इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में से तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को शानदार जीत मिली. इसके बाद तीनों ही राज्यों में सीएम के अलावा दो-दो डिप्टी सीएम बनाए गए. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का संकल्प है: 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास'.
पार्टी का संगठन और नेतृत्व भूमिका तय करते हैं. जिस कार्यकर्ताओं को अहम जिम्मेदारी दी जाती है, उसके अंदर ये देखा जाता है कि उनका संगठन में योगदान, सामाजिक स्तर पर सबको साथ लेकर चलने की कितनी क्षमता है, ताकि सभी जाति-वर्ग के लोगों के समूह को शासन में भागीदारी मिल पाए. पार्टी का संकल्प है पिछड़े, दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों को आगे लेकर आना और उनके समृद्धि के लिए काम करना.
इन सबके पैमाने पर जो नेता, कार्यकर्ता खड़ा उतरता है, उनको पार्टी का नेतृत्व अहम दायित्व देता है. संगठन, कार्यकर्ता और जनता-जनार्दन... जनता के सरोकारों के लिए पूरी निष्ठा के साथ जो काम कर सकता है, उसको पार्टी का नेतृत्व अहम दायित्व देता है ताकि, प्रदेश का विकास हो सके. इसके अलावा, जनता-जनार्दन की खुशहाली और समृद्धि साकार हो और सरकार की योजनाओं और एजेंडा का क्रियान्वयन हो. चुनाव के समय पार्टी ने जो संकल्प लिया था, जो भी वादे किए थे, उसे पूरा करने में मदद करे.
पार्टी के पैमाने पर खड़ा होने वाले को ईनाम
ये लोकतंत्र है और लोकतंत्र के मायने भी यही है: 'सबका शासन और सबकी भागीदारी'. जनता-जनार्दन और विकास के लिए सरकार की जो भी नीतियां हैं, जो भी कार्यक्रम है, उनको बनाने में सबकी भागीदारी हो. यानी, समाज के सभी वर्ग-समूह से नेतृत्व में लोग होते हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री की अवधारण हैं- सबका साथ और सबका विकास... ये चीज साकार कैसे होगी, इसे पार्टी का नेतृत्व तय करता है.
जहां तक बात 2024 लोकसभा चुनाव की है तो लोकतंत्र की चाबी जनता-जनार्दन के हाथों में होती है. हमारी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पार्टी के परफॉर्मेंस की बात करता है. जाति-पात की राजनीति से अलग हटकर जनता-जनार्दन के सरोकारों के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करना और उनकी समृद्धि-खुशहाली को साकार करना मकसद होता है. इस सोच के साथ पार्टी का नेतृत्व कार्य करता है. जनता-जनार्दन के प्रति प्रतिबद्धता सिद्ध होती है. नीतियों-कार्यक्रमों का क्रियान्वयन बिना किसी भेदभाव के सुनिश्चित होता है तो जनता-जनार्दन अपने आप साथ खड़ी होती है.
जातिगत जनणना के एजेंडा को जनता ने नकारा
आप देखिए कि जो लोग जातिगत जनगणना के एजेंडा को लेकर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में झंडाबरदारी कर रहे थे, उनका क्या हश्र हुआ? ये कुछ राजनीतिक दल हैं जो लंबे कालखंड तक जात-पात करते आ रहे थे, लेकिन अब वो चलने वाला नहीं है. लोकतंत्र में अब जनता-जनार्दन परिपक्व है. वो ये जरूर देखती है कि कौन हमारी समृद्धि-खुशहाली को साकार कर सकता है. कौन उन विकास योजनाओं को साकार कर सकता है. किसके पास वो इच्छा शक्ति है और कौन दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ जनता के लिए खड़ी होती है.
जहां तक छत्तीसगढ़-राजस्थान और मध्य प्रदेश में दो-दो डिप्टी सीएम की बात है तो ये पूरी तरह से नेतृत्व का फैसला होता है कि हमें किसी तरह से पार्टी की नीतियों का क्रियान्वयन करना है. कैसे जनता के लिए जो वादे किए गए हैं, उसे साकार करना है. उसी के आधार पर इस तरह का निर्णय होता है. जिम्मेदारी देने से और ज्यादा तेजी के साथ काम होता है.
सवाल तीन विधानसभा चुनाव में जीत के बाद पार्टी के सामने चुनौतियां का है तो इसके जवाब में मैं ये कहूंगा कि लोकतंत्र में हर पांच साल के बाद परीक्षा आती है. हर पांच साल बाद आपको कसौटी पर खड़ा उतरना है. इसलिए, लोकतंत्र में चुनौती तो हमेशा रहती है. लेकिन, उन सारी चुनौतियों को पार करके और जनता का विश्वास और भरोसा को मजबूत करने का काम हमारी पार्टी करती है.
इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 चुनाव से भी बड़ी ताकत हमारे शीर्ष नेतृत्व को जनता-जनार्दन प्रदान करेगी. भारतीय जनता पार्टी जातीय समीकरणों पर काम नहीं करती है. बीजेपी परफॉर्मेंस को लेकर काम करती है. जनता-जनार्दन के लिए परफॉर्म करना है. उस कसौटी पर हम कैसे उतरेंगे, इसको लक्ष्य में लेकर पार्टी फैसला करती है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]