क्या आप जानते हैं कि आपके जिले में पंचायत के चुनाव कब हुए थे और उसका अध्यक्ष कौन है और अब अगला चुनाव कब होगा? इस सवाल का जवाब तलाशेंगे, तो अधिकांश लोग "ना" में ही अपना जवाब देंगे. लेकिन इसी पंचायत का चुनाव अब राजनीतिक लिहाज़ से हाई प्रोफाइल बनता दिख रहा है. चूंकि मामला पश्चिम बंगाल का है जहां बीजेपी अपनी गिद्ध निगाह लगाए बैठी है. इसलिये उसने इन चुनावों को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए ठीक वैसी ही ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है जो आमतौर पर विधानसभा चुनाव के वक़्त ही देखी जाती है. 


पंचायत के चुनाव में शामिल होने वाले सारे मतदाता ग्रामीण इलाकों से ही होते हैं इसलिये बीजेपी का मकसद है कि बंगाल की शेरनी कहलाने वाली ममता बनर्जी को अगर इस जमीन पर ही पटखनी दे दी तो ये 2024 के लिए अपनी सियासी ताकत को मजबूत करने का सबसे सुनहरा मौका होगा. हालांकि बीजेपी किस हद तक ये मौका अपने हाथ में लाने में कामयाब होगी ये तो बंगाल के गांवों में रहने वाले लोग ही तय करेंगे. लेकिन ये तो तय है कि अगले कुछ महीनों में होने वाले इस चुनाव को लेकर बीजेपी नेतृत्व जरूरत से ज्यादा ही गंभीर दिखाई दे रहा है. इसीलिये ऐसा शायद पहली बार होगा कि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह इन चुनावों के दौरान रैलियां करते हुए नजर आएंगे.


लेकिन ऐसा नहीं है कि सियासत के हर मौसम के थपेड़ों की मार खाकर रायटर्स बिल्डिंग में बैठने वाली ममता को ये अहसास ही न हो कि बीजेपी उन्हें इस चुनाव में निपटाने की कितनी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही है. दरअसल, बंगाल में इन पंचायत चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर माना जा रहा है. इसलिये बीजेपी का मुकाबला करने के लिये ममता कुछ ज्यादा ही सचेत हैं और उसके मुताबिक ही वे अपनी सियासी रणनीति पर आगे बढ़ रही है.


बंगाल की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इन पंचायत चुनाव के प्रचार के लिए बीजेपी के दिग्गज़ नेता अगर मैदान में आते हैं तो जाहिर है कि वे इसे आगामी लोकसभा चुनाव के एक टेस्ट-केस के रूप में देखते हुए इसे इतना हाई प्रोफाइल बनाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. पहला, तो ये कि इससे ममता और उनकी पार्टी के पूरे काडर पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा और दूसरा, इस बहाने गांवों में बीजेपी को अपनी जमीन मजबूत करने का सबसे बेहतर मौका मिल रहा है. वो इसलिए कि ग्रामीण इलाकों में आज जो काडर टीएमसी के पास है वो 12 साल पहले तक लेफ्ट फ्रंट का हुआ करता था. 


लिहाजा, बीजेपी ममता के इस काडर में सेंध लगाने में तो पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त से ही जुटी हुई है. लेकिन इस बार उसका सारा फोकस ही इसी पर है. हालांकि इस हकीकत से ममता अनजान भी नहीं है और ये कहना भी गलत होगा कि वे इससे बेफिक्र हो चुकी हैं. अपना चुनाव हारने लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भी बंगाल में ममता का जादू कितना बरकरार है इसका फैसला लेने का हक तो वहां की जनता को ही है.


खादी  की सफेद साड़ी और पैरों में हवाई चप्पल पहनने वाली ममता पर बेशक ही भ्रस्टाचार का एक भी दाग न लगा हो लेकिन परिवार के क़रीबियों और पार्टी नेताओं पर लगे इस दाग को मिटाने के लिए वे जो दलीलें देती रही हैं वो बंगाल की जनता के गले इतनी आसानी से नहीं उतर रही हैं. इसीलिये बीजेपी ने इस चुनाव में भी उनकी सरकार के भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए उन्हें बैकफुट पर लाने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हुए घोटालों को लेकर बीजेपी नेताओं ने ममता बनर्जी के खिलाफ राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा है. याद रहे कि इस योजना के तहत ग्रामीण आबादी को ही सबसे ज्यादा लाभ मिलना था.


लेकिन ममता भी कहां खामोश बैठने वाली हैं. उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर आउटरीच कार्यक्रम की घोषणा की है जिसके तहत ममता बनर्जी सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं को उजागर करने के लिए पार्टी कार्यकर्ता राज्य भर में प्रचार करेंगे. इसे दीदीर सुरक्षा कवच यानी  दीदी की सुरक्षा कवच कार्यक्रम का नाम दिया गया है. इसे लोगों के लिए ममता सरकार की कल्याणकारी छतरी के रूप में रेखांकित करते हुए- 11 जनवरी को लॉन्च किया जाएगा और पार्टी के करीब 3.5 लाख कार्यकर्ता लगभग दो करोड़ घरों (राज्य की 10 करोड़ आबादी को कवर करते हुए) का दौरा करेंगे. यानी पंचायत चुनाव आने से पहले के दो महीनों में वे इस कवायद को पूरी करेंगे.


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