ओशो रजनीश समेत दुनिया के कई दार्शनिक कह चुके हैं कि किसी कानून के जरिये संसार में जहां भी किसी चीज को रोकने-दमन करने की कोशिश की है, इंसान की सबसे बड़ी चाहत उसी को पाने की रही है क्योंकि यहीं मनुष्य का मनोविज्ञान है. इसलिये सवाल उठता है कि महात्मा गांधी की जन्मभूमि वाले जिस गुजरात में उनकी इच्छा के ही मुताबिक आज 62 साल बाद भी शराबबंदी लागू है, तो वहां अचानक ऐसा क्या हुआ कि जहरीली शराब पीने से एक साथ इतने सारे लोगों की मौत हो गई?
जवाब इसका भी है, जो उस राज्य के हुक्मरान भी जानते हैं लेकिन जब तक ऐसी कोई त्रासदी न हो जाये, सरकार कभी हरकत में नहीं आती. दरअसल, गुजरात में पिछले कई दशकों से दो तरह के शराब माफिया सक्रिय है. एक वो जो कि पड़ोसी राज्यों से तस्करी के जरिये अंग्रेजी शराब लाता है, जो दोगुने-तिगुने दामों पर उसे बेचता है, जिसे लोग हंसकर खरीदते भी हैं. दूसरे माफ़िया का राज गांवों में है, जो भट्टी पर बनी कच्ची शराब बेचता है. ये माफ़िया ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जल्दी व ज्यादा पैसा कमाने के लालच में वे लोगों को देसी शराब देने की बजाय ऐसा केमिकल पिलाना शुरु कर देते हैं, जिसका पहला घूंट ही पीने वाले के दिमाग में जबरदस्त सरूर ला देता है लेकिन शरीर के खून में मिलते ही वो ऐसा जहर बन जाता है कि इंसान का बच पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.
उसी जहरीली शराब के तांडव ने अब तक 36 जान ले ली है और करीब सौ लोग अलग-अलग शहरों के अस्पतालों में मौत से बचने के लिए लड़ रहे हैं. कोई नहीं जानता कि मौत का ये आंकड़ा कहां जाकर रुकेगा, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये भी है कि गुजरात में जहरीली शराब पीने से मरने की ये घटना कोई पहली बार नहीं हुई है. इससे पहले साल 2008 में अहमदाबाद में हुई ऐसी ही एक बड़ी त्रासदी में शराब पीने से तब करीब 150 लोग मारे गए थे. उस वक़्त गुजरात सरकार की कमान मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के हाथ में थी. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां शराब माफिया कितना ताकतवर है, जिसने पुलिस-प्रशासन में अपनी गहरी पैठ जमा रखी है, जो आज भी बदस्तूर जारी है.
दरअसल, 2016 में आई एक रिपोर्ट के आधार पर एक विदेशी न्यूज़ वेबसाइट ने ये खुलासा किया था कि गुजरात में पिछले पांच सालों में ग़ैरक़ानूनी ज़हरीली पीने से राज्य में अब तक 3,000 लोगों की मौत हुई है. तब सरकार की तरफ से उसका कोई खंडन नहीं किया गया और उसके बाद से लेकर सरकार ने ऐसा कोई आंकड़ा भी जारी नहीं किया है कि अब तक वहां इससे मरने वालों की संख्या क्या है. जाहिर है कि सरकार ये आंकड़ा दे भी नहीं सकती क्योंकि उसका मतलब ये होगा कि शराबबंदी वाले प्रदेश में अवैध व जहरीली शराब बेचने का गैर कानूनी कारोबार चल रहा है, तो जरुर उसमें कोई राजनीतिक शह होगी.
वैसे भी जो सयाने लोग बरसों से ये कहते आ रहे हैं कि सरकार की कोई भी पाबंदी उसे तोड़ने के लिए समाज में एक नए माफ़िया को ही पैदा करती है, तो गुजरात के हालात देखकर उनकी इस बात में दम भी नज़र आता है. इसलिये कि शराबबंदी वाले गुजरात में पड़ोसी राज्यों से तस्करी के जरिये आने वाली शराब की सालाना जितनी खपत है, वह देश के किसी अन्य राज्य मे शायद ही होगी. राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दमन व दीव ऐसे राज्य हैं, जहां से हर महीने सैकड़ों ट्रक गुजरात में अवैध रूप से शराब लाते हैं, जो मोटी कीमत पर वहां बिकती है. जाहिर है कि अवैध रुप से शराब लाकर गुजरात के लोगों के गले तर करने वाला ये माफ़िया पुलिस की मर्जी के बगैर इतना बड़ा गैरकानूनी धंधा कर ही नहीं सकता.
अवैध रुप से शराब लाने वाले जिस माफ़िया की पुलिस से सही "सेटिंग" है, उसका माल तो गोदाम तक सही सलामत पहुंच जाता है लेकिन जो पुलिस की आंखों में धूल झोंककर ये कारनामा करता है, वो फिर उसके चंगुल से बच भी नहीं पाता. मोटे अनुमान के मुताबिक पिछले एक दशक में वहां चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की अवैध शराब जब्त हुई है.
शायद इसीलिए गुजरात की अधिकांश जनता मानती है कि शराबबंदी की ये चोंचलेबाजी सिर्फ सरकारी कागजों तक ही सीमित है. हक़ीक़त तो ये है कि सस्ते से लेकर सबसे महंगे ब्रांड की शराब तक कि 'होम डिलीवरी' होना यहां आम बात है.शराब की तस्करी से जुड़े सूत्रों की मानें, तो पड़ोसी राज्य से आने वाले हर ट्रक मे लदी शराब का 30 फीसदी हिस्सा पुलिस को और 30 प्रतिशत एक्साइज विभाग को देना होता है, बाकी का 40 फीसदी उस माफ़िया के हिस्से आता है, जिसे अपने तमाम खर्चे निकालकर मुनाफा कमाना होता है.
बताते हैं कि साल 2010 में ग़ैरक़ानूनी ढंग से दमन से तस्करी कर गुजरात में लाई जा रही शराब उस वक्त के कारोबारी विजय माल्या की डिस्टेलरी की थी. उस सिलसिले में दर्ज मामले में विजय माल्या भी एक अभियुक्त हैं. ज़हरीली शराब पीने से बढ़ती मौतों को लेकर सरकार ने हालांकि क़ानून में संशोधन भी किया और ऐसी मौत होने पर दोषियों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान भी किया गया, लेकिन सूबे में आज तक एक भी शराब बेचने वाले या पीने वाले को कोई सज़ा नहीं हुई है. बड़ा सवाल ये है कि बापू की धरती पर जहरीली शराब बेचकर कौन बना हुआ है मौत का सौदागर?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)