आज जॉर्ज साहेब नहीं हैं. पिछले साल ही धूमधाम से समर्थकों ने 88वां जन्मदिन मनाया था. ये अलग बात है कि जॉर्ज ने जिनको बनाया वो लोग जॉर्ज को भूल चुके थे. आज नीतीश कुमार जॉर्ज को याद करके आंसू बहा रहे हैं लेकिन इन्हीं नीतीश जी की वजह से 2009 में जॉर्ज समर्थक रो रहे थे.


जॉर्ज ने जिस कांग्रेस के खिलाफ राजनीति करके भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाई. जॉर्ज के चेलों ने उनकी नीति की धज्जियां उड़ा दी. नीतीश कुमार राहुल गांधी के दरबार में हाजिरी लगाने तक पहुंच गये थे. मिलकर 2015 का चुनाव तो लड़ा ही था.


जॉर्ज विचार मंच चलाने वाले सांसद अरुण कुमार भी एक वक्त में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने नालंदा पहुंच गये थे. इस बार फिर से कांग्रेस के टिकट पर लड़ना चाहते हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी पार्टी के पोस्टरों पर जॉर्ज को जगह देते थे... लेकिन आज वो भी कांग्रेस के साथ हैं.


जॉर्ज की वजह से नीतीश बड़े नेता बने. लेकिन उन्हीं जॉर्ज को 2009 के चुनाव में बेटिकट करके बेइज्जत किया. जिस पार्टी को जॉर्ज ने बनाया था उसके खिलाफ 2009 में मुजफ्फरपुर से उन्हें निर्दलीय लड़कर हारना पड़ा. जिस कांग्रेसी विचारधारा के खिलाफ जॉर्ज लड़ते लड़ते बीमार हो गये और जिंदगी के अंतिम दौर में चल रहे हैं. उस कांग्रेस के साथ नीतीश कुमार ने बीस महीने बिहार में गठबंधन की सरकार चलाई. नीतीश इस मामले में सिर्फ राजनीति की नीति के दोषी नहीं हैं बल्कि वो जॉर्ज के भी दोषी हैं. इसके लिए शायद जॉर्ज की आत्मा भी कभी उन्हें माफ नहीं करेगी.


पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक पांडा जॉर्ज के लिए आयोजित कार्यक्रम में बता रहे थे कि इमरजेंसी के वक्त जॉर्ज को डायनामाइट केस में फंसाया गया था. दिल्ली में कोर्ट में जब उन्हें पेशी के लिया जाता था उसी वक्त की हथकड़ी वाली तस्वीर काफी चर्चित रही थी. पांडा कह रहे थे कि अगर 1977 में जनता पार्टी की सरकार नहीं बनी होती तो शायद जॉर्ज को तभी फांसी पर लटका दिया जाता.


उसी कांग्रेस पार्टी के साथ नीतीश जी ने बिहार में सरकार चलाई है. आगे कांग्रेस के साथ नीतीश हाथ नहीं मिलाएंगे इसकी भी कोई गारंटी नहीं है. जॉर्ज ने 1994 में नीतीश कुमार सहित कुल 14 सांसदों के साथ जनता दल से नाता तोड़कर जनता दल ज बनाया जिसका नाम अक्टूबर 1994 में समता पार्टी पड़ा. 1995 में पार्टी अपने दम पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी लेकिन लालू को हरा नहीं पाई. बाद में 1996 में बीजेपी से समता पार्टी का गठबंधन हुआ.


1996 में लोकसभा का चुनाव हुआ. जॉर्ज को चुनाव लड़ना था, लेकिन जॉर्ज को नीतीश मुजफ्फरपुर से नालंदा ले गए. मुजफ्फरपुर समता पार्टी में नेतृत्वविहीन हो गया था. जॉर्ज को मनाने के लिए पार्टी के नेता, कार्यकर्ता पटना गए. शकुनी चौधरी के घर पर जॉर्ज को आना था. उस दिन नालंदा से नामांकन भरके वो लौटे थे. जॉर्ज उस रात खासे गुस्से में भी दिख रहे थे, लेकिन सामने कार्यकर्ता थे जो उन्हें चाहते थे. लिहाजा जॉर्ज को गुस्सा पीना पड़ा और फिर ये कहना पड़ा कि मैं तो नहीं जाऊंगा मुजफ्फरपुर, आप अपना नया नेता चुन लीजिए.


1996 में जॉर्ज नालंदा से सांसद बने. सब सहयोगियों को सरकार में शामिल किया गया तब वाजपेयी ने जॉर्ज को रक्षा मंत्री बनाया था. 1999 में करगिल के वक्त ताबूत घोटाला सामने आया. कांग्रेस ने संसद नहीं चलने दी कफन चोर तक कहा. लेकिन जब जांच हुई तो जॉर्ज बेदाग साबित हुए और दोबारा मंत्री बने.


ये जॉर्ज ही थे जिन्होंने मंत्री पद का मोह नहीं किया और आरोप लगने के बाद इस्तीफा दिया. और बेदाग हुए तो फिर मंत्री बने. जॉर्ज जब रक्षा मंत्री थे तभी देश में परमाणु परीक्षण हुआ था. सांसद अरुण कुमार बताते हैं कि पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में जब सैनिक पहले शहीद होते थे तो उनके शव वही दफना दिये जाते थे. लेकिन जॉर्ज ने रक्षा मंत्री रहते हुए ये व्यवस्था बदल दी और शहीदों के शव को उनके घर भेजा जाने लगा. जॉर्ज ही पहले रक्षा मंत्री थे जो सियाचिन गये.


जॉर्ज की वजह से ही वाजपेयी ने नीतीश कुमार को बिहार में सीएम पद का उम्मीदवार बनाया था. अब जब राजनीति में न तो वाजपेयी का जमाना है न जॉर्ज का. इसलिए ये जरूरी हो जाता है पूछना कि नीतीश ने अपने नेता जॉर्ज के लिए क्या किया ?


साल 2005 से 9 महीने को छोड़ दें तो नीतीश ही बिहार के सीएम हैं. जिस तरीके से केंद्र सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर योजनाएं चला रही हैं क्या बिहार में नीतीश जॉर्ज के नाम पर कोई योजना नहीं चला सकते ? लोहिया के नाम पर यूपी में योजनाएं चलती है तो बिहार में नीतीश क्या जॉर्ज साइकिल योजना, जॉर्ज सस्ता खाना योजना, जॉर्ज सड़क योजना, जॉर्ज ग्रामीण बस सेवा शुरू नहीं कर सकते. स्कूल, कॉलेज, पुल, अस्पताल के नाम क्या जॉर्ज के नाम पर नहीं हो सकता ?


जरूर कर सकते हैं, जरूर हो सकता है. लेकिन करना चाहे तब तो. नीतीश कुमार शायद बड़े नेताओं का वोट कनेक्शन खोजना चाहते हैं. जाति की राजनीति के लिए बदनाम बिहार में जॉर्ज का नाम नीतीश को किसी जाति का वोट नहीं दिलवा सकता. शायद इसीलिए जीते जी उनके चेले उन्हें भूल गये. आज नीतीश ने बिहार में दो दिन का राजकीय शोक घोषित किया है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)