भारत की अध्यक्षता में जी-20 सम्मेलन नई दिल्ली में होने जा रहा है. इस दौरान एक तरफ जहां दुनियाभर के नेताओं का जमावड़ा लगने जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपने आपको दिखाने का भी ये एक बड़ा मौका होगा. इन सबके बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 में हिस्सा लेने के लिए भारत खुद नहीं आ रहे हैं, बल्कि चीन के प्रधानमंत्री हिस्सा लेने आएंगे. दूसरी तरफ, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी भारत नहीं आएंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि जब ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात के दौरान शी जिनपिंग के भारत दौरे पर आने की बात कही गई थी, तो फिर वे क्यों नहीं आ रहे हैं? वे ऐसे वक्त पर भारत नहीं आ रहे हैं जब एक तरफ जहां एलएसी पर दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ हाल में वहां के नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री की तरफ से एक मैप जारी किया गया, और इसमें अरुणाचल और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया गया है. 2017 से लेकर अब तक चीन की तरफ से ऐसी चौथी हरकत है.


बहरहाल, चीन के राष्ट्रपति के भारत नहीं आने के सवाल पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष वी. पंत ने एबीपी डिजिटल टीम के साथ बात करते हुए कहा कि उनका ये मानना है कि इसमें कोई अचरज की बात नहीं है. उनका कहना है कि भारत और चीन के बीच ट्रस्ट फैक्टर इतना ज्यादा कम है कि उसके ऊपर भारत सरकार का विश्वास करना बहुत मुश्किल है. हाल में दोनों देशों के बीच मिलिट्री कमांडर्स की बैठक हुई, इसमें भी कुछ निकलकर सामने नहीं आया. पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के दौरान ये कहा गया कि तनाव घटाने की प्रक्रिया में तेजी लाएंगे. इसमें अगर चीन सकारात्मक रुख दिखाएगा तो ये अच्छी बात है.



शी जिनपिंग के नहीं आने के हैं ये कारण


जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन और चाइनीज स्टडी के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने एबीपी डिजिटल टीम के साथ बात करते हुए शी जिनपिंग के भारत नहीं आने का कारण बड़े ही विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि पिछले महीने जब जोहान्सबर्ग में सुरक्षा प्रमुखों की बैठक हुई थी, जिसमें उन्होंने शायद कहा था कि शी जिनपिंग नई दिल्ली में जी 20 सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. हालांकि, शी जिनपिंग दिल्ली नहीं आ रहे हैं बल्कि वहां से चीन के प्रधानमंत्री आएंगे. इसी तरह रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगर नहीं आ रहे हैं तो चीन का एक अलगाव हो जाएगा. 



क्योंकि जी 20 बाकी सम्मेलन के दौरान पिछले साल 2:18 यानी एक तरफ रूस-चीन और दूसरी तरफ उनके खिलाफ 18 देशों ने एक रिजॉल्यूशन पास किया था. ऐसे में शायद चीन को ये लग रहा होगा कि उनका अलगाव हो जाएगा और यूक्रेन संकट पर 18 देश उनकी आलोचना करेंगे. एक ये भी वजह हो सकती है, जिसके चलते राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर नहीं आ रहे हैं. 


ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठने का डर


श्रीकांत कोंडापल्ली आगे बताते हैं कि चीन को शायद ऐसा भी लग रहा होगा कि भारत की तरफ से जो ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठाया जा रहा है, इसमें चीन का इन्फ्लूएंस नहीं होगा, इसलिए शायद चीन ने सोच रहा होगा कि ग्लोबल साउथ देशों के इन्फ्लूएंस में भारत का पलड़ा ज्यादा भारी होगा. इसके साथ ही, भारत ये कह रहा है कि जी 20 की मीटिंग में अफ्रीकन यूनियन को मेंबर बनाएं. अफ्रीकन यूनियन में कुल 55 देश हैं और अगर अफ्रीकन यूनियन की मेंबरशिप होती है तो चीन का जो प्रभाव वहां पर है, वो शायद कम हो जाएगा. इसलिए, चीन नहीं देखना चाहता है कि भारत का ग्लोबल साउथ इन्फ्लूएंस बढ़े.


तीसरा गलवान हिंसा और इसके बाद मैप में नाम बदलने का जो विवाद हुआ, उसके बाद चीन के खिलाफ भारत की जनता के मन में आक्रोश है. ऐसे में चीन को ये लग रहा होगा कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ठीक समय नहीं है, भारत पहुंचने का. शी जिनपिंग इस साल सिर्फ दो देश गए थे, मास्को और साउथ अफ्रीका. ऐसे में शी जिनपिंग को लगेगा का काफी लोग उनका विरोध करेंगे, इसलिए ये उचित समय नहीं है.


हालांकि, इतना जरूर है कि इस वक्त चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दौरा कर अगर भारत आते तो न सिर्फ इससे दोनों देशों के संबंधों के बीच एक साकारात्मक संदेश जाता, बल्कि जहां पर दुनियाभर के देश एकजुट हो रहे हैं, ऐसे में यहां पर शामिल होकर वैश्विक बिरादरी के सामने वे बखूबी अपनी बातें भी रख सकते थे. बहरहाल, अलगाव से लेकर कई मुद्दों पर डर ने शायद शी जिनपिंग को अपना कदम रोकने पर मजबूर किया है.




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