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Blog: इंदौर-उज्जैन के हिंदू-मुस्लिमों को आखिर आपस में कौन लड़ाने कोशिश कर रहा है?

भारत का हृदय स्थल माने जाने वाला मध्य प्रदेश अमूमन सबसे शांत और अमन पसंद राज्य समझा जाता है. लेकिन इसके मालवा इलाके के दो प्रमुख शहर ऐसे हैं, जहां के हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल बड़े फख्र के साथ दी जाती है. इंदौर को प्रदेश की व्यापारिक राजधानी समझा जाता है, तो उससे महज 50 किलोमीटर दूर उज्जैन की पहचान एक ऐतिहासिक व धार्मिक नगरी के रुप में देश-दुनिया में विख्यात है.

दोनों ही शहरों में मुसलमानों की आबादी ठीक-ठाक है और उनकी कई पीढ़ियां हिंदू परिवारों के साथ बरसों से घुल-मिलकर रहती आई हैं. आज भी वही नजारा देखने को मिलता है. लेकिन दो वर्गों के बीच पनपी ये मुहब्बत धर्म के कुछ ठेकेदारों को शायद रास नहीं आ रही है, लिहाजा पिछले कुछ दिनों से इन दोनों शहरों में नफरत का जहर घोलने की खबरें देश के मीडिया की सुर्खियां बन रही हैं.

पहले इंदौर में चूड़ियां बेचने वाले एक युवक की सिर्फ इसलिए बेरहमी से पिटाई की गई क्योंकि वो मुस्लिम था. अब उज्जैन जिले से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें कबाड़ी का रोजगार करके अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने वाले एक मुसलमान को जबरन मजबूर किया जा रहा है कि वो 'जय श्री राम" का नारा लगाए. लाख मना करने के बावजूद उसे अपनी जान बचाने की खातिर ऐसा करना ही पड़ा. हालांकि दोनों ही मामलों ने पुलिस ने अपने हिसाब से कार्रवाई की है. इससे पहले भी उज्जैन में ही एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में नारा लगाने वाले मुस्लिम युवकों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये लोग हैं, कौन है जो मजहब का नकाब ओढ़कर इन शहरों के साथ ही पूरे प्रदेश की फिजा खराब करना चाहते हैं. इन्हें शह आखिर कौन दे रहा है? मज़हबी कट्टरता के नाम पर अगर इस तरह की घटनाएं होने लगेगीं, तो फिर सबसे ज्यादा सेक्युलर होने का दावा करने वाले हमारे मुल्क और तालिबान के बीच क्या फर्क रह जाएगा? कहते हैं कि सियासत इंसान को आपस में लड़वाने का काम करती है लेकिन धर्म चाहे जो भी हो, वो इंसान को आपस में जोड़ने का ही काम करता है.

शिवराज सिंह की सरकार को गंभीरता से ये सोचना होगा
हैरानी इसलिए और भी ज्यादा हो रही है कि पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा वक्त से प्रदेश में बीजेपी की सरकार है लेकिन पहले इस तरह की कोई घटना सामने नहीं आई. यहां तक कि हिंदुत्व की फायर ब्रांड समझी जाने वाली नेता उमा भारती जब राज्य की मुख्यमंत्री थीं, तब भी ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ. उल्टे, वे तो सीएम की कुर्सी पर रहते हुए मुसलमानों का ये भरोसा जीतने में भी कामयाब हुईं कि उनके राज में वे खुद को असुरक्षित न समझें. लिहाजा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सरकार को गंभीरता से ये सोचना होगा कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ और क्यों हो रहा है कि अल्पसंख्यक अब खुद को इतना असुरक्षित समझने लग गया है. ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई करते हुए उनहें जनता को ये संदेश देना होगा कि बख्शा कोई भी नहीं जायेगा,भले ही वह किसी भी धर्म का हो.

इंदौर वो शहर है जहां से सुमित्रा महाजन लगातार आठ बार बीजेपी से सांसद चुनी गईं और साल 2014 से 2019 तक लोकसभा की स्पीकर भी रहीं. लेकिन उनके रहते तो कभी ऐसा नहीं हुआ कि शहर के किसी मुहल्ले में चूड़ी बेचने वाले से उसका धर्म पूछा जाएगा और फिर पिटाई करने के बाद ये दलील दी जायेगी कि उसने छेड़खानी की.

चूंकि इन पंक्तियों के लेखक का गहरा नाता उजैन से है, लिहाजा पूरा यकीन है वहां की भाईचारे वाली संस्कृति ऐसी घटनाओं से खत्म नहीं होने वाली. ये वो नगरी है जहां आज भी भूतभावन भगवान महाकाल की श्रावण महीने में हर सोमवार को निकलने वाली सवारी में बैंड बजाने वाले और भोले शंकर के भजनों को अपने सुरों में गाते हुए सैकड़ों हिन्दू नौजवानों को उस पर थिरकने पर मजबूर कर देने वाली मंडली के सारे लोग मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. शहर के सारे बैंड संचालक मुस्लिम हैं लेकिन सबने हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर ही अपने बैंड के नाम रखे हुए हैं. शादियों के सीजन में हिंदू परिवारों में पहली चिंता ये होती है कि "श्रीराम दरबार बैंड" को सबसे पहले बुक कर लिया जाये क्योंकि उसके संचालक शफी मियां की टक्कर में वायलिन बजाने वाला शहर में दूसरा और कोई नहीं है. मुस्लिम बहुल इलाकों के छोटे ढाबों-रेस्तरां में नॉनवेज के जायके का लुत्फ उठाने वालों में मुस्लिमों से ज्यादा आपको हिन्दू भाई ही नजर आएंगे.

अगर किसी को इन दोनों शहरों में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल देखनी हो, तो मुहर्रम के मौके पर निकलने वाले ताजियों को एक बार जरुर देखना चाहिए. जिस घोड़े को "बड़े साहब" का दर्जा दिया गया होता है. उनके नीचे से अपने छोटे बच्चों को निकालने के लिए हिंदू माताएं आतुर रहती हैं क्योंकि माना जाता है कि ऐसा करने से आगे जाकर उसकी जिन्दगीं में अगर मुसीबतों का पहाड़ आ भी गया, तो उसे बर्दाश्त करने की ताकत उसमें आ जाएगी.

नफरत की गठान इतनी आसानी से लगने नहीं देंगे
इसी बीजेपी सरकार के वक़्त उज्जैन शहर के सबसे बड़े माधव कॉलेज का प्रिंसिपल जब डॉ मंसूर खान को  नियुक्त किया गया, तो संघ-बीजेपी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने भी उनका उतनी ही गर्मजोशी से स्वागत किया, जितना कि कांग्रेस से संबंधित एनएसयूआई के नेताओं ने किया. प्रदेश की बीजेपी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव इसी शहर से विधायक हैं और अपने छात्र-जीवन की राजनीति से जुड़े उन मुस्लिम दोस्तों के साथ वे आज भी उतनी ही शिद्दत से मित्रता निभा रहे हैं, भले ही उनकी राजनीतिक विचारधारा अलग हो.

लिहाजा, निचोड़ यही है कि सियासत चाहे जितनी कोशिश कर ले लेकिन दोनों तरफ समझदार व सुलझे हुए लोगों का जमावड़ा इतना ज्यादा है कि वे भाईचारे के इस धागे में नफरत की गठान तो उतनी आसानी से लगने नहीं देंगे. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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