सुनकर थोड़ी हैरानी होगी लेकिन ये सच है कि भारत में महिलाएं नौकरी नहीं तलाश रही हैं.पिछले दो सालों  में तो इसकी एक बड़ी वजह कोरोना महामारी को भी मान सकते हैं लेकिन हाल ही में हुई एक ताजा स्टडी के नतीजों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों की तुलना में सक्रियता से नौकरी तलाशने वाली महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट आई है. ये चिंता का विषय भी है और समाज के लिये शुभ संदेश भी नहीं है.


सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की इस स्टडी के अनुसार साल 2017 से 2022 के बीच लगभग 2.1 करोड़ महिलाओं ने स्थायी तौर पर रोज़गार छोड़ दिया. इसका मतलब है कि या तो वे महिलाएं बेरोज़गार हैं या फिर नौकरी की तलाश ही नहीं कर रही हैं.महिलाओं के नौकरी से दूरी बनाने का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था में कामगारों की भागीदारी में गिरावट आ रही है,जिसे अच्छा संकेत नहीं माना ज सकता.


CMIE की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, 2017 में जहां 46 फ़ीसद आबादी अर्थव्यवस्था के कामगारों में शामिल थी, वहीं 2022 में ये हिस्सेदारी घटकर 40 प्रतिशत ही रह गई है.यानी पिछले पांच सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में कामगारों की भागीदारी में छह फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है,जिसे अर्थव्यवस्था की सेहत के लिहाज से ठीक नहीं कह सकते. देश के कामगारों में महिलाओं की भागीदारी में पिछले कई वर्षों से लगातार कमी आ रही है.


वर्ष 2004-5 में युवा (15-29 वर्ष) ग्रामीण महिलाओं की कामगारों में भागीदारी की दर (LFPR) 42.8 प्रतिशत थी. उसके बाद से ही इसमें लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है और 2018-19 में ये दर गिरकर 15.8 फ़ीसद ही रह गई थी. पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक़ 2018-19 में शहरी युवा महिलाओं (15-29 वर्ष) की बेरोज़गारी की दर 25.7 फ़ीसद थी. जबकि इसी उम्र के शहरी पुरुषों के बीच बेरोज़गारी की दर 18.7 प्रतिशत ही थी. CMIE के ताज़ा आंकड़े तो और भी चिंताजनक हैं. जनवरी से अप्रैल 2016 के बीच 2.8 करोड़ महिलाएं बेरोज़गार थीं लेकिन वे काम करना चाहती थीं.जबकि दिसंबर 2021 तक ऐसी महिलाओं की संख्या घटकर 80 लाख ही रह गई थी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि महिलाएं आखिर नौकरी क्यों नहीं करना चाहती हैं.स्टडी के नतीजे बताते हैं कि
महिलाओं के घर से काम के लिए न निकलने की तमाम वजहों में से सबसे बड़ी वजह ये है कि उनके नौकरी करने में घर के लोगों की राय का शामिल न होना है. महामारी के चलते ये भी हो सकता है कि महिलाओं के दोबारा काम करने की संभावना पर ही पूर्ण विराम लग गया हो.


महिलाओं के काम पर न जाने की एक वजह उनके खिलाफ होने वाले अपराध भी हैं.इनिशिएटिव फ़ॉर व्हाट वर्क्स टू एडवांस वुमेन ऐंड गर्ल्स इन द इकॉनमी (IWWAGE) द्वारा किए गए एक सर्वे में ये पाया गया है कि जिन राज्यों में कामगारों में महिलाओं की भागीदारी कम है, वहां पर महिलाओं और लड़कियों से होने वाले अपराध की दर ज़्यादा होती है. जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2011 से 2017 के बीच राज्य स्तरीय अपराध के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ़ अपराध में मामूली बढ़ोत्तरी आई है और इसी बीच में कामगारों में महिलाओं की भागीदारी भी घटती हुई दर्ज की गई.


हालांकि इसे पुख्ता सबूत नहीं मान सकते और इस रिसर्च से यही साफ होता है कि अपराध और कामगारों के बीच नकारात्मक संबंध होता है. लेकिन, ये पाया गया है कि महिलाओं के काम करने की राह में आने वाली तमाम दिक़्क़तों में महिलाओं से होने वाले अपराध भी बड़ी वजह हैं, जिनके चलते महिलाएं घर से नहीं निकलतीं और काम पर नहीं जाती हैं. महिलाओं के नौकरी कम तलाशने के आंकड़ों पर गौर करें,तो भारत में कोरोना महामारी के आने से पहले साल 2019 में औसतन 95.2 लाख महिलाएं हर महीने सक्रियता से नौकरी तलाश करती देखी गई थीं. 2020 में ये आंकड़ा घटकर 83.2 लाख ही रह गया. और 2021 में तो हर महीने नौकरी तलाशने वाली महिलाओं की तादाद और भी घटकर महज़ 65.2 लाख ही रह गई. लेकिन इसके उलट 2019 की तुलना में नौकरी तलाश करने वाले पुरुषों की संख्या 2021 में तेजी से बढ़ी.मतलब ये कि महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी छीन गईं और उन्हें दूसरी तलाशनी पड़ी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)