इस देश में रामनवमी का जुलूस और मुहर्रम के ताज़िये तो देश का बंटवारा होने से भी पहले से निकलते आ रहे हैं. लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि एक ही दिन चार राज्यों के शहरों में निकले इस जुलूस पर पहले पथराव होता है और फिर पूरे शहर में साम्प्रदायिक तनाव फैल जाता है? क्या है इसके पीछे की साज़िश है? कौन हैं वे लोग जो दिल्ली के जेएनयू से लेकर इन चार स्थानों पर इस खास अवसर पर हिंसा करने का एक ही तरीका निकालते हैं लेकिन अपना चेहरा सामने लाने से डरते-बचते हैं? जरा सोचिये, क्योंकि अगर हम सोचेंगे नहीं और अपनी इंसानियत को आगे रखते हुए सही-गलत में फर्क करना ही भूल जाएंगे, तो फिर सिवाय नफ़रत के इस देश में बचेगा ही क्या?


हैरानी तो ये है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यूपी के एक सन्यासी सीएम योगी आदित्यनाथ की धार्मिक बातों पर भले ही गौर न किया हो लेकिन उनके बुलडोजर चलाने का आईडिया उन्हें इतना पसंद आ गया कि उस पर अमल करने में उन्होंने जरा भी देरी नहीं की. यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के लिए 'बुलडोजर बाबा' शब्द का इस्तेमाल किया था. योगी ने चुनाव में सबको बुलडोज कर दिया, तो शिवराज को भी अहसास हुआ कि वे  'बुलडोजर मामा' बनकर दिल्ली दरबार की आंखों के और ज्यादा प्रभावशाली तारे बन सकते हैं. पुरानी कहावत है कि अगर अपनी कुर्सी को सलामत रखना है, तो शहंशाह की हर गलत बात पर भी ताली बजाकर ये जताना पड़ता है कि हुजूर, बिल्कुल सही फरमाया क्योंकि हमें भी इस दोपहरी भरे आसमान में तारे ही दिखाई दे रहे हैं.


मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी के जुलूस में पथराव और आगजनी की घटना के बाद उस पर सरकार के सख्त रूख अपनाने पर राज्य से लेकर दिल्ली के मीडिया को भी कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी घटना के बाद सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय को ही खास निशाना क्यों बनाया जा रहा है? जिन घरों से पथराव हुआ,उन घरों पर शिवराज सरकार ने बुलडोजर चलवा दिए हैं. तर्क ये दिया गया कि वे सब अवैध निर्माण हैं.तो फिर सवाल ये उठता है कि बीच के एक साल को छोड़ दें,तो पिछले दो दशक से वहां एक ही पार्टी की सरकार है, तो मुसलमानों को अवैध निर्माण करने की इजाज़त किसने और कब दे दी?


दूसरा और बड़ा सवाल ये है कि किसी भी तरह की हिंसा होने और उस पर न्यायपालिका का फैसला आने से पहले ही लोगों के घर गिराने का हक़ सरकार को किस संविधान ने दे दिया? हम इससे भी इनकार नहीं करते कि किसी खास समुदाय के कुछ शरारती तत्वों ने माहौल बिगाड़ने के लिए ऐसी हरकत की भी होगी लेकिन फिर भी बड़ा सवाल ये उठता है कि पुलिस या किसी भी जांच एजेंसी के पास संदिग्ध आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार तो है लेकिन ऐसे किसी भी आरोपी के घर को तोड़ने का कोई संवैधानिक हक उस पुलिस को कहाँ से और कैसे मिल गया?


सरकारें दावा करती हैं कि इसके लिए उसने अपने कानून में बदलाव किया है लेकिन सच तो ये है कि किसी भी राज्य या केंद्र सरकार के बनाये ऐसे किसी भी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ताज़ा मिसाल हमारे सामने है, जो सत्ता में बैठे हुक्मरान से न तो डरी और न ही उसके आगे झुकी. बल्कि उसने संविधान का हवाला देते हुए एक जायज़ फैसला दिया कि संसद के भीतर कुछ गलत हुआ था, तो उसे दुरुस्त करने के लिए कानून अभी जिंदा है.याद रखिये कि पाकिस्तान में भी लोकतंत्र है और एक अलग मुल्क का वजूद बनने के बाद उस देश ने भी भारत के संविधान को ही काफी हद तक अपनाया है. संसदीय लोकतंत्र के मामले में तो उसने भारत के संविधान को हूबहू ही अपनाया है.


लिहाज़ा, बुलडोजर चलाने के बहाने देश के किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय में डर और दशहत फैलाने की कोई कोशिश होती है और अगर कोई समझदार व कानून का जानकार  शख्स इस मामले को देश के सर्वोच्च न्यायालय तक ले गया,तो संविधान के प्रावधानों के आधार पर इंसाफ़ करने वाली देश की सबसे बड़ी न्यायालय ऐसे फैसलों को पलटने में न तो डरेगी और न ही  ज्यादा देर लगाएगी.


सबसे ज्यादा हैरानी तो ये है कि खरगोन में हुए हिंसक उपद्रव के बाद मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जो बयान दिया है, वो शरारती तत्वों द्वारा भड़काई गई इस आग में घी डालने जैसा ही है. किसी भी राज्य के जिम्मेदार गृह मंत्री के मुंह से निकले इन शब्दों को न तो देश में अमन-चैन व भाईचारा कायम रखने पर यकीन करने वाला कोई आम इंसान सही ठहरायेगा और न ही न्यायपालिका में बैठे विद्वान न्यायाधीश ही इस भाषा को बर्दाश्त करेंगे.


अब जरा उनके बयान पर भी गौर कर लीजिये कि उन्होंने क्या कहा और इसके मायने समझने की भी कोशिश कीजिये कि राजनीति इस देश को किस तरफ ले जाने के लिए बेताब है,बगैर ये सोचे-समझे कि आने वाले दिनों में इसका अंज़ाम क्या हो सकता है. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने साफ तौर पर  कहा, ‘‘जिन घरों से पथराव किया गया, उन्हें मलबे में बदल दिया जाएगा. राज्य सरकार का रुख स्पष्ट है और किसी को भी यहां शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जाएगी.’’ मंत्री ने दावा किया कि पांच राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों से आहत कुछ लोग अब हिंसा भड़का रहे हैं.उन्होंने ये भी कहा कि, ‘‘वे राज्य और देश में शांति भंग करना चाहते हैं. इन (विधानसभा चुनाव) परिणामों से भी, ऐसे लोगों को समझ नहीं आया कि देश क्या चाहता है.’’


सवाल उठता है कि बगैर किसी जांच-रिपोर्ट आने और कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने से पहले देश का कौन-सा कानून एक राज्य के गृह मंत्री को किसी तथाकथित घर को मलबे में बदल देने की धमकी देने की इजाज़त देता है? साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, भारत में मुसलमानों की कुल जनसंख्या 17.22 करोड़ थी,जो कुल आबादी का 14.23 प्रतिशत माना जाता है.इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है.


लेकिन पिछले एक दशक में जनसंख्या बढने का जो पैमाना है,उसके मुताबिक अब उनकी आबादी तकरीबन 20 करोड़ के आसपास है. कहते हैं कि हाल के वर्षों में भारत की मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है और इसकी वजह उच्च प्रजनन दर और कम साक्षरता दर यानी अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज न भेजने को दिया जाता है. अमेरिकी थिंक-टैंक पिऊ (PEW) के अनुसार, भारत में साल 2050 तक मुसलमानों की कुल जनसंख्या बढ़कर 31.1 करोड़ तक पहुंच सकती है. हो भी जाए, तो डर किस बात का और भला किसलिये होना चाहिए.


आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत पिछले एक साल में अपने दिये भाषणों में न जाने कितनी बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि इस देश में पैदा हुए हर मुसलमान का डीएनए एक ही है,वो हमसे अलग नहीं है, यानी उनके वंशज भी हिंदू ही थे. तो फिर ये बात समझ से परे लगती है कि भागवत जी की हर बात का अनुसरण करने वाली पार्टी की राज्य सरकारें अपने मुस्लिम भाइयों को 'बुलडोज़' करके आखिर क्या सबक सिखाना चाहती हैं?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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