पश्चिम बंगाल: राज्यपाल धनखड़ ने आखिर क्यों बोला कि "ये राज्य ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है" ?
महाराष्ट्र (Maharashtra) में जो सियासी खेल होना था, वो हो गया. लेकिन अब जरा नज़र दौड़ाइए, उस पश्चिम बंगाल (West Bengal) पर जहां की बहुसंख्यक जनता अपनी मुख्यमंत्री को "शेरनी" की पदवी देती है. लेकिन वहीं के राज्यपाल (Governor) जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने बुधवार को ये बयान देकर सियासी भूचाल ला दिया है कि समूचा बंगाल इस वक़्त एक ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है और वहां लोकतंत्र खत्म हो चुका है.
इस बयान की गंभीरता और उसके पीछे छुपी गहराई को समझना इसलिए जरुरी बन जाता है क्योंकि पिछले कई दशकों में किसी भी राज्यपाल ने सार्वजनिक तौर पर और खासकर किसी मीडिया के मंच से अपनी राज्य सरकार को इस अंदाज में नहीं लताड़ा होगा. सब जानते हैं कि धनखड़ के राज्यपाल नियुक्त होते ही सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने उनके फैसलों पर सवाल उठाने शुरु कर दिए थे. वे तो सार्वजनिक तौर पर ये आरोप भी लगा चुकी हैं कि राज्यपाल किसी खास पार्टी के नेता के तौर पर बर्ताव कर रहे हैं. उसके बाद से ही दोनों के बीच छत्तीस का ऐसा आंकड़ा बन गया, जो पहले लोगों ने न कभी सुना और न ही देखा होगा.
राज्यपाल के बयान के पीछे की सियासत
लेकिन राज्यपाल धनखड़ के दिए ताजा बयान की गंभीरता और उसके पीछे छुपी सियासत को भी समझने की जरुरत है. उन्होंने कहा है कि " राज्य में एक तरह की अराजकता है. पश्चिम बंगाल एक ज्वालामुखी पर है और बेहद गंभीर स्थिति में है. वहां अब लोकतंत्र नहीं बचा है."
कोई राज्यपाल चुनी हुई सरकार के लिए जब इतनी तल्ख़ भाषा का इस्तेमाल किसी सार्वजनिक मंच से करता है, तो उसका मतलब यही निकलता है कि वे केंद्र सरकार के जरिए देश के राष्ट्रपति को ये संदेश दे रहे हैं कि राज्य के हालात इतने बेकाबू हो चुके हैं कि वहां राष्ट्रपति शासन लगाने के सिवा कोई और चारा ही नहीं बचा है. याद रखने वाली बात है कि राज्यपाल द्वारा भेजी गई सिफारिश मिलने और उसकी गहन समीक्षा करने के बाद ही केंद्र सरकार राष्ट्रपति को वे तमाम कारण विस्तार से बताते हुए ये सिफारिश करती है कि उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना क्यों आवश्यक हो गया है.
देश को मिलने वाला है नया राष्ट्रपति
देश को इसी महीने एक नया राष्ट्रपति मिलने वाला है. इसलिए सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि राज्यपाल धनखड़ ने सार्वजनिक मंच से ऐसा बयान देकर क्या पहले से ही अपनी जमीन मज़बूत करने की कोशिश की है क्योंकि राष्ट्रपति शासन लगने की सूरत में राज्यपाल ही उस राज्य का सर्वेसर्वा होता है. लेकिन सवाल ये है कि आने वाले दिनों में राज्यपाल ऐसी कोई सिफारिश भेजते भी हैं, तो क्या मोदी सरकार के लिए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाना इतना आसान होगा?
और, क्या ममता बनर्जी केंद्र के इस फैसले के बाद घर में दुबककर बैठ जाएंगीं?
मोदी सरकार नहीं करेगी ऐसा कोई फैसला
बंगाल की राजनीति को समझने वाले विश्लेषक कहते हैं कि मोदी सरकार अव्वल तो कोई ऐसा फैसला नही लेगी कि इस आग की चिंगारी में वो खुद अपने भी हाथ जला बैठे. बेशक ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनावों एम पीएम मोदी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष की तरफ से एक ताकत के रुप में उभरकर सामने आ सकती हैं. इसका अंदाजा मोदी को भी है, लिहाजा वे ममता के खिलाफ ऐसा कोई भी सियासी फैसला लेने से बचते रहेंगे, जिसकी वजह से ममता अगले लोकसभा चुनावों तक और बड़ी ताकत बनकर उभरे. क्योंकि संघ के प्रचारक से लेकर राजनीति में आने तक मोदी की एक सबसे बड़ी खूबी ये रही है कि चाहे पार्टी अपनी हो या सामने विरोधी दलों से मुकाबला हो,उन्होने छोटी लाइन को मिटाने की बजाय उसके सामने बड़ी लाइन खींचने का नुस्खा ही आज़माया है,जो अक्सर कामयाब भी हुआ है.
वे कहते हैं कि जहां तक राज्यपाल के तीखे बयानों का सवाल है, तो वह बीजेपी को इसलिए रास आता है कि बंगाल से बाहर उत्तरी राज्यों में वो एक नरेटिव बनाने में कामयाब हो रही है कि देखिए, दीदी के बंगाल में अराजकता व आतंक का क्या माहौल है. हम चाहे जो समझते रहें लेकिन राजनीति का एक नौसिखिया खिलाड़ी भी ये जानता है कि जब एक राज्यपाल अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करता है,तो उसके गहरे सियासी मायने भी होते हैं. राज्यपाल धनखड़ ने सीएम ममता बनर्जी पर जिस अंदाज में हमला बोला है,वो लोकतंत्र के इतिहास में शायद पहली बार ही सुनने-देखने को मिल रहा है.
राज्यपाल बंगाल के मौजूदा हालात को बयान करते हुए साफ शब्दों में कहा है कि " राज्य में लोकतंत्र (Democracy) अंतिम सांस ले रहा है. मैं राजनीति का व्यक्ति नहीं हूं. मेरी जिम्मेदारी केवल संविधान (Constitution) की रक्षा करना है. मैं केवल संविधान के आदेश पर चलता हूं.लेकिन आज पश्चिम बंगाल (West Bengal) ज्वालामुखी पर बैठा है. बंगाल काफी क्रिटिकल स्टेज में है. यहां कोई डेमोक्रेसी नहीं है. बंगाल की जो हालत है, सांस लेना है, नौकरी करना है, राजनीति करनी, अच्छी जिंदगी बितानी है तो एक ही रास्ता है, सत्ताधारी पार्टी के साथ आ जाओ. किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए इससे बड़ा खतरा नहीं है. बंगाल में ये खतरा पराकाष्ठा पर है. ये एक ओपन सीक्रेट है." अब इस बयान का अर्थ समझने के लिए हमें किसी यूनिवर्सिटी से पोलिटिकल साइंस में डिग्री लेने की जरुरत नहीं है. राजनीति के किसी ओपन सीक्रेट का खुलासा इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है?
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