाब चुनाव को लेकर ये नाम भी लिस्ट में शुमार
इन्हीं चार दावेदारों में से एक बनेगा दिल्ली का CM, पंजाब चुनाव को लेकर ये नाम भी लिस्ट में शुमार
चैंपियंस ट्रॉफी से पहले शुभमन गिल ने छीनी बाबर आजम की बादशाहत, ODI में नंबर 1 बल्लेबाज बने 'प्रिंस'
चैंपियंस ट्रॉफी से पहले शुभमन गिल ने छीनी बाबर आजम की बादशाहत, ODI में नंबर 1 बल्लेबाज बने 'प्रिंस'
'संगम का पानी पीने लायक', CM योगी ने फेकल बैक्टीरिया रिपोर्ट को बदनाम करने वाला प्रचार बताया
'संगम का पानी पीने लायक', CM योगी ने फेकल बैक्टीरिया रिपोर्ट को बदनाम करने वाला प्रचार बताया
Sanam Teri Kasam 2 में मावरा होकेन को रिप्लेस करेंगी श्रद्धा कपूर? लोग बोले- 'हम नहीं देखने जाएंगे ओवरएक्टिंग की दुकान'
'सनम तेरी कसम 2' में मावरा होकेन को रिप्लेस करेंगी श्रद्धा कपूर?
Opinion: दरक रही है सत्य की नींव पर खड़ी आततायी, आतंक और अश्लीलता की प्राचीर
Opinion: दरक रही है सत्य की नींव पर खड़ी आततायी, आतंक और अश्लीलता की प्राचीर
Delhi CM Oath Ceremony: दिल्ली के मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में कौन-कौन होगा चीफ गेस्ट? सामने आई लिस्ट
दिल्ली के मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में कौन-कौन होगा चीफ गेस्ट? सामने आई लिस्ट
LIC के इस पेंशन प्लान में एक बार लगाएं पैसा, हर महीने आएगी पेंशन
LIC के इस पेंशन प्लान में एक बार लगाएं पैसा, हर महीने आएगी पेंशन
Embed widget

We use cookies to improve your experience, analyze traffic, and personalize content. By clicking "Allow All Cookies", you agree to our use of cookies.