राजनीति दुनिया का समय से पेचीदा विषय है और उससे भी पेचीदे होते हैं नेता. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीति की गुगली बॉल फेंक रहीं है और इस रणनीति के कोच हैं प्रशांत किशोर. 66 साल की ममता शतरंग की चाल पर ऐसी चाल कभी नहीं चली जो अब चल रही है. मकसद है 2024 का लोकसभा चुनाव और इरादा है नरेन्द्र मोदी को हराना और उद्देश्य दिख रहा है देश का प्रधानमंत्री बनना?
बंगाल विधानसभा चुनाव की शानदार जीत के बाद ममता केन्द्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई हैं और भविष्य की रणनीति पर काम कर रही हैं लेकिन लोगों को ताज्जुब हो रहा है कि मोदी को हराना है तो कांग्रेस को क्यों कमजोर कर रही है. पहले गोवा में कांग्रेस को तोड़ी और मेघालय कांग्रेस में सेंध लगाई, दिल्ली में आकर बीजेपी से कांग्रेस में आए कीर्ति आजाद और कांग्रेस के पूर्व नेता अशोक तंवर को अपनी पार्टी में शामिल करवाई वहीं पूर्व राष्ट्पति प्रणव मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी और कांग्रेस की पूर्व सांसद सुष्मिता देव को पहले ही टीएमसी में शामिल हो चुके हैं.
सवाल है कि कांग्रेस को क्यों टीएमसी कमजोर करना चाहती है? दरअसल ममता की नजर प्रधानमंत्री पद पर है इसके लिए पहले वो अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने में लगी हुई है. मेघालय, गोवा और त्रिपुरा में कांग्रेस को तोड़कर मुख्य पार्टी बनना चाहती हैं. लगता है कि ममता का ये सपना पूरा हो सकता है लेकिन महाराष्ट्र में जाकर शरद पवार से मिलकर विपक्ष में राजनीति भूचाल ला दिया है. ममता ने शरद पवार से मिलकर राहुल के बिना नाम लिए हुए बड़ा हमला किया और कहा कि कोई व्यक्ति कुछ ना करे और सिर्फ विदेश में ही रहे तो काम कैसे चलेगा. उन्होंने साफ कहा कि अब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती. अब क्षेत्रीय दलों को मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विकल्प देना होगा. उन्होंने कहा, केवल क्षेत्रीय दल ही बीजेपी को हरा सकते हैं.क्षेत्रीय पार्टियों को एक साथ आना होगा. क्षेत्रीय पार्टी ही मिलकर राष्ट्रीय पार्टी बना सकती हैं. इस बयान से साफ दिख रहा है कि कांग्रेस को नजरअंदाज करना चाहती है
शरद पवार और ममता के बीच क्या क्या बात हुई
बुधवार को शरद पवार और ममता बनर्जी से बीच बातचीत हुई. उस बैठक में उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी थी. सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी कांग्रेस को पूरी तरह नजरअंदाज करने के मूड में हैं. ममता बनर्जी ने शऱद पवार से कहा कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच जब चुनाव में टक्कर होती है तो वहां कांग्रेस बुरी तरह हार जाती है लेकिन कांग्रेस रहित विपक्ष से जब बीजेपी के बीच मुकाबला होता है तो कांग्रेस जैसी विपक्ष की कमजोर स्थिति नहीं होती है. दलील ये थी 200-250 सीटों के बीच बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर होती है कांग्रेस ज्यादातर सीटों पर टांयटांय फिस्स हो जाती है. अब ये लड़ाई कांग्रेस बनाम बीजेपी ना हो बल्कि विपक्ष बनाम बीजेपी हो क्योंकि नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी में बीजेपी का पलड़ा भारी हो जाता है. यही बात है कि ममता ने राहुल गांधी को नकारने का काम शुरू कर दिया है. ममता जो बोल रही है वही प्रशांत किशोर भी बोल रहे हैं.
प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा, मजबूत विपक्ष के लिए कांग्रेस जिस विचार और विस्तार का प्रतिनिधित्व करती है, वह अहम है लेकिन विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस का दैवीय अधिकार नहीं है, जब पार्टी पिछले 10 सालों में अपने 90% चुनाव हारती हो,लोकतांत्रिक तरीके से विपक्षी नेतृत्व को तय करने दे. जो बात ममता कर रही है वही बात प्रशांत किशोर कर रहे हैं मतलब साफ है कि कांग्रेस को नजरअंदाज करने की रणनीति है.
क्या ममता पीएम बन पाएंगी?
राजनीति संभावनाएं का खेल है और रणनीति हथियार होता है. ममता की चाल है कि कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह नीचा दिखाना और विपक्ष में अपनी पहचान मजबूत और निर्णायक नेता बनाने की है. एक तरफ कांग्रेस को तोड़फोड़ कर रहीं हैं दूसरी तरफ यूपीए में शामिल केन्द्र और क्षेत्रीय पार्टी में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है. शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल से नजदीकी है. ऐसी स्थिति बनती है कि 2024 में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो तुरुप का पत्ता बन सकती है. चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा और आई के गुजरात एक्सिडेंटल प्रधानमंभी बन चुके हैं.
अभी ये नहीं कहा जा सकता है कि ममता अपनी चाल में सफल हो पाएँगी लेकिन विपक्ष में अपनी छवि दमदार नेता बनाने की है. कांग्रेस 1990, 1996 में बड़ी पार्टी होते हुए भी दूसरे नेता को पीएम बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. ममता ये तलाश कर रही है कि ऐसी स्थिति बने जहां कांग्रेस भले बड़ी पार्टी बन जाए लेकिन जब प्रधानमंत्री बनाने की हो तो कांग्रेस सफल ना हो पाए बल्कि विपक्षी कांग्रेस को नहीं बल्कि क्षेत्रीय पार्टी को समर्थऩ करे. अब सवाल होता है कि विपक्ष में कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर की पार्टी कौन हो सकती है जाहिर है कि इस खेल में ममता का नंबर लग सकता है क्योंकि बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं वहीं दूसरे राज्यों में टीएमसी अपना पैर जमा रही है. राजनीति में ताल ठोककर कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन समय, परिस्थिति और संभावनाओं के खेल में ममता अपनी मजबूती साबित करना चाहती है. वो पीएम बन पाएंगी या नहीं ये समय ही बताएगा लेकिन राजनीतिक चाल में वो सबसे आगे रहना चाहती हैं.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, राजनीतिक और चुनाव विश्लेषक हैं
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