कभी आपने सोचा कि पिछले आठ साल में मंदिर-मस्जिद, लाउड स्पीकर, अज़ान बनाम हनुमान चालीसा जैसे मसले मीडिया की सुर्खियां क्यों नहीं बन पाए थे और आखिर अब इनका इतना शोर क्यों हो रहा है? नहीं, इसका जवाब तो हमारे पास भी नहीं है लेकिन इसे तलाशने के लिए जब आसपास नजर दौड़ाई, तो खुद सरकार के आंकड़ों से ही हम सबको इसका जवाब मिल जाता है. इस जवाब को समझने के लिए उन आंकड़ों पर थोड़ा गहराई से गौर करने की जरुरत है, जहां आपका ध्यान या तो जा नहीं रहा या फिर उसे भटकाया जा रहा है.
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत एक संगठन है, जिसे NATIONAL SAMPLE SURVEY OFFIC यानी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय कहते हैं. इसका काम मुख्य रुप से देश में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति का पता लगाने के साथ ही घरेलू उपभोक्ता व्यय, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं आदि जैसे विषयों पर बड़े स्तर पर नमूना सर्वेक्षण करना होता है.
इस एजेंसी की जो ताज़ा रिपोर्ट आई है, उसे देशवासियों के लिए किसी भी तरह से अच्छी ख़बर तो नहीं जा सकता. वह इसलिए कि एनएसओ की ओर से अप्रैल के लिए जारी कन्जयूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) में महंगाई दर पिछले आठ साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. अप्रैल में महंगाई दर बढ़कर 7.79 फीसदी तक पहुंच गई. जबकि इस साल मार्च में यही महंगाई दर 6.95 फीसदी रही थी.जबकि पिछले साल अप्रैल में यह दर 4.23 फीसदी दर्ज की गई थी.
सच तो ये है कि केंद्र में सरकार कोई भी हो, उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इस बढ़ती हुई महंगाई के तले सिर्फ आम गरीब इंसान ही नहीं पिसता, बल्कि देश के बड़े मध्यम वर्ग पर ऐसी जबरदस्त मार पड़ती है कि वो न तो किसी को बोल सकता है और न ही किसी के आगे कराह सकता है.
अगर अपनी रसोई का सामान आप खुद नहीं लाते और उसका जिम्मा अपनी पत्नी को दे रखा है, तो जरा उनसे एक बार पूछियेगा जरुर कि पिछले दो-तीन महीने में ये बजट इतना बढ़ क्यों गया है? आटा-दाल- तेल-चीनी और आपके गैस सिलेंडर की बढ़ी कीमतों पर ग़ौर करेंगे, तो खुद भी हैरान रह जाएंगे.
देश के जाने-माने अर्थशास्त्री कहते हैं कि केंद्र सरकार के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि इस साल अप्रैल में खाद्य महंगाई दर में भी बढोत्तरी दर्ज की गई है, जो एक बड़े ख़तरे का संकेत है. खाद्य महंगाई दर पिछले मार्च में 7.68 फीसदी से बढ़कर अब 8.38 फीसदी हो गई है. आप इसे ये कहते हुए नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अरे, ये तो एक फीसदी से भी कम है लेकिन अर्थशास्त्र की दुनिया में इसे महंगाई बढ़ने का सबसे बड़ा अलार्म माना जाता है.
सबसे ज्यादा महंगाई सब्जियों में बढ़ी है. मार्च में जहां सब्ज़ियों की महंगाई 11.64 फीसदी थी तो वहीं अप्रैल में बड़ा उछाल लेते हुए ये 15.41 फीसदी तक पहुंच गई. अभी आप मई खत्म होने और उसके बाद आने वाले आंकड़ों पर जरा गौर करेंगे, तो और भी ज्यादा हैरान रह जाएंगे क्योंकि गर्मी अपने पूरे उफान पर है.
हालांकि, पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने के लिए एक्साइज ड्यूटी कम करने को लेकर केंद्र सरकार जहां अपनी सफाई देती है, तो वहीं राज्य सरकारें अपना रोना रो देती हैं कि जब तक केंद्र टैक्स नहीं घटाता, हम कहाँ से व कैसे उसकी भरपाई पूरी कर पाएंगे. लेकिन किसी भी सरकार के पास महंगाई को रोकने का एकमात्र अचूक हथियार यही होता है कि वो अपनी जनता को राहत देने के लिए टैक्स में कटौती करे.
बता दें कि मई 2014 से अब तक यानी मोदी सरकार में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 72 फीसदी तक का इजाफा हो चुका है. वहीं इस दौरान पेट्रोल और डीजल पर लगाए जाने वाली एक्साइज ड्यूटी भी 530 फीसदी तक बढ़ गई है. जबकि ब्रेंट क्रूड यानी कच्चे तेल की कीमतें आज भी तकरीबन वहीं पर हैं, जहां मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरूआत में थीं. इस दौरान सरकार ने तेल से अपना खजाना खूब भरा है. बीते 3 साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से करीब 8.02 लाख करोड़ रुपये की कमाई की है.
जब 2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनी तो उस समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.20 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 3.46 रुपये प्रति लीटर थी. लेटेस्ट डाटा की बात करें तो पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 27.90 रुपये प्रति लीटर जबकि डीजल पर 21.80 रुपये प्रति लीटर है. सरकार ने बीते साल दिवाली के आस पास ड्यूटी में कटौती की थी. उसके पहले यह 32.98 रुपये और 31.83 रुपये प्रति लीटर थी. फिलहाल मोदी सरकार के पहले टर्म की शुरूआत से अब तक लेटेस्ट ड्यूटी की बात करें तो पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 203 फीसदी से ज्यादा और डीजल पर करीब 530 फीसदी बढ़ी है. आने वाली 26 मई को नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर अपने आठ साल पूरे कर लेंगे.तो क्या उम्मीद की जाये कि वे इस अवसर पर टैक्स घटाने का ऐलान करके देशवासियों को महंगाई की मार से बचाने का कोई तोहफा देंगे?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)