देश की राजधानी दिल्ली में करीब 54 लाख डीज़ल और पेट्रोल वाहन मालिकों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है. नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद पिछले साल 31 दिसंबर को इन वाहनों के रजिस्ट्रेशन की मियाद ख़त्म हो चुकी है. डीज़ल वाले वाहनों की मियाद 10 साल है, जबकि पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को 15 साल के बाद राजधानी की सड़कों पर नहीं उतार सकते. परिवहन विभाग को भी समझ नहीं आ पा रहा है कि कोर्ट के आदेश के बाद अब इन वाहनों का क्या होगा. वह इसलिए कि केंद्र सरकार ने पुराने वाहनों को नष्ट करने की अपनी नीति में बदलाव किया है,लिहाज़ा ऐसे वाहन मालिक अब ग़फ़लत में हैं कि इन वाहनों को नष्ट करने के लिए वे आखिर इसे कहां लेकर जायें?


दरअसल, केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय द्वारा बीती 3 जनवरी को जारी एक नोटिफिकेशन के बाद राजधानी के परिवहन विभाग ने पुराने वाहनों को नष्ट करने की स्क्रैपिंग पॉलिसी (Scrapping Policy) को खत्म कर दिया है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इसे 2018 में लागू किया था. केंद्र की नई नीति के मुताबिक अब दिल्ली-एनसीआर में पुराने वाहनों को नष्ट करने का अधिकार सिर्फ उन्हीं स्क्रैप डीलर को होगा, जिनके पास केंद्रीय मंत्रालय द्वारा जारी लाइसेंस होगा और पर्याप्त जगह में स्क्रैप यार्ड्स (Scrap Yards)भी होगा. सरकार की इस कठोर शर्त के चलते दिल्ली-एनसीआर में ये लाइसेंस हासिल करने के लिए आवेदन करने वालों की संख्या अब तक बेहद मामूली है,इसलिये सवाल उठ रहा है कि इन लाखों वाहनों को नष्ट करने में ही कितना लंबा वक्त लगेगा?


बहरहाल, आलम ये है कि दिल्ली के परिवहन विभाग के पास अब तक ये आंकड़ें ही नहीं हैं कि कितने लोगों ने अपने पुराने वाहनों को नष्ट करने के लिए आवेदन किया है. उसे ये भी नहीं मालूम कि अन्य राज्यों में ऐसे वाहन चलाने या फिर बेचने के लिये कितने मालिकों ने नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOCs) मांगा है. राजधानी की सड़कों पर मामूली ग़लती होने पर ताबड़तोड़ चालान काटने वाले परिवहन विभाग को ये जानकारी भी नहीं है कि अब तक ऐसे कितने सरकारी वाहनों को नष्ट किया गया है.


हालांकि लोगों के पास अब एकमात्र रास्ता यही बचता है कि वे दिल्ली से बाहर अपना वाहन ले जाकर किसी अनाधिकृत डीलर से उसे नष्ट करवाएं, लेकिन उसका नुकसान ये है कि न तो उन्हें इसकी वाजिब कीमत मिलेगी और न ही सरकार की तरफ से कोई छूट ही जबकि अधिकृत डीलर को देने का फायदा ये है कि एक तो सरकार की तय कीमत मिलेगी.  दूसरा ये कि नया वाहन खरीदने पर सरकार द्वारा रोड टैक्स में छूट भी मिलेगी.चूंकि केंद्र का नोटिफिकेशन कुछ दिन पहले ही मिला है, इसलिए परिवहन विभाग भी पसोपेश में है कि अब आगे वो क्या कदम उठाए.


वैसे राजधानी में बीते साल के अंत तक कुल 53,78,514 वाहनों का रजिस्ट्रेशन खत्म किया गया है,जो 10 और 15 साल पुराने हो चुके थे.इनमें से 80 हजार केंद्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में इस्तेमाल हो रहे वाहन भी शामिल हैं, लेकिन ट्रांसपोर्ट विभाग को कोई जानकारी नहीं है कि इनमें से कितने नष्ट कर दिए गए या कितने वाहनों के लिए एनओसी मांगी गई है. लिहाजा,अब परिवहन विभाग ने एक सर्कुलर जारी कर तमाम विभागों से 28 फरवरी तक जानकारी मांगी है. साथ ही उन्हें हिदायत दी गई है कि अब जो भी नया वाहन खरीदा जाए, वह इलेक्ट्रिक ही हो. ये तो हुई सरकारी विभागों की बात.लेकिन आम दिल्लीवासी के लिए तो मुसीबत ये खड़ी हो गई है कि वे अपना वाहन नष्ट करने के लिए अधिकृत डीलर को अलादीन का चिराग़ लेकर कहां तलाशें?


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