आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. किरण रेड्डी ने कांग्रेस छोड़ दिया है. वे जल्दी बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं. वे राज्य के वरिष्ठ दिग्गज नेता हैं. 4 साल तक संयुक्त आंध्र प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री रहे और कई सालों तक राज्य में मंत्री रहे हैं. जिस वक्त 2012 में आंध्र के दो टुकड़े करने के लिए मनमोहन सिंह सरकार के वक्त यूपीए सरकार में प्रस्ताव लाया गया था, उस समय किरण रेड्डी ने उसका विरोध किया था.
किरण रेड्डी ने आंदोलन भी चलाया ताकि तेलुगु भाषा बोलने वालों के बीच राज्य का अलग विभाजन न हो. उन्होंने एक लोकल पार्टी भी बनाई थी. हालांकि, वो पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर पाई, इसके बाद वे वापस कांग्रेस में आ गए.
लेकिन 2014 चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई थी. उसके मद्देनजर कांग्रेस आंध्र प्रदेश में खत्म हो चुकी है. वाई. राजशेखर रेड्डी के शासन के वक्त 2004-09 में उनके देहांत से पहले राजशेखर रेड्डी और किरण रेड्डी का राज्य में भारी दबदबा होता था. 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को 42 में से 33 सीटों पर जीत मिली थी.
दिग्गज नेता हैं एन. किरण रेड्डी
आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव, चंद्रबाबू नायडु की सरकार छीनकर राजशेखर रेड्डी ने कांग्रेस की दो बार सरकार बनाई. उन्होंने उस वक्त ऐसी पदयात्री की थी, जैसे आज राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा करते हैं. आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले किरण रेड्डी ने इसके विरोध में पदयात्रा निकाली थी.
एन किरण रेड्डी मन से काफी ज्यादा पीड़ित है क्योंकि कांग्रेस ऑल इंडिया लेवल पर अब खत्म हो चुकी है. इसके अलावा, राहुल गांधी का अटपटा सा बयान देने का भी पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. तमिलनाडु के अलावा दक्षिण भारत में कांग्रेस की पकड़ अब नहीं रह गई है.
किरण रेड्डी का बीजेपी में शामिल होना सिर्फ अटकलें मात्र नहीं है. आंध्र प्रदेश की जनसंख्या में रेड्डी समुदाय करीब 15 से 16 फीसदी है. रेड्डी लोग पैसे से सुखी संपन्न हैं. रेड्डी लोगों में देशभक्ति की भावना रहती है, जैसे- संजीव रेड्डी, ब्रह्मानंद रेड्डी. इसलिए आंध्र प्रदेश में बहुत लोग रेड्डी समुदाय को मानते हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी में इनका शामिल होना स्वभाविक है, क्योंकि वो आंध्र प्रदेश का टुकड़ा नहीं करना चाहते थे.
जमीन पर नहीं है कांग्रेस का कैडर
कांग्रेस की हकीकत ये है कि जमीन पर इसका आज कैडर नहीं है. आंध्र प्रदेश में पिछली बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 175 सीटों में से एक पर भी जीत दर्ज नहीं कर पाई थी. लोकसभा चुनाव में तो राज्य के अंदर बिल्कुल ही सफाया हो गया. इसलिए किरण रेड्डी के पास बीजेपी के अलावा अब विकल्प है भी नहीं.
किरण रेड्डी का जिस तरीके का 60 साल का काम है, वो एनटीआर के तेलुगु देशम पार्टी को ज्वाइन नहीं कर सकते हैं. वे जगनमोहन रेड्डी के साथ भी नहीं जा पाएंगे. उनका एक ही दरवाजा खुला है, बीजेपी का. इसलिए किरण रेड्डी का देशभक्ति का गान गुनगुनाते हुए बीजेपी में आने की संभावना है.
लेकिन, लोकल बीजेपी के लोग ही एन. किरण रेड्डी का विरोध कर रहे हैं कि ऐसे लोगों को क्यों लेना है. वे कहते हैं कि अब किरण रेड्डी का प्रभाव खत्म हो चुका है. उनकी ताकत अब नहीं बची है. लेकिन किरण रेड्डी ने ये शर्त लगाई है कि बीजेपी में आने के बाद मुझे या तो राज्यपाल बनाएं या फिर आंध्र प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाएं.
हालांकि, एन. किरण रेड्डी की इस मांग पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहमत नहीं होने वाले हैं क्योंकि पीएम मोदी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी करीब एक साल तक पंजाब में इंतजार करवाया. अभी तक अमरिंदर सिंह को राज्यपाल नहीं बनाया. सिर्फ बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया.
नरेन्द्र मोदी को पता है कि जो क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, उनकी क्या ताकत है. पीएम मोदी उन्हें तौल लेते हैं. उनके सामने किरण रेड्डी कुछ भी नहीं है. जो आरएसएस के लोग है या जिन्होंने संगठन में काम किया है, उन्हें राज्यपाल बनाने में पीएम मोदी पसंद करते हैं. जैसे कल्याण सिंह और कलराज मिश्रा को राज्यपाल बनाया गया. लेकिन, कल-परसो आने वाले लोगों को ऐसे राज्यपाल पीएम मोदी या अमित शाह नहीं बना सकते हैं.
एक दो दिन में BJP में हो सकते हैं शामिल
मुझे लगता है कि एक दो दिन में किरण रेड्डी बीजेपी में जरूर शामिल हो जाएंगे. उनकी लोकसभा में चुनाव लड़ने की उम्मीद है. 2024 लोकसभा चुनाव में जगन रेड्डी के उम्मीदवार के खिलाफ खड़े करने की बीजेपी की रणनीति है. इसी की तैयारी चल रही है. किरण रेड्डी दिग्गज नेता हैं, और बीजेपी को जरूर उनका स्वागत करना चाहिए.
जगनमोहन रेड्डी हमेशा पीएम मोदी से अच्छा संबंध बनाकर रखते हैं. लेकिन चंद्रबाबू नायडु दरवाजा खटखटा रहे हैं, एनडीए में वापसी का. किरण रेड्डी के बीजेपी में आने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें है और जो भी पार्टी जीतेगी, बीजेपी का समर्थन करेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल वरिष्ठ पत्रकार आर. राजगोपालन से बातचीत पर आधारित है.)