आतंक की कोई भी वारदात होने के बाद सबके जेहन में एक सवाल उठता है कि आखिर इनके पास इतना बेशुमार पैसा आता कहां से है जिसके दम पर वे किसी भी मुल्क को हिलाकर रख देने की हिमाकत कर लेते हैं. इसका जवाब सिर्फ एक ही है और वो है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में फैला नशे का अवैध कारोबार ही इन आतंकी समूहों की सबसे बड़ी ताकत है जिस पर काबू पाने में दुनिया के सबसे ज्यादा ताकतवर मुल्क भी अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं.
ये आंकड़ा सुनकर पहली नजर में शायद कोई विश्वास न करे लेकिन यकीन करना पड़ेगा क्योंकि तकरीबन दो साल पहले संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया था. उसके मुताबिक समूची दुनिया में नशे का सालाना कारोबार करीब 30 लाख करोड़ रुपये का है, जो पैसा इन आतंकी संगठनों को मिलता है और उसके जरिये ही वे हर रोज किसी न किसी देश में तबाही का एक नया मंजर पेश करते आ रहे हैं. लगातार 20 साल तक अफगानिस्तान में पानी की तरह पैसा बहाने वाला अमेरिका भी तमाम कोशिशों के बावजूद आतंकवाद और नशे के इस गठजोड़ को तोड़ने में नाकामयाब ही साबित हुआ है.
लेकिन ये गठजोड़ कितना खतरनाक होता जा रहा है, इसके लिए सिर्फ कश्मीर घाटी में हो रही आतंकी वारदातों का उदाहरण देना ही पर्याप्त नहीं होगा. खतरा और भी ज्यादा बड़ा है और सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें, तो पंजाब के अलावा नार्थ ईस्ट के राज्य भी जल्द ही इसकी लपेट में आ सकते हैं क्योंकि चीन अब खुलकर तालिबान की तरफदारी कर रहा है. लिहाजा, वो भारत को अस्थिर करने के लिए तालिबान को हर तरह की मदद देने से पीछे नहीं हटेगा. सब जानते हैं कि अफगानिस्तान अकेला ऐसा मुल्क है, जहां दुनिया की तकरीबन 85 फीसदी अफीम का उत्पादन होता है. तालिबान की कमाई का सबसे बड़ा जरिया भी यही है और बताते हैं सत्ता में आने के बाद से ही उसने इसमें से ही एक तय हिस्सा आतंकी समूहों को देना शुरू भी कर दिया है.
आमतौर पर आरएसएस के सर संघचालक विजयादशमी पर्व पर दिए जाने वाले अपने भाषण का फोकस हिंदुत्व की विचारधारा और उसे अधिकतम प्रसारित करने के तौर-तरीकों पर ही रखते हैं. लेकिन शायद ऐसा पहली बार हुआ है, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अन्य तमाम मुद्दों के अलावा आतंकवाद और नशे के कारोबारी गठजोड़ का जिक्र करते हुए सरकार को आगाह किया है कि वे इस पर पूरी तरह से नियंत्रण पाने के लिए तत्काल ठोस उपाय करें. उन्होंने नशे की लत को एक सामाजिक बुराई बताते हुए ये कहा था कि हम सभी को पता है कि नशीले पदार्थों के कारोबार से मिलने वाले धन का इस्तेमाल राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए किया जाता है और भारत की सीमा से सटे देश इसे प्रोत्साहित करते हैं. लेकिन सरकार को ओटीटी विषय वस्तु के विनियमन, बिटकॉइन का इस्तेमाल रोकने और नशीले पदार्थों की समस्या को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए तत्काल प्रयास करने चाहिए.
जाहिर है कि संघ को भी ये अहसास हो चुका है कि नशीले पदार्थों के कारोबार को रोके बगैर आतंकवाद की कमर तोड़ पाना,एक तरह से नामुमकिन है. बीजेपी की सरकार केंद्र में हो या फिर राज्यों में,संघ उन्हें रिमोट से संचालित नहीं करता, बल्कि वो इसी तरह की सांकेतिक भाषा के माध्यम से सरकार को ये संदेश दे देता है कि आखिर वो क्या चाहता है.
नशीले पदार्थों के धंधे और आतंकवाद के चोली-दामन वाले साथ को समझने के लिए संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट को भी समझना होगा जिसमें आतंकियों को मिलने वाले पैसों के स्रोत का खुलासा किया गया थ. उस रिपोर्ट के मुताबिक अफीम की खेती पर अफगानिस्तान का एकाधिकार है और उसमें करीब 90 फीसदी हिस्से पर आतंकी संगठनों का कब्जा है. रिपोर्ट में दिये गए आंकड़ों के मुताबिक करीब 65 अरब डॉलर (लगभग तीन हजार अरब रुपए) आतंकी संगठनों को मिलते हैं. इनमें अफीम की खेती और उसका व्यापार ही प्रमुख साधन है. अहम बात यह है कि इनके खरीदार कमोबेश दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं. इनमें कई बहुत ज्यादा पैसे वाले भी शामिल हैं.नशीली दवाओं और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस (यूएनओडीसी) ने एक रिपोर्ट में कहा था, अफगानिस्तान से अफीम बेचने का कारोबार पाकिस्तान, मध्य एशिया और ईरान के रास्ते दुनियाभर में फैला हुआ है,जिस पर काबू पाना सरकारों के लिए बेहद मुश्किल नज़र आता है.
लेकिन एक सच ये भी है कि दुनिया में आतंकवाद को पनपाने में नशे के कारोबार के अलावा कई ऐसे अमीर मुल्क भी हैं,जो उन्हें दिल खोलकर मदद देते हैं,जिसे चैरिटी का नाम दे दिया जाता है.आतंकी संगठनों को मिलने वाले पैसों में सबसे बड़ा हिस्सा इसी चैरिटी यानी अनुदान का होता है. इनमें भी सबसे अहम भूमिका किसी खास शख्सियत की ओर से दिया जाना वाला दान होता है. अर्से तक कुछ खास शख्स और सउदी अरब आतंकी संगठनों के फंडिंग के प्रमुख स्रोत हुआ करते थे.अमेरिका में हुई 9/11 की घटना में आतंकी संगठन अल कायदा द्वारा खर्च किये गए पैसों में सबसे ज्यादा पैसा सऊदी अरब के लोगों ने बतौर चैरिटी दिया था.साल 2004 में आतंकियों की फंडिंग के खिलाफ काम करने वाली स्पेशल टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सऊदी अरब ने भले ही साल 2002 में अल-कायदा समेत दूसरे संगठनों को फंडिंग करने वालों पर कार्रवाई की बात की हो. पर अभी भी इस देश से आतंकियों को पैसे दिए जा रहे हैं.
करीब दो साल पहले अमेरिका की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कई देशों में तबाही मचाने वाले सबसे बड़े आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) की संपत्ति 1.7 बिलियन डॉलर है, जो अब बढ़कर न जाने कहां पहुंच गई होगी.
दरअसल, दहशतगर्दों का कोई भी समूह खुद को कभी भी आतंकी संगठन नहीं कहता. ना ही वह दहशत या नशे का कारोबारी होना ही स्वीकारता है. आमतौर पर आतंकी संगठन अपना उद्देश्य इस्लाम की रक्षा, दुनिया में इस्लाम का विस्तार, इस्लामी कौम की बदहाली का उत्थान, जिहाद, मस्जिदों की रक्षा आदि बताते हैं. ये अरब जैसे मुल्कों के अमीर शेखों को अपने मज़हबी जुनून के जाल में फांसने का एक इमोशनल तरीका होता है, जिनके लिए दो-चार लाख डॉलर की मदद कर देना, मुंगफली के कुछ दाने देने जैसा ही होता है. हाल ही में वाशिंगटन पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पढ़ा-लिखा अमीर इस्लामी तबका भी आतंकी संगठनों को खुलकर पैसा मुहैय्या कराता है. क्योंकि दुनिया में बहुत सारे लोग आज भी इन आतंकी संगठनों को इस्लामी मसीहा और जिहादी संगठन मानते हैं.
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