झारखंड के देवघर में त्रिकूट पहाड़ियों पर रविवार को रोपवे की कई ट्रॉलियों के आपस में टकराने से हुई घटना में तीन लोगों की मौत हो चुकी है. 18 लोग पिछले 28 घंटे से उन्हीं ट्रालियों में फंसे हैं और अपनी जिंदगी बचाने की भीख मांग रहे हैं. वायुसेना और एनडीआरएफ की टीमें उन्हें सुरक्षित निकालने की हर संभव कोशिश कर रही हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ऐसे हादसों के लिए कौन जिम्मेदार है?
रोपवे ट्रॉलियों का संचालक ही सिर्फ कसूरवार है या फिर सरकार की लापरवाही भी कुछ हद तक जिम्मेदार है. वह इसलिये कि ऐसे रोपवे ट्रॉली का संचालन सरकार से लाइसेंस मिले बगैर हो ही नहीं सकता. हालांकि एक बार अनुमति देने के बाद सरकारी अमला कुम्भकर्णी नींद सो जाता है. कोई जिम्मेदार अधिकारी दो -तीन महीने में भी रोपवे स्पॉट पर जाकर ये इंस्पेक्शन करने की जहमत नहीं उठाता कि ट्रालियों का संचालन ठीक से हो रहा है या नहीं. या तय वक़्त पर पर्याप्त सर्विसिंग न होने से कोई तकनीकी ख़राबी का ख़तरा पैदा हो सकता है, जो किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकता है.
इस हादसे ने देश के कई धार्मिक व अन्य पर्यटन स्थलों पर चल रहे रोपवे ट्रॉली के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. संबंधित राज्य सरकारों की सबसे पहली जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने राज्य में संचालित हो रहे सभी रोपवे के तकनीकी निरीक्षण करने के आदेश तत्काल दें. देवघर के हादसे से सबक लेने की जरुरत है और इसके लिए सरकार को मासिक आधार पर इनके ओवरऑल निरीक्षण करने और इसकी रिपोर्ट सौंपने की जवाबदेही तय करनी होगी.
हालांकि इस हादसे का सच तो जांच के बाद ही सामने आएगा कि तकनीकी ख़राबी की वजह क्या थी और इसके लिए जिम्मेदार कौन है. शुरुआती ख़बरों से लगता है कि रोपवे संचालक समेत सरकार का संबंधित विभाग भी इसके लिए उतना ही कसूरवार है. बताया गया है कि पिछले कई महीनों से संबंधित अधिकारी ने इसका तकनीकी निरीक्षण करने की कोई ज़हमत नहीं उठाई. 'सब चलता है' वाले सरकारी बाबुओं के इस रवैये के कारण ही तीन बेगुनाह लोगों की जान चली गई.
जाहिर है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार हादसे में मारे गए लोगों के परिवार को उचित मुआवजा देने का ऐलान करेगी. लेकिन उसे एक और सख्त कदम ये भी उठाना चाहिए कि वह रोपवे संचालक पर भारी भरकम जुर्माना लगाये और उससे वसूले गए पैसों को मृतकों के परिवारों में बांट दे. जांच में दोषी पाये जाने वाले सरकारी अधिकारी-कर्मचारी को सिर्फ कुछ महीनों के लिए निलंबित करने की खानापूर्ति न करे, बल्कि उन्हें नौकरी से बर्खास्त करके बाकियों के लिए नज़ीर पेश करे, ताकि भविष्य में दोबारा ऐसा कोई हादसा न हो.
विदेशों में तकरीबन हर बड़े शहर में रोपवे ट्राली का संचालन आम बात है, लेकिन वहां से कभी ऐसा हादसा होने की कोई खबर नहीं आती है तो उसकी मुख्य वजह है कि वहां के सख्त नियम और उनका कड़ाई से पालन करने-कराने की व्यवस्था. ये हमें अपने देश में कम ही देखने को मिलती है. रविवार के इस हादसे में 12 केबिनों में कम से कम 80 लोग फंस गए थे, जिनमें से 62 को सुरक्षित निकाला गया. एक अधिकारी के मुताबिक ऐसा लगता है कि यह घटना तकनीकी खराबी के कारण हुई, जिसके परिणामस्वरूप केबल कारों की आपस में टक्कर हुई. इस हादसे ने कुछ सवाल खड़े किए हैं जिनमें सबसे अहम है कि इनके संचालन में आने वाली तकनीकी खामियों से निपटने के लिए सरकारों को क्या अपने नियमों में बदलाव लाने की जरुरत है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)