जब अमिताभ बच्चन ने एक महीने में चार हिट फिल्में दीं...
शायद यही कारण है की जब हम अन्य बड़े नायकों को नायक कहते हैं तो अमिताभ बच्चन को महानायक
अमिताभ बच्चन ने यूँ तो अपने फिल्म करियर में कई नयी मिसालें कायम की हैं, कई रिकॉर्ड बनाये हैं. लेकिन आज मुझे उनके उस रिकॉर्ड की याद आ रही है, जिसकी और कोई मिसाल ढूढें नहीं मिलती. कम से कम भारतीय सिनेमा में ऐसा कोई और उदाहरण मुझे दिखाई नहीं दे रहा, जब किसी शिखर के नायक अभिनेता की लगातार 4 हफ़्तों तक, हर हफ्ते एक नई फिल्म रिलीज़ हुई हो. विदेशों में भी किसी चोटी के नायक की कभी भी हर हफ्ते कोई फिल्म रिलीज़ हुई होगी ऐसी संभावना कम ही लगती है.
यह बात है आज से ठीक 40 बरस पहले की. तब अमिताभ को फिल्मों में आये 9 बरस ही हुए थे लेकिन वह तब तक शिखर के एक बेमिसाल अभिनेता बन चुके थे. हालांकि अपने करियर के शुरू के तीन –चार साल तक अमिताभ बच्चन को सफलता नहीं मिली और उनकी फ़िल्में लगातार असफल होती रहीं. लेकिन 1973 में ‘जंजीर’ फिल्म की सफलता ने अमिताभ बच्चन की ही नहीं हिंदी सिनेमा की भी तस्वीर बदल दी. उसके बाद तो करीब अगले 4 सालों में ही 1977 तक अमिताभ बच्चन ने ‘अभिमान’, ‘नमक हराम’, ‘कसौटी’, ‘मजबूर’, ‘दीवार’, ‘शोले’, ‘चुपके-चुपके’, ‘मिली’, ‘कभी-कभी’, ‘दो अनजाने’, ‘हेरा-फेरी’, ‘अदालत’, ‘खून पसीना’, ‘परवरिश’ और ‘अमर अकबर एंथनी’ जैसी 15 शानदार फ़िल्में देकर सफलता लोकप्रियता का नया इतिहास लिख दिया.
21 दिन में अमिताभ बच्चन की 4 फ़िल्में
इसी के ठीक बाद 1978 में एक वह दौर आया जब अमिताभ बच्चन ने लगातार 4 हफ्ते तक अपनी एक नई फिल्म देकर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जो अभी तक कोई भी दूसरा हीरो नहीं बना पाया है. ये 4 हफ्ते थे 21 अप्रैल से 12 मई 1978 तक के. इस दौरान मुंबई में पहले 21 अप्रैल को अमिताभ बच्चन की ‘कसमे वादे’ रिलीज हुई तो उसके अगले हफ्ते 28 अप्रैल को ‘बेशर्म’, फिर 5 मई को ‘त्रिशूल’ लगी तो उसके बाद के सप्ताह में 12 मई को ‘डॉन’ रिलीज़ हुई. बड़ी बात यह है भी है कि ये चारों फ़िल्में कामयाब रहीं.
आज अधिकांश निर्माता या अभिनेता अपनी फिल्म के सामने या उसके अगले हफ्ते तक किसी और बड़ी फिल्म के आने से घबराते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी फिल्म के साथ किसी और बड़ी फिल्म का टकराव न हो. इसी चक्कर में कई बार निर्माताओं के बीच या कलाकारों के बीच जंग तक छिड़ जाती है. मेकर्स डरते हैं कि उनकी फिल्म के सामने यदि कोई और बड़ी फिल्म रिलीज़ हो गयी, या उनकी फिल्म की रिलीज़ के ठीक अगले हफ्ते भी यदि कोई और बड़ी फिल्म आ गयी तो उनकी फिल्म अच्छा बिजनेस नहीं कर पाएगी. लेकिन वो हिंदी सिनेमा का ऐसा ‘गोल्डन पीरियड’ था जब अमिताभ बच्चन की फिल्मों के निर्माताओं को अपने नायक पर इतना भरोसा था कि उन्होंने किसी भी किन्तु परन्तु की परवाह किये बिना हर हफ्ते कतार से अपनी फ़िल्में रिलीज़ करने का साहस किया. और अमिताभ बच्चन तब उनके भरोसे पर खरे उतरे जब ये सभी फ़िल्में अच्छा बिजनेस करने में कामयाब हुईं, ‘डॉन’ और ‘त्रिशूल’ तो सुपर हिट रहीं. ‘कसमे वादे’ हिट और ‘बेशर्म’ सेमी हिट. शायद यही कारण है की जब हम अन्य बड़े नायकों को नायक कहते हैं तो अमिताभ बच्चन को महानायक.
बच्चन जी ने मुझे क्या लिखा इस लगातार रिलीज़ पर
अमिताभ बच्चन की जब सन 1978 में ये चार फ़िल्में रिलीज़ होने वाली थीं, तब मेरी फिल्मों में तो काफी दिलचस्पी थी और मैं फ़िल्में तो अपने बचपन से ही खूब देखता था. वह जुबली फिल्मों का दौर था. फिल्मों की सफलता का आकलन तब सिल्वर और गोल्डन जुबली फिल्मों से किया जाता था. कोई-कोई फिल्म डायमंड और प्लेटिनम जुबली भी मनाती थी. लेकिन किसी एक हीरो की फ़िल्में लगातार आने से उन फिल्मों के बिजनेस पर असर पड़ सकता है, इस बात का पता मुझे अप्रैल 1978 में तब लगा जब सुप्रसिद्द कवि-लेखक, अमिताभ बच्चन के पिता और मेरे परम आदरणीय डॉ हरिवंश राय बच्चन का एक पत्र मुझे मिला.
असल में मेरे लिए वह मेरा सौभाग्यशाली समय काल था जब माननीय डॉ बच्चन जी और मेरे बीच पत्र व्यवहार लगातार चलता था. मेरे जन्म दिन पर तो माननीय बच्चन जी हर साल नियमित बधाई और शुभकामना पत्र भेजते थे. उनके मेरे नाम हस्त लिखित करीब 100 पत्र तो आज भी मेरे संकलन में हैं. उन पत्रों को पढ़कर मुझे आज भी सीख तथा प्रेरणा मिलती है.
बच्चन जी ने अमिताभ बच्चन की 21 अप्रैल 78 को ‘कसमे वादे’ रिलीज़ होने पर मुंबई से अपने पत्र में मुझे लिखा था- “कल रात अमिताभ की फिल्म ‘कसमे वादे’ का चैरिटी प्रीमियर था. ‘बेशर्म’ तो दिल्ली में लग चुकी है. यहाँ (मुंबई) 28 अप्रैल को लगेगी. 5 मई को ‘त्रिशूल’ लगेगी और 12 मई को ‘डॉन’. जल्दी-जल्दी आने से अमित की स्वयं एक फिल्म दूसरे की प्रतियोगिता में खड़ी होगी, जो बिजनेस की दृष्टि से अच्छा नहीं, पर मज़बूरी है.”
यहाँ दिलचस्प यह भी कि डॉ हरिवंश राय बच्चन जी अपने पुत्र अमिताभ बच्चन की फिल्मों को देखने के ऐसे ही शौक़ीन थे जितने हम और आप हैं. ‘कसमे वादे’ तो उन्होंने रिलीज़ से एक रात पहले ही मुंबई प्रीमियर में देख ली थी. जबकि उन्होंने मुझे अपने 13 मई 1978 के अगले पत्र में लिखा –“यहाँ अमिताभ की ‘डॉन’ लग चुकी है जो मैं आज ही देखकर आया हूँ.”
इन 4 फिल्मों में 2 में था अमिताभ का डबल रोल
सिर्फ 21 दिन की अवधि में अमिताभ बच्चन की इन 4 फिल्मों की रिलीज़ हमेशा याद की जाती रहेगी. क्योंकि अब दूर-दूर तक नहीं लगता की कोई और शिखर का अभिनेता या निर्माता इतना बड़ा साहस फिर से कर पायेगा. यहाँ यह भी बता दें की अमिताभ की तब एक साथ रिलीज़ इन 4 फिल्मों की कहानी और अंदाज़ सब अलग था. इन फिल्मों में यदि कोई समानता थी तो वह यह कि इन 4 फिल्मों में से दो फिल्मों- ‘डॉन’ और ‘कसमे वादे’ में अमिताभ का डबल रोल था. दो फिल्मों ‘त्रिशूल’ और ‘डॉन’ की पटकथा सलीम जावेद ने लिखी थी. दो फ़िल्में ‘कसमे वादे’ और ‘त्रिशूल’ में अमिताभ के साथ नायिका राखी थीं. साथ ही ‘डॉन’ और ‘बेशर्म’ के संगीतकार कल्याणजी आनंदजी थे. वर्ना चारों फिल्मों के फिल्मकार अलग थे.
मसलन ‘कसमे वादे’ के निर्माता निर्देशक रमेश बहल थे. रणधीर कपूर, नीतू सिंह इनके अन्य सह कलाकार थे. आर डी बर्मन के संगीत में फिल्म के सभी गीत हिट हुए थे. जैसे ‘कसमे वादे निभाएंगे हम’, ‘आती रहेंगी बहारें’ और ‘कल क्या होगा’. जबकि ‘बेशर्म’ को मशहूर हास्य अभिनेता देवेन वर्मा ने बनाया था और निर्देशक के रूप में यह देवेन की पहली फिल्म थी. फिल्म की नायिका शर्मिला टैगोर थीं.लेकिन इन 4 फिल्मों में एक यही फिल्म थी जो बाकी तीन के मुकाबले कुछ कमजोर रही. उधर सन 1975 में ‘दीवार’ फिल्म की सफलता के बाद ‘त्रिशूल’ फिल्म के माध्यम से गुलशन राय का निर्माता के रूप में, यश चोपड़ा का निर्देशक के रूप में, सलीम जावेद का पटकथा लेखक के रूप में और शशि कपूर का सह अभिनेता के रूप में फिर से साथ हुआ. इस फिल्म के भी सभी गीत लोकप्रिय हुए. जैसे ‘मोहब्बत बड़े काम की चीज़ है’, ‘जानेमन तुम कमाल करती हो’ और ‘गापुचि गापुचि’. यहाँ तक इस फिल्म का अमिताभ बच्चन का एक संवाद भी भुलाये नहीं भूलता, “मिस्टर आर के गुप्ता, तुमने 5 मिनट मुझसे बात न करके अपने 5 लाख का नुकसान किया है.” ऐसे ही जीनत अमान, प्राण और इफ्तेखार जैसे सह कलाकारों वाली अमिताभ बच्चन की ‘डॉन’ एक अलग मिजाज़ की क्राइम थ्रिलर थी. ‘डॉन’ जहाँ अपने ‘खाइके पान बनारस वाला’, ‘मैं हूँ डॉन’, ‘जिसका मुझे था इंतज़ार’ और ‘ये मेरा दिल प्यार का दीवाना’ जैसे गीतों के लिए लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर पहुंची, वहां अपने संवादों के लिए भी यह अभी तक याद की जाती है. इस फिल्म का ये डायलॉग ‘डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है’ अब तक हिट है, साथ ही अमिताभ बच्चन के अभिनय के लिए भी इसको बराबर याद किया जाता है.
‘डॉन’ के लिए मिला था बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार
‘डॉन’ के लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. यहाँ यह भी बता दें कि अमिताभ बच्चन ने ‘डॉन’ के शानदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार लगातार दूसरी बार पाया था. इससे एक साल पहले अमिताभ बच्चन को फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ के लिए भी फिल्मफेयर मिला था.
दिलचस्प यह है की ‘अमर अकबर एंथनी’ वाले फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह का आयोजन ‘डॉन’ की रिलीज़ से ठीक पहले मई 1978 में तभी हुआ था जब अमिताभ बच्चन की ये चार फिल्में लगातार हर हफ्ते रिलीज़ होने का नया रिकॉर्ड बना रही थीं. अपने बेटे अमिताभ बच्चन को ‘अमर अकबर एंथनी’ के लिए पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिलता देखने के लिए, तब उनकी माँ तेजी बच्चन जी दिल्ली से ख़ास तौर से मुंबई आईं थीं.
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