कोरोना: डॉक्टर चेता रहे सरकारों को, आखिर क्यों पुरानी गलती दोहरा रहे?
कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन ने भारत से भी कहीं ज्यादा अमेरिका, रुस और अन्य यूरोपीय देशों में अपना कहर बरपा रखा है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले डेढ़-दो महीने के भीतर पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण के करीब तीन अरब नये मामले सामने आ सकते हैं. इस महामारी पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का आकलन है कि अगले कुछ दिनों में ही ये संक्रमण अपने पीक पर होगा, जब हर रोजसाढ़े तीन करोड़ से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं. लेकिन थोड़ी हैरान और परेशान करने वाली बात ये है कि हमारे देश में इससे निपटने के लिए उन गलतियों को दोहराया जा रहा है, जो पिछले साल आई दूसरी लहर के वक्त देखने को मिली थी.
ऐसे हालात से चिंतित होकर ही देश-विदेश के तकरीबन तीन दर्जन नामी-गिरामी डॉक्टरों ने केंद्र की मोदी सरकार समेत सभी राज्यों की सरकारों को आगाह करते हुए एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने कोरोना वायरस महामारी की वर्तमान लहर से निपटने के लिए जांच के जिन अनुचित तरीकों को अपनाया जा रहा है और मरीजों को जिस तरह से अनगिनत दवाएं लेने की सलाह दी का रही है, उसे लेकर सरकारों को साफ लहज़े में चेतावनी दी है. सरकारों को लिखे इस खुले पत्र में इन डॉक्टरों ने साफ कहा है कि दवाओं का अनावश्यक इस्तेमाल नुकसानदायक साबित हो सकता है, जैसा कि हमने इस महामारी की शुरुआती दो लहरों में देखा है.
इस चिट्ठी में सरकार में बैठे नीति-निर्माताओं को नींद से जगाते हुए उनका ध्यान इस तरफ खींचा गया है कि "डेल्टा लहर की भयावह मृत्यु दर और उपलब्ध साक्ष्यों के बावजूद हम देख रहे हैं कि कोविड-19 के क्लिनिकल प्रबंधन के दौरान वही गलतियां दोहराई जा रही हैं जो हमने साल 2021 में की थीं. हम आपसे अनुरोध करते हैं कि उन दवाओं और जांचों का इस्तेमाल बंद करने के लिए दखल दें, जो इस महामारी के क्लिनिकल प्रबंधन के लिए उचित नहीं हैं. बड़ी संख्या में एसिम्टोमैटिक और हल्के लक्षण वाले मरीजों को दवा की कम जरूरत पड़ेगी या हो सकता है कि उन्हें बिल्कुल भी इसकी जरुरत न पड़े. "
दरअसल, इन डॉक्टरों की चेतावनी देने और समय रहते हमारी सरकारों को सचेत करने की वाज़िब वजह भी है. वह ये कि करीब पौने दो साल पहले यानी मार्च 2020 में जब कोरोना की पहली लहर ने देश में दस्तक दी थी, तब महानगरों के अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को बचाने के लिए कई सारी अनावश्यक दवाएं देने का इस्तेमाल नहीं बल्कि प्रयोग किया गया. लेकिन जब पिछले साल अपने भयावह रूप के साथ दूसरी लहर आई, तब और भी ज़्यादा ऐसी दवाओं का इस्तेमाल किया गया, जिनकी मेडिकल साइंस के लिहाज से जरूरत नहीं थी क्योंकि उनके साइड इफेक्ट्स को हर शरीर नहीं झेल सकता था. महानगरों से निकले इलाज के इस नुस्ख़े को कमोबेश हर छोटे शहरों के चिकित्सकों ने भी अपनाया.
शायद यही वजह है कि इन डॉक्टरों ने अपनी चिट्ठी में साफतौर पर ये भी चेताया है कि इस वायरस से संक्रमित किसी रोगी को गैरजरूरी दवाओं को लेने की सलाह देना, एक गलत प्रैक्टिस है जिस पर रोक लगनी चाहिए. अपने इस पत्र में डॉक्टरों ने कहा है, "हमने पिछले दो सप्ताह में कई डॉक्टरी सलाह की समीक्षा की है, जिनमें कई कोविड-19 किट और कॉकटेल भी शामिल हैं. कोरोना वायरस के इलाज के लिए विटामिन के कॉम्बिनेशन, एजिथ्रोमाईसीन, डॉक्सीसाइक्लीन, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, फैविपिराविर और आइवरमेक्टिन की दवाओं का परामर्श देना उचित नहीं है. " जाहिर है कि विभिन्न डॉक्टरों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों को दी गई सलाह के पर्चे देखने के बाद ही इन डॉक्टरों की टीम इस नतीजे पर पहुंची है. उसके बाद ही इन्हें ये लिखने पर भी मजबूर होना पड़ा कि " सरकारों और मेडिकल संगठनों को ऐसे अभ्यासों पर रोक लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए. "
हमारे ही देश के कई वैज्ञानिक बार-बार दोहरा रहे हैं कि ओमिक्रोन से पैनिक होने की जरुरत नहीं है क्योंकि ये डेल्टा के मुकाबले कम घातक है यानी उतना जानलेवा नहीं है लेकिन इसका ये भी मतलब नही कि हम बेपरवाह हो जाएं. हमारे यहां इसकी तीसरी लहर के जनवरी अंत से लेकर फरवरी मध्य तक पीक पर पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है. इस दौरान प्रतिदिन नौ से 10 लाख नये मामले सामने की आशंका भी जताई जा रही है. अच्छी बात ये है कि मृत्यु दर वैसी नहीं होगी, जो हमें दूसरी लहर के वक़्त देखने को मिली थी. लेकिन सबसे अहम ये है कि पीक खत्म हो जाने के बाद भी हमें अपने इस दुश्मन को कमजोर समझने की गलती नहीं करनी होगी.
वैसे भारत के हालात फिर भी बेहतर हैं क्योंकि इस समय अमेरिका में ओमिक्रॉन के 73 प्रतिशत से अधिक केस देखने को मिल रहे हैं. वाशिंगटन विश्वविद्यालय के हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवेल्युएशन इंस्टीट्यूट के नए मॉडल के अनुसार जनवरी से मार्च के बीच संक्रमणों में इजाफा होगा लेकिन लोगों में अधिक गंभीर लक्षण देखने को नहीं मिलेंगे और डेल्टा वेरिएंट की तुलना में बहुत कम लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ेगी और लोगों की मौत का आंकड़ा भी कम होगा.
इसमें ये भी कहा गया है कि कोविड का पीक जनवरी के अंत तक आ सकता और उस समय हर दिन 28 लाख मामले देखे जा सकते हैं. एक अनुमान के अनुसार जनवरी से मार्च के बीच अमेरिका में करीब 14 करोड़ लोग संक्रमित होंगे लेकिन उनके लक्ष्ण गंभीर नहीं होंगे. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि डेल्टा के मुकाबले ओमिक्रोन की वजह से लोगों के संक्रमण-अस्पताल में भर्ती होने की दर 90 से 96 प्रतिशत कम रहेगी और संक्रमण-मृत्यु दर भी 97 से 99 प्रतिशत कम रहेगी. वजन के वैज्ञानिकों के मुताबिक फ्लू संक्रमण की तुलना में ओमिक्रॉन कम घातक रहेगा, लेकिन इसकी संक्रमण दर काफी ज्यादा होगी. लेकिन हमें तो सिर्फ ये ख्याल रखना है कि इस अदृश्य दुश्मन से निपटने का एक ही तरीका है हमारे पास और वो है, हमारे चेहरे का मास्क. ये सिर्फ हमारे नहीं बल्कि दुनिया के लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना रहेगा, न जाने कितने साल!
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