पश्चिम बंगाल के आरजी कर अस्पताल की 31 वर्षीय जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर के मामले में निचली अदालत ने फैसला सुनाते हुए उसे दोषी माना और उम्रकैद की सजा दी. कोर्ट ने इसे जधन्यतम अपराध की श्रेणी में नहीं माना है और फांसी की सजा देने से इनकार किया. दरअसल,  ये हमारे समाज के लिए एक बहुत बड़ी घटना थी, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. पूरा समाज इस घटना से बहुत शोक में डूब था. 


ऐसे में जिस तरह का फैसला सुनिया गया है, ये निश्चित तौर पर पूरी न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास को बढ़ाता है. इतने कम दिनों में इतना सख्त निर्णय अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि जैसी हमारी न्यायिक व्यवस्था है, उसमें दंड देने में काफी समय लगता है.


चूंकि इस केस में इतना जल्दी दंड दिया गया है, ये न्यायिक व्यवस्था की सक्रियता को बताता है. दूसरी तरफ, जिसने वारदात को अंजाम दिया है, उसे काफी बड़ा दंड मिला है तो वहीं पीड़िता जो अब इस दुनिया में नहीं रही, उसके परिवारवालों के जख्म पर काफी हद तक इस फैसले से मरहम भी लगा है. हालांकि, इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है. 


त्वरित फैसले से बढ़ा विश्वास


यानी, ये कहा जा सकता है कि कोर्ट का एक अच्छा फैसला है. जिस तरह से सभी साक्ष्यों को एकत्रित करके कोर्ट के सामने रखा गया, ये  एक बहुत बड़ा प्रयास था और बहुत बड़ा निर्णय भी था. पूरा देश चाहता था कि जिसने अपराध किया है उसको सजा दी जाए और ज्यादा से ज्यादा सजा दी जाए ताकि उस तरह का व्यक्ति कोई नया अपराध आगे से  ना करें.




हाई प्रोफाइल केस में बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता के तहत) आने के बाद ये पहली ही सजा होगी. चूंकि, बीएनएस के जितने भी मामले हैं, अभी उसमें कोई निर्णय नहीं आया है. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) जब से लागू किया गया है, उसके बाद से ये पहला बड़ा इस तरह से फैसले सुनाया गया है. दरअसल, रेप के मामले में कोर्ट का इतनी जल्दी फैसला नहीं आ पाता है. जो भी हमारे पास उसके तथ्य है उसे  तथ्य के आधार पर मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि दोषी को अच्छे तरीके से सजा मिली है और कड़ी से कड़ी धाराओं में सजा मिली है.


जहां तक सजी की बात की जाए तो पहले में और अब में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं है. जब अपराध को जघन्यतम श्रेणा का माना जाता है तो उसमें मृत्युदंड की सजा दी जाती है. जिस अपराध को जघन्यतम नहीं माना जाता है, उसमें फांसी की नहीं बल्कि आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है.


साक्ष्य के आधार पर फैसले


ये साक्ष्य के आधार पर तय किया जाता है और उसमें अगर सीधी संलिप्तता होती है तो निश्चित रुप से उसे अधिकतम सजा अदालत की तरफ से दी जाती है. पहले उम्रकैद का मतलब 14 साल माना जाता था, लेकिन अब उसकी परिभाषा बदल गई है. अब उम्रकैद का मतलब कोर्ट ने कहा है कि biological life of a person.
उदाहरण के लिए कोई भी शख्स अगर किसी का कत्ल करता है तो उसमें तीन तरह की सजा दी जाती है. 10 साल की सजा भी दी जाती है, उम्रकैद भी मुकर्रर की जाती है और फांसी की सजा भी सुनाई जाती है. ये सबकुछ साक्ष्य से तय होता है.




जहां तक बंगाल रेप केस में आए फैसले से समाज में संदेश की बात की जाए तो इसमें सजा आजीवन कारावास की दी गई है, जो पर्याप्त है. इसमें वो बाहर जेल से नहीं निकल पाएगा. इसे कड़ी सजा माना जा सकता है और इससे कड़ा संदेश भी गया है. अगर से 10 या 15 साल की सजा दी जाती तो फिर वे जेल जाकर बाहर आ सकता था और दोबारा इस तरह के वारदात को अंजाम दे देता. इस केस में उसे पूरा जीवन जेल के अंदर बिताना होगा.  


अपराध पर न हो राजनीति


इस सजा का दूसरा पहलू ये है कि फैसले पर कभी भी राजनीति नहीं होनी चाहिए. अगर कोई अपराधी है तो उसी परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है और उसके लिए जो भी प्रयत्न  हो, उसे किया जाना चाहिए. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अगर कोलकाता रेप केस में फांसी की मांग की है तो ये विशुद्ध रुप से राजनीति है.


जिसे ये सजा दी गई है वो निश्चित रुप से अपील में जाएगा. ऊपर अदालत इस फैसले को पलट भी सकती है या फिर फांसी की सजा भी दी जा सकती है. ये एक अपना अलग सोचने का तरीका है, लेकिन निश्चित तौर पर जिसे सजा मिली है, वो पहले उच्च न्यायलय और उसके बाद फिर उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे.


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