(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नीतीश सरकार के मंत्री आखिर बार-बार क्यों कर रहे हैं सवर्णों का अपमान?
Bihar Politics: बिहार की नीतीश सरकार के एक मंत्री ने सवर्ण जातियों को लेकर जो विवादास्पद बयान दिया है, उसने प्रदेश में सियासी भूचाल ला दिया है.आरजेडी के खेमे से राजस्व व भूमि सुधार मंत्री बने आलोक मेहता के दिए इस बयान से बीजेपी के साथ ही सत्तारुढ़ जेडीयू के नेता भी उनके ख़िलाफ़ भड़क उठे हैं. लेकिन वह पहले ऐसे नेता या मंत्री नहीं हैं. उनसे पहले शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर ने भी रामचरित मानस को नफ़रत फैलाने वाला ग्रंथ बताया था. इसलिये सवाल उठता है कि सरकार में शामिल आरजेडी के मंत्री सवर्णों को आखिर क्यों निशाना बना रहे हैं और इसके पीछे जातीय समीकरण साधने की आखिर क्या गोलबंदी हो रही है?
दरअसल, राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने सवर्ण जातियों पर निशाना साधते हुए कहा है कि 'सवर्ण जाति के लोग अंग्रेजों के पिट्ठू और दलाल थे. इनकी तादाद 10 फीसदी थी. अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता इन्हीं 10 फीसदी लोगों के हाथ रही. ये 10 फीसदी आरक्षण वाले अंग्रेजों के दलाल थे. ये मंदिरों में घंटी बजाते थे.' जाहिर है कि उनके इस बयान पर सियासी बवाल मचना ही था लेकिन इसके विरोध में बीजेपी को जेडीयू नेताओं का भी साथ मिल गया है.
हालांकि विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने मेहता के बयान को घोर आपत्तिजनक व विद्वेषपूर्ण बताते हुए कहा है कि इस तरह का बयान देकर वे समाज में सवर्णों व सनातनियों के प्रति नफरत और जहर फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ऐसे बयान दिलवाने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को लपेटते हुए कहा कि जातीय और धार्मिक आधार पर गोलबंदी के लिए सोची-समझी साजिश के तहत ऐसे बयान दिए जा रहे हैं. कभी लालू यादव न3 'भूरा बाल साफ करो' का नारा दिया था, तो अब उसी रास्ते पर चलते हुए उनके बेटे तेजस्वी 'अगड़ों' को गालियां दिलवा रहे हैं.
दरअसल, पिछले तीन दशक से बिहार में पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के वोटर ही सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका तय करते आए हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है इन दोनों वर्गों का मजबूत संख्याबल. यही कारण है कि सभी दल उसे अपने पाले में करने में जुटे रहते हैं. राज्य में ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को मिलाकर कुल 50% से अधिक आबादी है. इसमें सर्वाधिक संख्या यादव जाति की है. जानकारों की माने तो बिहार में यादवों की संख्या 14% के लगभग है. नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से हैं जिनकी आबादी 4 से 5 प्रतिशत के बीच समझी जाती है. लेकिन कुर्मी से ज्यादा ताकत कुशवाहा वोटरों की मानी जाती है,जिनकी संख्या 8 से 9 प्रतिशत के बीच है. हालाँकि कुशवाहा वोटर को भी जेडीयू का मजबूत वोट बैंक माना जाता है.
लेकिन बिहार में सर्वणों की कुल आबादी 15-16 प्रतिशत के आसपास ही है, इसलिये उन्हें राजनीतिक लिहाज से कमजोर ताकत के रुप में देखा जाता है. इनमें भूमिहार 6%, ब्राह्मण 5%, राजपूत 3% और कायस्थ की जनसंख्या महज़ एक प्रतिशत है. सवर्णों को बीजेपी का मजबूत वोट बैंक समझा जाता है लेकिन नीतीश के एनडीए से चले जाने के बाद बीजेपी ने ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग में अपनी खासी पैठ बना ली है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश-तेजस्वी को बीजेपी की ये मुहिम रास नहीं आ रही है,इसीलिये वे अपने मंत्रियों से राम,रामायण और अब सवर्णों को अपमानित करने वाले बयान दिलवा रहे हैं. वे जानते हैं कि उन्हें सवर्णों का वोट तो मिलना नही है,लिहाजा उनके लिए अपमानजनक बयान देने से कोई नुकसान नहीं होने वाला है,बल्कि इस बहाने अपने वोट बैंक को गोलबंद करने का ही फायदा होगा.
हालांकि रामचरित मानस को लेकर शिक्षा मंत्री के बयान पर भी जेडीयू और आरजेडी आमने सामने हो गए थे और अब मंत्री आलोक मेहता के बयान पर भी दोनों एक-दूसरे का विरोध करते दिख रहे हैं. लेकिन प्रतिपक्ष के नेता विजय सिन्हा के मुताबिक आरजेडी और जेडीयू महज दिखावे के लिए नूरा-कुश्ती कर रहे हैं. जबकि किसी भी मंत्री के ख़िलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
पूर्व मंत्री और जेडीयू के एमएलसी नीरज कुमार ने कहा है कि 'मंत्री आलोक मेहता पहले इतिहास की जानकारी लें, तब इस तरह की बयानबाजी करें. कोई हमारे पूर्वजों को अपमानित करे, यह बर्दाश्त नहीं होगा.
सवर्ण जाति के लोगों ने अग्रेजों से लड़ाई में अपने खेत-खलिहान तक बेच दिये थे और जेलों में कई लोगों ने जिंदगी बिता दी. आलोक मेहता को पता होना चाहिए कि आजादी की लड़ाई जाति-धर्म के आधार पर नहीं लड़ी गई थी. मेहता का बयान दुखद और अपमानजनक है.'
अब सवाल ये उठता है कि नीतीश कुमार अगर ऐसे बयानों के सचमुच ख़िलाफ़ हैं,तो वे अपने मंत्रियों को सार्वजनिक रुप से लताड़ते हुए उनकी जुबान पर लग़ाम कसने से आखिर परहेज़ क्यों कर रहे हैं?
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