केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि मोदी सरकार आने वाले दिनों में आईसीपी, सीआरपीसी और एविंडेस एक्ट में आमूलचूल बदलाव करने जा रही है. इसके साथ ही, पूरे देश में फॉरेंसिक साइंस के नेटवर्क को फैलाया जाएगा. गृह मंत्री का यह कहना बिल्कुल सही है क्योंकि सीआरपीसी, आईपीसी और एविडेंस एक्ट इन तीनों कानून करीब डेढ़ सौ साल पुराने हो चुके हैं. यूनाईटेड किंगडम ने भी अपना पूरा एक्ट बदल दिया है. आज के समय में मॉडर्न इनवेस्टिगेशन, टेक्निकल इनवेस्टिगेशन, फॉरेंशिक रिपोर्ट्स इसके साथ ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग, सीसीटीव कैमरा इन सबकी जो महता है ने उसको देखना होगा. कई बार ऐसा होता था पहले कि कनफेशन और उसके बाद फेक रिकवरी यही ग्राउंड होती थी, लेकिन जब साइंटिफिक ग्राउंड इनवेस्टिगेशन आ गई.


तो देखिए फिर आप सीसीटीवी कैमरे की मदद से एक-एक मूवमेंट को ट्रैक कर सकते हैं, लेकिन आज भी वीडियो एविडेंस सेकेंडरी एविडेंस ही माना जाता है न की प्रमुख एविडेंस इसलिए काफी कुछ बदलने की जरूरत है और मुझे लगता है कि ये सही कदम होगा. आज की जो विज्ञान की जो तरक्की है और जिस तरह के अपराध घटित होते हैं, उसको देखते हुए सही तरीके से और उचित मापदंड से क्योंकि दुनिया के किसी भी देश में जाइए अपराध की जो प्रवृति है वो समान हो गई है. 


चूंकि अपराधी भी आज साइबर ऑफेंस करते हैं. सोचिए, झारखंड के जामताड़ा जैसी जगह में इतने साइबर ऑफेंस मिलते हैं. फोन हैक करने की शिकायत, बैंकिंग फ्रॉड की शिकायत चुरू जैसी जगह से आती है. आपको ये समझ नहीं आता कि ये किस तरह के ऑफेंस चल रहे हैं. इस तरह के ऑफेंस को डील करने के लिए यह आवश्यक है कि इसके अंदर व्यापक सुधार किया जाए.


मैं ये नहीं कहता कि वे पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन उस कानून के अंदर थोड़ी सी उसकी पॉलिसिंग कर दें तो ये बिल्कुल अपडेट हो जाएगी. आज देखिए कई ऐसे सेक्शन हैं जैसे पहले लोग घरों के अंदर सेंधमारी करके घुसते थे. अब लोगों के न मिट्टी के घर हैं और न ऐसी घटना होती है अब आप आईपीसी के अंदर उसके प्राविजन खोजेंगे तो बहुत सी ऐसे अपराध हैं. जो अब होते भी नहीं हैं. 


पहले के जमाने में भूत-प्रेत होता था, जादू-टोना होता था. ये भी एक अपराध था लेकिन धीरे-धीरे ये अब अपराध की श्रेणी से बाहर हो गया. जिसे आप कहते हैं जो जादू-टोना करती है या करते हैं उसके खिलाफ कार्रवाई होती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि समाज व देश की परिस्थिति को देखते हुए कानून का ऐसा स्वरूप बनाया जाए जो पूरे दुनिया के जो एक तरह के साइबर अपराधी आ गए हैं.  साथ-साथ जो इनवेस्टिगेशन में साइंटिफिक इंवेस्टिगेशन है वो भी जरूरी है. तो मेरे ख्याल से ये होना चाहिए और इसे धीरे-धीरे बदलना चाहिए. ये तो सही बात है कि जो बेसिक एक्ट है वो तो वही रहेगा लेकिन उसमें कई नई चीजें जुड़ जाएंगी.


देश में इसके लिए यूनिवर्सिटी व कॉलेज तो खोलना पड़ेगा लेकिन खोलने के बाद ये जरूरी नहीं है कि आपको लायक लोग मिल जाएं, लेकिन अब ये सोच के काम ही नहीं करें और कोविड के समय वर्चुअल कोर्स चलने ही लगी और बहुत से लोग हैं जो वर्चुअल कॉन्फ्रेंस करने लगे जोकि कोविड आन के चार महीने पहले सोचते नहीं होंगे. 


ये ठीक बात है कि बहुत सी ऐसी विधाएं हैं जिसमें ट्रेंड लोग हैं और उसके लिए लोगों के पास कंप्यूटर भी नहीं है. लेकिन धीरे-धीरे आ जाएगी. आप ये जानिये, कि ये कम से कम शुरू तो एक बार. बड़ा सेल हो गया, छोटा सेल हो गया, महिला थाना खुल गया, साइबर सेल खुल गया तो ऐसे कई बदलाव हो तो रहे हैं ने एक-एक करके. तो आप जैसे ही इसको एक बार सिस्टम को लेकर आएंगे. आपको उसमें खर्च भी करना पड़ेगा. इतना बड़ा देश है तो शुरुआत में हो सकता है कि राज्य के मुख्यालय के स्तर पर हो बाद में जिला स्तर पर फिर ब्लॉक स्तर पर आ जाएगा. लेकिन हम जो तरक्की हो रही है उससे मुह मोड़ लें वो ठीक नहीं है.


सबसे पहले तो ये कि जो वीडियो एविडेंस है उसे आप प्रमुख एविडेंस के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर सकते. क्योंकि वीडियो और ऑडियो एविडेंस सेकेंडरी है. और अगर आप उसे प्रस्तुत करेंगे तो वह केवल वही माध्यम और उस ग्राउंड पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. तो कई चीजें हैं जो बदलनी चाहिए और उसको करना ही पड़ेगा. ग्राफ इग्जामिनेशन के प्रोसेस को भी अच्छा बनाना पड़ेगा. 


कई बार ऐसा होता है कि आपको उन चीजों में जरूरत नहीं है और आपके पास कुछ चीजों में वीडियो एविडेंस है तो फिर आपको किसी और की क्या आवश्यकता है उसे वेरिफाइ कराने के लिए कि ये आदमी था कि नहीं था और फिर अगर वीडियो की टेमपरिंग नहीं हुई है तो फिर आगे उसमें आपको क्यों घुसना है. बहुत सी चीजें है जिसे बदलना पड़ेगा और अगर वो करने की कोशिश कर रहे तो ठीक बात है. अगर उन्होंने होमवर्क किया है तो अच्छी बात है.


यह पहली बार 2004 में प्रस्ताव आया था यही नया नहीं है लेकिन अबतक हो नहीं पाया और अगर ये कर लें तो बहुत अच्छा है. क्योंकि समय के हिसाब से सुधार होना चाहिए. नए-नए ट्रिब्यूनल खुल गए, एनजीटी आ गया किसने कल्पना कि थी कि कभी भारत में एनजीटी भी होगी. किसी ने नहीं सोचा था इंडिया में पीएमएलए जैसा भी एक्ट आएगा.


सारे एक्ट टाइम के हिसाब से आ रहे हैं. मनीलांड्रिंग होगी तो पीएमएमलए भी आएगा. कंज्यूमर रिफॉर्म एक्ट आ गया. तो मेरे ख्याल से ये आना चाहिए चे उचित है. एडअप होने के साथ उसको ठीक कर देना चाहिए. देखिये कोई चीज बनी है 1872 के हिसाब से लेकिन अब उसको ठीक करके आज के हिसाब से कर दें. यूके की पीनल कोड, प्रोसिजर कोड या उनका एविडेंस एक्ट देख लीजिए. उसमें उन्होंने आज की सारी परिस्थितियों का ख्याल किया है और ज्यादा पुराना नहीं है वो 2006 से 12 के बीच का बना हुआ है.


अगर उनको हम लें लें तो अच्छा रहेगा कोई बुराई नहीं है इसके अंदर. एक हमारे जज साहब जो रिटायर्ड हो गए हैं उन्होंने इसके ऊपर काम भी किया है और एक महीने पहले ही गृह मंत्रालय को उन्होंने बदलावों को लेकर सुझाव भी दिया है. क्रिमिनल मैटर्स को ही डील करते थे वो हाई कोर्ट के अंदर और क्रिमिनल मैटर्स के जज भी रहे तो उनके सुझाव को भी इसके अंदर लाया जाएगा. और अगर ये बदलाव की बात हो रही है तो अच्छी बात है.  


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. प्रदीप राय से बातचीत पर ये आर्टिकल आधारित है.)