(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
चीन अब हमारे लिए क्यों बन जायेगा पहले से भी ज्यादा 'खुराफ़ाती' पड़ोसी?
दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार लोकसभा में भाषण देते वक्त जो कड़वा सच बोला था, उस हक़ीक़त को मानने से न तब किसी ने इनकार किया था और न ही उसे आगे कभी झुठलाया जा सकता है.तब उन्होंने कहा था- "हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते.अब वो कमजोर है,ताकतवर है या खुराफ़ाती है लेकिन वो है तो पड़ोसी ही,लिहाज़ा उससे बर्ताव करने के तरीके भी हमें ही तय करने होंगे." उनकी कही बात हमारे पड़ोसी मुल्क चीन को लेकर काफी हद तक उसी सच को सामने लाती दिख रही हैं.वह इसलिये कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग,जो कुछ साल पहले साबरमती नदी के किनारे झूला झूलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथोँ से परोसी गई चाय में चीनी की मिठास घोलते हुए दोनों देशों के रिश्तों की एक नई इबारत लिखने का दावा कर रहे थे,वही मुल्क अचानक भारत के लिए इतना जहर उगलने लगेगा,ये शायद किसी ने भी सोचा नहीं होगा.
लेकिन अब दुनिया के लिए बड़ी और भारत के लिए परेशान करने वाली बात ये है कि वही जिनपिंग अब और ज्यादा ताकतवर बन रहे हैं,जो अगले पांच साल तक फिर से सबकी छाती पर मूँग दलने वाली हैसियत में आ जाएंगे.चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल के इतिहास में ये तीसरा ऐसा मौका है,जब मौजूदा राष्ट्रपति को ही अगले पांच साल तक इस पद पर बने रहने पर पार्टी की सर्वोच्च इकाई ने अपनी मुहर लगा दी है.इसका मतलब ये है कि साल 2012 में चीन की हुकूमत को संभालने वाले जिनपिंग अब उस मुल्क के तीसरे ऐसे कम्युनिस्ट नेता बन जाएंगे जो अगले साल लगातार तीसरी बार देश की बागडोर सम्भालने वाले राष्ट्रपति बनकर वहां के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराएंगे.
जाहिर है कि दुनिया के किसी भी मुल्क का कोई हुक्मरान जब लगातार तीसरी बार कुर्सी संभालता है,तो वह पहले से भी ज्यादा ताकतवर तो होता ही है,साथ ही अपने दुश्मनों के लिए उसके खतरनाक इरादों को हौंसला देने वाले पंख कुछ और भी ज्यादा चौड़े जाते हैं.लिहाज़ा,उस लिहाज़ से अगर देखें,तो जिनपिंग का तीसरी बार सत्ता संभालना भले ही चीन के अंदरुनी राजनीतिक इतिहास की एक बड़ी घटना हो लेकिन इसे भारत के लिए फिलहाल तो किसी भी तरह से शुभ समझ लेना,बड़ी भारी गलती ही साबित होगी.
दरअसल, चीन को अगले साल होने वाली अपनी राष्ट्रीय कांग्रेस में नया राष्ट्रपति चुनना है. उससे पहले गुरुवार को हुए पार्टी की केंद्रीय समिति के अधिवेशन में एकमत से ये प्रस्ताव पारित कर दिया गया कि शी जिनपिंग ही अगले पांच साल तक देश के राष्ट्रपति होंगे.केंद्रीय समिति पार्टी के शीर्ष नेताओं का समूह है और वही ये तय करता है कि देश की कमान कौन संभालेगा. कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल में ये अपनी तरह का तीसरा ऐतिहासिक प्रस्ताव है,जो बताता है कि जिनपिंग पार्टी में कितने ताकतवर
नेता हैं.इस तरह का सबसे पहला प्रस्ताव, 1945 में पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग ने और फिर दूसरा प्रस्ताव देंग शियाओपिंग ने 1981 में पारित किया था. इस तरह ऐसा प्रस्ताव जारी करने वाले शी जिनपिंग चीनी इतिहास के तीसरे ताकतवर नेता बन गए है. इससे पहले 2018 में ही पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए दो कार्यकालों की सीमा ख़त्म कर दी थी.तबसे ही ये माना जा रहा था शी जिनपिंग ने आजीवन अपने पद पर बने रहने का रास्ता साफ कर लिया है.
हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी के इस कदम का मकसद शी जिनपिंग को पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग और उनके उत्तराधिकारी देंग शियाओपिंग के बराबर खड़ा करना ही माना जा रहा है.कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि ये प्रस्ताव देंग शियाओपिंग के समय में चीन द्वारा शुरू किए गए विकेंद्रीकरण के प्रयासों को वापस लेने की एक कोशिश है. पिछले क़रीब चार दशकों से देश में विकेंद्रीकरण का प्रयास होता रहा है. ताज़ा घटनाक्रम के बारे में बताया जा रहा है कि ये चीन की राजनीति के फिर से एक शख़्सियत के आसपास घूमने के संकेत हैं.
वैसे इतिहास पर गौर करें,तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग ने बरसों पहले एक नारा दिया था, "सौ फूल खिलने दो; सौ विचारों में मुक़ाबला होने दो."बाद के सालों में उन्होंने इस नारे में तब्दीली करते हुए कहा कि," सोचने का साहस दिखाओ, बोलने की हिम्मत जुटाओ. चलने की ताक़त दिखाओ".लेकिन जिनपिंग के इरादों से लगता है कि वे सिर्फ चलने की नहीं बल्कि भारत समेत अन्य देशों की ज़मीन हथियाने की ताकत दिखा रहे हैं.लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उसकी घुसपैठ की लगातार कोशिश इसकी सबसे बड़ी गवाही देती है.
सच तो ये है कि साल 1962 की जंग के बाद से ही चीन हमेशा इसी ताक में रहता है कि किस तरह से भारत की जमीन को हथियाया जाये लेकिन जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद से ऐसी हरकतों में बेतहाशा तेजी आई है.उसका ही नतीजा है कि लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक की सीमा पर हर वक़्त तनावपूर्ण माहौल बना रहता है और लगता है कि पता नहीं कब जंग छिड़ने की नौबत आ जाये.लिहाज़ा,भारत को इस खुराफाती पड़ोसी से निपटने के अपने तौर-तरीके में बदलाव लाने की जरुरत अब पहले से भी कहीं ज्यादा दिखाई दे रही है.लेकिन बर्ताव में बदलाव लाने की ये कवायद सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही नहीं बल्कि कूटनीतिक व सामरिक लिहाज से बनाई गई रणनीति के जरिये ही अपना मुकाम हासिल करने में कामयाब हो पाएगी.
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