मैरिटल रेप यानि पत्नी के साथ पति के जबरन संबंध के मामले पर देश की सर्वोच्च अदालत में 21 मार्च को अगली सुनवाई होगी. इस मामले में कोर्ट ने केन्द्र सरकार से 15 फरवरी तक अपना जवाब देने के लिए कहा है. इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट में भी इस पर याचिका दायर की गई थी. उसमें भी दोनों जजों की राय बिल्कुल अलग-अलग थी. कई दिनों तक इस मुद्दे पर जिरह हुई थी. सबसे बेसिक मुद्दा ये है कि मैरिटल रेप को हमारी सोसायटी और हमारे देश में माना जाना चाहिए भी या नहीं? ये एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछा है. वास्तविक प्रतिनिधि सरकार ही होती है, जो लोगों का प्रतिनिधित्व करती है. 


वहीं दूसरी तरफ हमें ये ध्यान रखना होगा कि जो वैवाहिक संबंध है, खासकर भारत में, वो एक रिलिजियस सेरेमनी है. मैरिटल रेप को अगर कोर्ट से इजाजत मिलती है तो तो समाज का बुनियादी ढांचा बिल्कुल ही हिल जाएगा. बाकी विकसित देशों में ये देखते हैं कि मैरिटल इंस्टीट्यूशन की बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रह गई है. लेकिन हमारे देश में अभी भी ये है.


मैरिटल रेप को मान्यता देने से हिल जाएगी रिश्तों की बुनियाद


मुझे लगता है कि जब ये कानून बना तब बहुत सोच समझकर बना था, जो आज भी पहले से बने कानून 375 है भारतीय दंड संहिता में, उसी को जारी रखा जाना चाहिए. क्योंकि अगर नहीं चलेगा तो फिर मैट्रिमोनियल इंस्टीयूशन बर्बाद हो जाएंगे. अगर कोई घरेलू हिंसा करता है, यानी महिला की बिना सहमति के कोई पुरुष उससे संबंध बनाता है, जोर जबरदस्ती कर रहा है तो फिर उसे भी देखना होगा. इसके लिए पहले से ही काफी प्रावधान है. जैसे- 'Protection of women from domestic violence'. उसमें भी इस तरह की घटनाओं की हम लोग याचिका डालते हैं कि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ संबंध बनाता है, तो ये भी एक क्रूरता है.


इस तरह की मांग आखिर क्यों उठी?


दरअसल, इस बारे में लोगों को जागरूक करना होगा. इसमें हो सकता है कि लीगल अवेयरनेस भी आम लोगों तक न पहुंचा हो क्योंकि जब पहले से ही कानून है ऐसी महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए, फिर इस तरह के कदम से कोई असर नहीं होगा. जो इस मानसिकता के लोग हैं वे बाज नहीं आएंगे. लेकिन जो सबसे ज्यादा असर पड़ने वाला है वो ये कि इसका रिश्तों पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव होगा. क्योंकि हर एक केस में इसका एक पार्टिकुलर समाज फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है.


आईपीसी की धारा 406, 498 ए ये देखा गया कि दहेज विरोधी कानून का किस तरह से गलत इस्तेमाल हथियार के तौर पर फंसाने के लिए किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लिया कि इसमें थोड़ा कानून को लचीला करने की जरूरत है. एक महिला को बचाने के लिए अगर घर की आठ महिलाओं का नाम दिया जाता था, तो वो सभी महिलाएं परेशान हो जाती थी.


प्रोटेक्शन ऑफ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेन्स में सिर्फ पत्नी की सुरक्षा ही नहीं बल्कि किसी अन्य तरह का अगर अन्याय घर के अंदर हो रहा है तो उसके लिए वह सुरक्षा सरकार ने बना रखा है.


किस बुनियाद पर कोर्ट फैसला देता है?    


एक पक्ष के लोगों की शिकायत है कि इसे मैरिटल रेप में लाना चाहिए. हो सकता है कि वो पक्ष सही हो. लेकिन इससे समाज की व्यवस्था न बिगड़े, इसके लिए इसे व्यापक तौर पर देखने की जरूरत है. मेट्रोमोनियल के मामलों में 100-200 फीसदी बढ़ गए हैं. इसलिए वो पहलू भी देखने की जरूरत है. जिस बात के लिए यह देश जाना जाता था- पति-पत्नी के सात जन्मों का यह रिश्ता माना जाता था, उसमें काफी बदलाव आ गया है. इसलिए अगर कोई महिला किसी घर में प्रताड़ित हो रही है या फिर उसका पति उसके साथ दुर्व्यवहार कर रहा है तो उसे डोमेस्टिक वायलेंस में डाला जा सकता है. वहां पर उसके खिलाफ एक्शन हो सकता है.


ऐसे में अगर मैरिटल रेप का दर्जा दिया जाता है तो सामाजिक ताना-बाना हिल जाएगा. इसे प्रूव करने के लिए किसी मेडिकल एग्जामिनेशन की जरूरत नहीं होगी. एक महिला को बोलना ही काफी रहेगा. 375 आईपीसी के दायरे में वो पूरा परिवार तहस-नहस हो जाएगा.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]