अगर हादसे का शिकार एंबुलेंस का इंतजार करते-करते सड़क पर दम तोड़ दे... अस्पताल में बिस्तर खाली ना होने की वजह से गर्भवती महिला जमीन पर बच्चे को जन्म देने को मजबूर हो जाए... तो यकीनन ये किसी भी समाज के लिए शर्मिंदगी और सरकार की क्षमताओं और उसकी संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि गरीब को सिर्फ स्वास्थ्य की गारंटी मिल जाए तो ये उसके लिए सबसे बड़ी सौगात होगी वरना कितना भी कमाए उसकी सारी कमाई अस्पताल और दवाओं में ही बर्बाद हो जाएगी।


ये बात सच है लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में हालात इससे भी ज्यादा बदतर हैं और नीति आयोग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट ने इस बात को सत्यापित भी कर दिया है। उत्तर प्रदेश की बिगड़ती सेहत की तस्वीर नीति आयोग ने सामने रखी तो रिपोर्ट के साल और उस वक्त की सत्ता के सरमायेदारों की तलाश होने लगी।
योगी सरकार यूपी की खस्ताहाल सेहत की जिम्मेदारी से बच पाएगी ?
अखिलेश और मायावती भी यूपी को बीमार बनाने के कसूरवार क्यों नहीं हैं?
और नेता अस्पतालों और मरीजों की बदहाली पर भी राजनीति करते रहेंगे ?


उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के सरकारी अस्पताल की तस्वीर तो सिर्फ एक बानगी भर है, नीति आयोग ने तो पूरे सबे की सेहत की परते उधाड़ कर रख दी हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश की सेहत को लेकर खतरे की बड़ी घंटी है।


देशभर के राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से जुड़ी इस फेहरिस्त में केरल पहले पायदान पर है जबकि यूपी सबसे नीचे 21वें स्थान पर है


15 जून को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की सेहत सुधारने के लिए स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक की थी। दस दिन बाद ही नीति आयोग की रिपोर्ट से साफ हो गया है, कि यूपी में मरीजों की हालत और खराब हो चुकी है लेकिन स्वास्थ्य मंत्री यूपी की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे हैं।


नीति आयोग की रिपोर्ट सरकार को शर्मिंदा करने वाली है कि जनस्वास्थ्य के मामले में यूपी देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। तो फिर केन्द्र और यूपी में बीजेपी की सरकार होने पर ऐसी डबल इंजन वाली सरकार का क्या लाभ? ऐसा विकास करोड़ों जनता के किस काम का जिसमें उसका जीवन पूरी तरह से नरक बना हुआ है?
लेकिन सच ये भी है कि जो मायावती आज योगी सरकार को स्वास्थ्य के मुद्दे पर यूपी के फिसड्डी होने की उलाहना दे रही हैं, उन्हीं के कार्यकाल में हुए एनआरएचएम घोटाले ने स्वास्थ्य विभाग की कमर तोड़ दी थी।


फिलहाल सुधार की बजाय स्वास्थ्य के मुद्दे पर जारी इस राजनीति के बीच ही लखनऊ समेत 11 जिलों में दिमागी बुखार ने दस्तक दे दी है और दम तोड़ती स्वास्थ्य सेवा के बीच इस खतरे से निपटना यूपी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।


यूपी का हेल्थ इंडेक्स अगर अंतिम पायदान पर है तो इसके लिए जवाबदेही निश्चित तौर पर हर दौर की सरकार की है। ऐसे में स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दे पर सियासत उतनी ही शर्मनाक है, जितनी शर्मनाक तस्वीरें बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की सामने आती हैं। किस सरकार में कितनी कोताही हुई, इस पर बयानबाजी की जगह आगे से पुराने हालात ना दोहराए जाएं इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सरकारें दावा करती हैं कि उनके पास जादू की छड़ी नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि सरकार चाहे तो पलक झपकते तस्वीर बदल सकती है बशर्ते काम पूरी ईमानदारी और पहली प्राथमिकता पर किया जाए।