जब कमाल खान साहब से मैंने उनकी सैलरी पूछ ली थी और उन्होंने बता भी दी...
Kamal Khan Dies of Heart Attack: सामने वाला सरल हो तो आप सहज हो जाते हैं और ऐसी गलती कर जाते हैं, जो आपको नहीं करनी चाहिए. मेरे कई साथी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ये लिख रहे हैं कि मैं उनसे कभी नहीं मिला, लेकिन उनका फैन हूं तो दुख की इस घड़ी में मुझे ये कहते हुए प्राइड फील हो रहा है कि मुझे उस महान शख्सियत के साथ संगम की रेती पर पूरे 40 दिन साथ रहने का मौका मिला था. अर्ध कुंभ 2007 में मैं ईटीवी के विशेष संवाददाता के रूप में हैदराबाद से इलाहाबाद भेजा गया था.
ईटीवी के कई सारे चैनल्स थे और हम दिन भर रिपोर्टिंग कम और लाइव ज्यादा करते थे. कमाल साहब की खूबी ये थी कि वो लाइव में कम, रिपोर्टिंग में ज्यादा भरोसा करते थे. उनकी सबसे बड़ी खूबी ये थी कि स्टोरी खुद उनके पास चलकर आती थी. वो जहां खड़े हो जाते थे वहीं से शुरू हो जाते. एक से बढ़कर एक पीटीसी करते और शानदार खबर बन जाती. शब्द उनके मुंह से मोती बनकर निकलते थे. जब वो बोलते थे तो मैं उन्हें बस यूं ही निहारता रहता था.
गजब की प्रतिभा थी उनके अंदर. सिर पर पोटली लेकर लोग हमारे सामने से भी गुजरते थे, लेकिन वो हमारे लिए सामान्य सी बात होती थी. कमाल साहब कुछ ऐसा एंगल निकाल लेते थे कि हम सब टुकुर-टुकुर बस उन्हें देखते रहते थे. ये शायद मेरा सौभाग्य था कि ईटीवी और एनडीटीवी का प्लेटफॉर्म आसपास था. 40 दिन तक उनके आसपास मंडराने का सौभाग्य मिला था. वो सच में कमाल के थे.
लाइव से पहले बहुत छोटी-छोटी बात पूछ लेते थे. कितनी भीड़ आई है? मेला प्रशासन का क्या इनपुट है? सुरक्षाकर्मी कितने हैं? वो बहुत कम बात करते थे, लेकिन जब भी करते थे तो खुलकर करते थे. कमाल साहब को मेला प्रशासन के इंटरनेशनल सेंटर में ठहराया गया था, जो संगम तट से थोड़ा दूर था. वहां बेहतर सुविधाएं थीं, लेकिन वो सुविधाभोगी नहीं थे और इस बात की अक्सर शिकायत भी करते थे कि बाथरूम जाने के लिए भी कई किलोमीटर चलना पड़ता है.
ईटीवी और सहारा सिर्फ दो ही चैनल्स को संगम के बेहद करीब लेटे हुए हनुमान जी के पास बड़ा प्लॉट मिला था. जहां हमारा छोटा स्टूडियो और 2 एमबी सेंटर भी थे. रहने और खाने का भी इंतजाम था. कमाल साहब को जब ये बात पता चली तो वो हमारा सेटअप देखने आये थे. उस जमाने में फीड भेजने और स्क्रिप्ट लिखने के लिए संगम तट पर इंटरनेट और कंप्यूटर के साथ अस्थाई दफ्तर होना बड़ी बात थी.
उन्होंने हमारे दफ्तर की एक-एक चीज के बारे में जानकारी ली. फीड कैसे भेजते हैं? स्क्रिप्ट कैसे लिखते हैं? हालांकि उनकी टीम हमसे बहुत बड़ी थी. लाइव के लिए हमारे साथ सिर्फ एक कैमरामैन और ओबी इंजीनियर होता था, लेकिन उनके पास टेक्निकल की पूरी टीम होती थी, जो लाइव से पहले पूरा इंतजाम करती थी. एक दिन लाइव से ठीक पहले जब वो मुझसे भीड़ के बारे में जानकारी ले रहे थे तो मैंने डरते-डरते पूछ लिया कि सर आपकी तनख्वाह क्या होगी तो वो चौंक गये.
धीरे से मुस्कुराये और अपने कैमरामैन जोशी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनसे 10 हजार कम मिलते हैं. मैंने जोशी जी की तरफ देखा और हिम्मत नहीं हुई कि उनसे उनकी सैलरी पूछ लूं. बाद में मुझे मेरी बेवकूफी पर हंसी भी आई. हमारी फिर कभी बात नहीं हुई, लेकिन जब मैंने उन्हें फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी तो उन्होंने न सिर्फ तुरंत स्वीकार कर लिया बल्कि अपना नंबर भी भेजा. फिर भी उन्हें फोन करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.
दिल में ये तमन्ना थी कि कभी लखनऊ जाने का मौका मिलेगा तो उनसे जरूर मिलूंगा. अब ये आस दिल में ही रह जाएगी. उनके लाखों फैन हैं, लेकिन मुझे आज भी लगता है कि मैं उनका सबसे बड़ा फैन हूं. कमाल साहब आप मौजूदा पत्रकार बिरादरी के सबसे बड़े सितारे हैं, जो हमेशा चमकता रहेगा. आप हमारी यादों में हमेशा रहेंगे. आपने जाने में जल्दबाजी कर दी जिसके बारे में यही कहा जा सकता है कि जिंदगी भले ही छोटी हो, लेकिन आपकी तरह शानदार हो. कलाम के बाद कमाल के लिए आज हर कोई रो रहा है चाहे वो किसी भी विचारधारा का क्यों न हो.
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
'तुम्हीं' सो गए दास्ताँ कहते कहते
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