बिहार दौरे पर गए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जहां रामनवमी हिंसा को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर 2025 में बीजेपी की सरकार आएगी तो दंगाइयों को उल्टा लटकाया जाएगा, तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने कहा कि सीएम नीतीश और ललन सिंह के लिए दरवाजे अब पूरी तरह से बंद हो चुके हैं. सवाल उठ रहा है कि अमित शाह की तरफ से ऐसा बयान क्यों दिया गया है? इसके इसके पीछे की आखिर क्या है सियासत?
पहली बात तो है कि राजनीति में चीर स्थाई कुछ भी नहीं होता है. अभी पिछले दिन अमित शाह ने दो दिवसीय दौरे के दौरान नवादा की सभा जो उन्होंने हुंकार भरी और ये कहा कि भाजपा में जदयू की एंट्री अब नहीं होगी...तो इसके पीछे एक गहरी राजनीति है. इसे मैं, दो-तीन एंगल से देखता और समझता हूं. पहली बात ये कि इससे पूर्व भी जब अमित शाह बिहार के दौरे पर आए थे और वो पटना के बापू सभागार में किसान मजदूर समागम में शामिल हुए थे और फिर वे वाल्मीकिनगर गए थे तब भी उन्होंने इसी तरह की बातें कहीं थी...कि अब बीजेपी में जदयू की एंट्री नहीं है....तो बड़ा सवाल यहां पर खड़ा होता है कि क्यों वो इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं. उन्होंने एक और बात कही है कि अभी जदयू के जितने सांसद हैं उनमें से वो भाजपा के दरवाजे खटखटा रहे हैं...यानी जदयू के 16 में से 8 सांसद भाजपा में जाने को तैयार बैठे हैं. ये वाकई में पर्दे के पीछे की बात है और अमित शाह ने इसका पहली बार जिक्र किया है. इसका मतलब ये भी है आधे सांसदों के भाजपा में शामिल होने की बात लगभग पूरी हो गई है और अगर नीतीश कुमार महागठबंधन की तरफ रहते हैं तो ये सांसद अपना पाला बदल लेंगे. वो पाला इसलिए भी बदलेंगे क्योंकि उन्होंने लालू यादव के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उसी से उनकी पहचान हुई और वे सांसद बने विधायक बने...तो उनको ये दिक्कत हो रही है. चूंकि वहां की जनता उन सांसदों से विधायकों से ये सवाल कर रही है कि आप जो हैं लालू के खिलाफ लड़ाई लड़े थे. हमने आपको इसलिए वोट दिया था, जंगलराज के खिलाफ वोट किया था लेकिन अब हम आपको क्यों वोट देंगे, आप तो उनके पाले में चले गए हैं.
राजनीति में कुछ भी नहीं स्थाई
दूसरी वजह यह है कि महागठबंधन में अगर नीतीश कुमार बने रहते हैं 2024 तक और इस बात की पूरी संभावना है. इसमें कोई दो राय नहीं है तो जो आठ सांसद पाला बदलना चाह रहे हैं उनका टिकट कट सकता है...तो इस वजह से वो चाह रहे हैं कि हम अपना नया ठौर-ठिकाना ढूंढ लें. इसलिए वे भाजपा के दरवाजे खटखटा रहे हैं....तो कहने का मतलब ये है कि अमित शाह बिहार आए और उन्होंने ऐसी बातें क्यों कहीं तो बिहार की जो मौजूदा राजनीति है वो फिलहाल 360 डिग्री पर घूम रही है. ये तब तक घूमेगी जब तक की 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम नहीं आ जाएगा. इससे ये भी है कि भाजपा के आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है. चूंकि अमित शाह इस बात को जान रहे हैं कि जिनके सांसद हमारे संपर्क हैं, अपनी पार्टी को छोड़ना चाहते हैं..तो जाहिर सी बात है कि उनके वोटर भी जमीनी स्तर पर भाजपा के साथ जुड़ेंगे और इसमें कहीं न कहीं सच्चाई भी है. देखिये, जदयू के जो वोटर हैं वो कहीं न कहीं राजद के समर्थकों जैसे मुखर नहीं हैं. ये वैसे वोटर हैं जो समय आने पर सिर्फ बटन दबाते हैं और इन वोटरों में मंथन का एक बड़ा दौर चल रहा है. अगर नीतीश कुमार लालू यादव के साथ बने रहते हैं तो इन्हें लगता है कि उनके लिए भाजपा एक बेहतर विकल्प बन सकती है. इसीलिए अमित शाह इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं.
तीसरी वजह ये है कि इससे भाजपा को फायदा ही मिल रहा है. वो ये कि जो भाजपा के कार्यकर्ता हैं बिहार में उनमें जोश, उमंग, उल्लास और उत्साह भर रहे हैं. भाजपा का जो शीर्ष नेतृत्व है वो यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि देखिये, आप घबड़ाई नहीं, 2024 की जो जंग होने वाली है, उसमें हमारी फतेह तय है. इसलिए आप जी-जान से इस अभियान में लगे रहिए. दूसरी तरफ जदयू के जो वोटर हैं उसको भोथरा कर रहे हैं. मतलब उनको कह रहे हैं कि देखिये आपका बेहतर विकल्प मैं हूं. हमने ही आज इस मुकाम पर नीतीश कुमार को खड़ा किया था. हमारे वोट के दम पर ही नीतीश कुमार इतने दिनों तक राज किए और इतना बड़ा चेहरा बन पाए. इस तरीके से भाजपा और अमित शाह की जो चाल है वो दोधारी है. एक तरफ वो अपने कार्यकर्ताओं में उमंग व उत्साह भर रहे हैं तो दूसरी तरफ जदयू के जो वोटर हैं उनको अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
भाजपा को ये पता है कि अभी नरेंद्र मोदी के चेहरे का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है. अभी यहां पर फील गुड वाली स्थिति नहीं है कि जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी क्योंकि आप अगर गौर करेंगे तो पाएंगे कि भाजपा में अति उत्साह नहीं है बल्कि आत्मविश्वास है. इसको ऐसे देखना होगा कि अभी जो शाह का कार्यक्रम हुआ है उसे लोकसभा क्लास नाम दिया गया है. मतलब ये है कि बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर भाजपा जहां-जहां से चुनाव लड़ना चाह रही है, उन सीटों पर बीजेपी के जो आला अधिकारी हैं या जो शीर्ष नेतृत्व है वो प्रवास कर रहा है यानी कि वहां पर अभी से ही सभाएं शूरू हो गई हैं. पिछले दिनों जेपी नड्डा ने वैशाली लोकसभा क्षेत्र का दौरा किया था. वैशाली जो सीट है वो वीणा देवी की हैं और वो अभी लोजपा के पशुपति पारस गुट से हैं. नवादा में भी पशुपति पारस गुट के सांसद हैं चंदन सिंह वहां से हैं.
बिहार में बदल रही बीजेपी की सियासत
जिस तरह से नीतीश कुमार ने भाजपा को छोड़ कर महागठबंधन के साथ चले गए हैं तो भाजपा के जो जमीनी स्तर और पंचायत स्तर के जो कार्यकर्ता हैं उनके मन में ये लगातार सवाल हैं कि आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि हमारा कोई बड़ा नेता बन प्रदेश स्तर पर जिसके चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सके. चूंकि भाजपा कि ये अब तक मजबूरी रही थी कि वो नीतीश कुमार के आंगन में जाकर बैठ जाए. लेकिन अब चीजें बदल रही हैं. भाजपा ने सम्राट चौधरी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और वो ओबीसी से आते हैं. नीतीश कुमार अति पिछड़ा के चेहरे हैं. अभी पिछले दिनों अमित शाह के जवाब में जदयू के जो एमएलसी हैं नीरज कुमार हैं उन्होंने भी ये बात कही कि देखिये अति पिछड़ा मुख्यमंत्री हैं और वो भाजपा को बर्दाश्त नहीं हो रहा है...तो वही काम भाजपा बिहार में करने की कोशिश कर रही है, चेहरे को उभारने की कोशिश कर रही है. उसने सम्राट चौधरी को सामने खड़ा करके वो भी ओबीसी हैं. अति पिछड़ा वर्ग से हैं..तो कहने का मतलब ये है कि नीतीश कुमार को जवाब देने के लिए भाजपा जो है वो अपनी पूरी तैयारी में है. तो भाजपा अभी से ही 2024 के लिए तैयारी कर रही है चूंकि वह जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय जो फील गुड वाली गलती हुई थी यानी कि कार्यकर्ताओं को ये नहीं लगे कि वे वैसे ही जीत जाएंगे. उन्हें धरातल पर सक्रिय रहने और उनमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश अभी से की जा रही है.
अभी का सीन दिख रहा है उसमें तो वाकई में 2024 तक नीतीश कुमार की इंट्री भाजपा में नहीं होने जा रही है. वो इसलिए नहीं होगी क्योंकि भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसे नेता हैं और उन्हें टक्कर देने वाला देश में अभी कोई नहीं है. चूंकि विपक्षी जो दल हैं उनमें कई चेहरे हैं उसमें ममता बनर्जी हैं, अखिलेश यादव हैं, नीतीश कुमार हैं, तमिलनाडु से एमके स्टालिन भी हैं, तेलंगाना से केसीआर भी हैं तो ऐसे में ये कहा जा रहा है कि 2004 में जो परिस्थितियां बनी थीं, उसी को फिर से दोहराने की कोशिश कांग्रेस कर रही है लेकिन वो हो नहीं पाएगा क्योंकि भाजपा के पास एक बहुत ही मजबूत चेहरा है और उसको टक्कर दे पाना अभी संभव नहीं है. तो 2024 का जो चुनाव है उसके लिए भाजपा को ये बात पता है कि वह आसानी से चुनाव जीत जाएगी...तो इसलिए भाजपा चाह रही है कि ये हमारे लिए एक बड़ा मौका है और हम इस बीच में 2025 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़े चेहरे को उभार दें और वो चेहरा कहीं न कहीं अब सम्राट चौधरी के रूप में दिखने लगा है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]