माफिया से राजनेता बने पूर्व सांसद अतीक अहमद को प्रयागराज की 20 सदस्यीय टीम ने अहमदाबाद की साबरमती जेल से अपनी कस्टडी में 26 मार्च (रविवार) को लिया. 2007 के किडनैपिंग केस में मंगलवार को कोर्ट में उसे पेश किया जाएगा. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, साबरमती जेल से बाहर आते ही जब पत्रकारों ने उससे पूछा कि क्या वे डर रहा है? तो अतीक अहमद ने इसके जवाब कुछ यूं दिया- 'मुझे इनका प्रोग्राम मालूम है... हत्या करना चाहते हैं.' 


उमेश पाल किडनैपिंग के केस में संलिप्तता का अतीक अहमद के ऊपर संगीन आरोप है, जिसमें 24 फरवरी को प्रयागराज में 2 पुलिसवालों के साथ उनकी मौत हो गई थी. उमेशपाल 2005 में हुए राजूपाल मर्डर केस के गवाह थे, जिसमें खुद अतीक अहमद मुख्य आरोपी है. उमेशपाल की पत्नी जया के मुताबिक, साल 2006 में पूर्व सांसद अतीक और उनके साथियों ने मिलकर उनके पति को किडनैप कर कोर्ट में उसके पक्ष में बयान देने का आरोप लगाया था.


पिछले महीने उमेश पाल की हत्या के बाद, अतीक अहमद, पत्नी शाइस्ता परवीण, दोनों बेटे छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ और अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया गया.


कौन है अतीक अहमद


अतीक अहमद पूर्व सांसद और 5 बार का विधायक रहा है. उसे प्रयागराज के एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में फैकल्टी मेंबर पर कथित उत्पीड़न को लेकर सबरमती जेल भेजा गया था. उसके राजनीतिक करियर की शुरुआत 1989 में हुई जब वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इलाहाबाद पश्चिम की सीट जीतकर विधानसभा पहुंचा था.  


लगातार 2 बार विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली और 1996 में उसने लगातार चौथी बार जीत दर्ज की. इसके 3 साल बाद वह अपना दल का हिस्सा बन गया और फिर से 2002 में चुनाव जीत गया. उसके अगले साल, उसने समाजवादी पार्टी में वापसी कर ली और फुलपुर लोकसभा सीट से 2004 का लोकसभा चुनाव जीत गया. इस सीट से कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जीत दर्ज की थी. 


अतीक अहमद को पहला झटका उस वक्त लगा जब राजूपाल हत्याकांड में उसका नाम आया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इलाहाबाद वेस्ट सीट पर साल 2005 के विधान सभा उप-चुनाव में राजूपाल ने अतीक अहमद के भाई अशरफ को हरा दिया था. ये अतीक अहमद परिवार के लिए बड़ी हार थी क्योंकि अतीक के इलाहाबाद लोकसभा सीट जीतने के चलते वो विधानसभा सीट खाली हुई थी.  


कैसे हुई थी राजपाल की हत्या?


25 जनवरी 2005 को जिस वक्त राजूपाल अपने सहयोगी संदीप यादव और देवीलाल के साथ अस्पताल से वापस आ रहा था, उस समय उनके घर के नजदीक गोली मार दी गई. इसके बाद, राजू की पत्नी ने अतीक, अशरफ और सात अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ हिंसा, हत्या की कोशिश, हत्या और आपराधिक साजिश के तहत केस दर्ज कराया.


राजनीति और पुलिस के भारी दबाव के चलते अतीक अहमद को 2008 में सरेंडर करना पड़ा, जो साल 2012 में ही जेल से बाहर निकल पाया. इसके बाद उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर 2014 का चुनाव लड़ा, लेकिन शिकस्त का सामना करना पड़ा. आपराधिक रिकॉर्ड के चलते अखिलेश यादव ने जब अतीक अहमद से दूरियां बना ली, उसके बाद उसकी स्थिति और खराब होती चली गई. 


2017 में साम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंस, प्रयागराज के स्टाफ के उत्पीड़न के आरोप में अतीक अहमद को गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहते हुए अतीक अहमद ने वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ 2019 में चुनाव लड़ा और 855 वोट हासिल किया. मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि 60 साल के राजनेता अतीक अहमद के ऊपर करीब 70 अलग-अलग धाराओं में हत्या, उत्पीड़न समेत अन्य आपराधिक मामले दर्ज हैं.
 (ये लेखक के निजी विचार है)