जिस तरीके से घरेलू हिंसा कानून 2005 आया, इस तरह का कोई भी प्रोविजन पुरुष का फेवर लेने वाला नहीं है. अगर कोई वैवाहिक विवाद होता है, उसमें पुरुष के खिलाफ शारीरिक हिंसा होती है, जैसे चोट लग गई तो इस तरह का केस आईपीसी 323 में जाएगा. मामला उससे ज्यादा गंभीर है,तो आईपीसी 325 और 326 के तहत केस बनेगा.
घरेलू हिंसा अगर पुरुष और महिला दोनों के साथ हो रहा है और अगर महिला शिकायत करती है, तो जैसे दिल्ली की बात करूं तो यहां CAW सेल का प्रावधान है, सीधे पुरुष के खिलाफ भी एफआईआर नहीं हो रही है. CAW सेल है, जहां पर कोई महिला अपनी शिकायत दर्ज करा रही है तो वहां पर पुरुष को भी बुलाया जाएगा. वहां पर दोनों की काउंसलिंग की जाती है. काउंसलिंग के लिए तीन बार ऑफर दिया जाता है कि आइए और अपनी-अपनी बात रखिए. इस जगह पर पुरुष भी अपना पक्ष रख सकता है कि उसके खिलाफ महिला ने ग़लत जानकारी पेश की है. ऐसे मामलों में पुरुष के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है.
ग़लत जानकारी पर गिरफ्तारी नहीं
घरेलू हिंसा कानून आया, आईपीसी में संशोधन करके सेक्शन 498A डाला गया. जो महिला पुरुष के साथ नहीं रहना चाहती, उ,में से कुछ महिलाओं ने इस सेक्शन को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. ये भी सच्चाई है. सुप्रीम कोर्ट का भी जजमेंट है कि अगर कोई गलत जानकारी देते हुए एफआईआर करवाता है तो ऐसे मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं होगी. भारत में ये फिलहाल प्रैक्टिस में नहीं है कि वो है लॉ ऑफ टॉर्ट. लॉ ऑफ टॉर्ट कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी को भी मानसिक या शारीरिक तौर से नुकसान पहुंचाता है, तो वो उसके खिलाफ कोर्ट जा सकता है. अगर पुरुष की एफआईआर दर्ज नहीं हो रही है, तो वो कोर्ट जा सकता है.
समाज की संरचना के हिसाब से कानून
मानसिक या शारीरक डैमेज के लिए जिस तरह से महिलाओं के लिए कानून है, उस तरह से पुरुषों के लिए नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि आम तौर से समाज की जो संरचना है, उसमें आज भी पुरुष के प्रति क्रूरता के उदाहरण बहुत ही कम हैं, ये अपवाद के तौर पर ही दिखते हैं. अभी भी महिलाओं के प्रति क्रूरता ज्यादा हो रही है. अगर भविष्य में पुरुषों के खिलाफ क्रूरता बढ़ती है, तो मुझे पूरा विश्वास है कि घरेलू हिंसा कानून में महिलाओं के साथ ही पुरुषों के खिलाफ हिंसा को लेकर भी प्रोविजन जोड़ दिया जाएगा.
आईपीसी के तहत शिकायत दर्ज
अगर कोई महिला अपने पति को किसी हथियार या डंडे से पीट रही हो, तो पति को पूरा अधिकार है कि इसके खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 323 के तहत शिकायत दर्ज कराए. अगर बहुत ज्यादा चोट है, तो मेडिकल करा कर वो सेक्शन 326 के तहत अपनी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता है. अगर व्याख्या करें तो ऐसे मामले घरेलू हिंसा है और आईपीसी के तहत अपराध भी है. लेकिन ये घरेलू हिंसा कानून के दायरे में नहीं आएगा. इसके लिए आईपीसी के अन्य सेक्शन का ही सहारा लेना पड़ेगा.
पति तलाक के लिए दे सकता है अर्जी
ऐसे मामलों में पति तलाक के लिए अर्जी दे सकता है. हिन्दू मैरिज एक्ट में भी तलाक के लिए मानसिक क्रूरता को आधार माना गया है. अगर ये साबित हो जाए कि महिला डंडे से पीट रही है, तो ये निश्चित तौर से तलाक का ग्राउंड है. अगर पति एफआईआर दर्ज कराता है तो संबंधित थाना इस बारे में मैजिस्ट्रेट को सूचना देगा. मैजिस्ट्रेट उसका संज्ञान लेगा. अगर मैजिस्ट्रेट को लगेगा कि पत्नी ने ज्यादा क्रूरता बरती है, तो वारंट जारी कर सकता है. अगर पति तलाक लेना चाहता है तो वो फैमिली कोर्ट जा सकता है. वहां क्रूरता को आधार बना सकता है. इसमें वो शारीरिक के साथ ही मानसिक क्रूरता या प्रताड़ना को भी ग्राउंड बना सकता है. अगर पत्नी धमकी दे रही है, तो वो इसके बारे में भी शिकायत दर्ज करा सकता है. इन सबके बीच भारत में एक चीज को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. यहां आम तौर से वैवाहिक विवाद में पति की ओर से पत्नी को एक थप्पड़ मारना सामान्य बात मानी जाती है. लेकिन ये भी क्रूरता ही है. पति के खिलाफ पत्नी की ओर से प्रताड़ना के मामले बहुत कम सामने आते हैं, इक्का-दुक्का गंभीर पिटाई के मामलों में आईपीसी में प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं.
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