(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
पश्चिम बंगाल चुनावः ममता बनाम मोदी में दूसरे चरण के बाद बंगाल किसका
अभी तो सिर्फ दो चरण हुए हैं. साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि छह अप्रैल को असम, तमिलनाडु केरल पुडुचेरी का पूरा चुनाव निपट चुका होगा तब सिर्फ बंगाल बचेगा. तब आमने सामने अगले पांच चरणों में ममता मोदी होंगे. वह दौर तय करेगा कि बंगाल में परिवर्तन होता है या यथास्थिति बहाल रहती है.
बंगाल में दूसरे चरण का मतदान भी पूरा हो चुका है. तीस सीटों पर. कुल मिलाकर साठ सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं लेकिन अभी 234 सीटों पर वोट डाले जाने बाकी हैं. लिहाजा क्या साठ सीटों के आधार पर रुझान का आकलन किया जा सकता है. क्या कोई अंदाजा लगाया जा सकता है. दो अंदाजे तो लगाए ही जा सकते हैं.
पहला अंदाजा-
बंगाल में चुनाव ममता बनाम मोदी बन कर रह गया है. दोनों छवि की लडाई लड़ रहे हैं. अपनी अपनी छवि चमकाने की जगह दूसरे की छवि मैली करने की कोशिशें हो रही हैं. हमारे यहां कहा जाता है कि चुनाव 80 फीसद छवि के नाम पर जीते जाते हैं. विकास का काम, तैयारियां, रणनीति और नारे आदि बीस फीसद में आते हैं. यह बात मुझे बीजेपी के बड़े नेता प्रमोद महाजन ने 2004 के लोकसभा चुनाव के समय एक मुलाकात के दौरान कही थी.
वैसे देखा जाए तो ममता को बेगम, खाला, फूफी घोषित करने की कोशिश बीजेपी करती रही हैं. यानि हिंदु विरोधी छवि. लेकिन ममता दुर्गा मंत्र का जाप, चंडी पाठ और काली पूजा से लेकर शांडिल्य गोत्र का हवाला देकर इस का तोड़ निकालती रही है.
ममता खुद को महिला मसीहा बताती रही है. खुद को अकेली अबला नारी बताती रही है जिसके पीछे मोदी और बीजेपी धनबल, बाहुबल, चुनाव आयोग बल के सहारे पड़ी है. यानि ममता विक्टिम कार्ड खेल रही हैं और सहानुभूति पाने के फेर में है. ऐसी छवि महिला वोटर के दिल को कितना पसीजेंगी यह देखना दिलचस्प रहेगा लेकिन हमारे यहां वोटर बहुत भावुक होता है. खासतौर से महिलाएं. यह बात किसी को भूलनी नहीं चाहिए.
अब इस भावुकता पर मोदी सरकार के महिला विकास के लिए किए गये काम भारी पड़ेंगे. ऐसा बीजेपी को लग रहा है. उज्जवला में गैस सिलेंडर दिए, आवास योजना के तहत घर दिए, घर घर शौचालय बनवाया, उजाला के तहत बिजली पहुंचाई, जन धन योजना के तहत बैंक खाता खुलवाया और उसमें पैसे भी डलवाए. उस पर संकल्प पत्र के ढेरों वायदे. तो कुल मिलाकर छवि चमकाने या छवि मालिन्य करने के खेल में भी कांटे का मुकाबला चल रहा है.
दूसरा अंदाजा-
दो चरणों का चुनाव जिस गरमा-गरमी में जिस हाई पिच पर लड़ा जा रहा है उसमें ममता मोदी के अलावा किसी अन्य की न तो जगह बचती है और न ही जरुरत. शायद वोटर भी दो खेमों में ही तेजी से बंटता नजर आ रहा है. अब इसका फायदा किसे मिलेगा यह कहना मुश्किल है.
अगर लेफ्ट महाजोत तेजी से सिकुड़ता है तो उसका सीधे सीधे फायदा बीजेपी को मिलना चाहिए. क्योंकि एंटी ममता वोट के बंटने की आशंका कमजोर पड़ती है. अगर महाजोत जोरदार ढंग से चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा होता तो एंटी ममता वोट का कुछ हिस्सा अपने साथ ले जा रहा होता जिसका नुकसान बीजेपी को होता. लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. लेकिन ममता को भी मुस्लिम बहुल इलाकों में इस सीधे मुकाबले का फायदा हो सकता है.
बंगाल में सवा सौ के लगभग सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट बीस फीसद से ज्यादा है. जाहिर है कि अगर महाजोत कहीं नहीं है तो इसका मतलब यही है कि फुरफुरा शरीफ भी कहीं नहीं है. अगर यह दोनों कहीं नहीं है तो पूरा का पूरा मुस्लिम वोट सीधे सीधे ममता की झोली में गिर रहा है.
आखिर पिछले विधानसभा चुनाव में ऐसी 125 सीटों में से 98 सीटें ममता ने जीती थी. 2006 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट ने ऐसी 125 सीटों में से 102 सीटों पर कब्जा किया था. तब लेफ्ट को 294 सीटों में से 230 के आसपास सीटे मिली थी. ममता को पिछले विधानसभा चुनाव में 211 सीटें मिली थी यानि अगर मुस्लिम इलाकों में क्लीन स्वीप करते हैं तो आपकी सीटें 200 पार पहुंचती हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस किताब समीक्षा से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)