त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा चुनाव के परिणाम गुरुवार को सामने आ गए. इस बार चुनाव में सत्ताधारी दल ने शानदार प्रदर्शन कर सत्ता में वापसी की. लेकिन, जहां तक कांग्रेस के प्रदर्शन की बात है तो त्रिपुरा में हमने सिर्फ 13 सीट पर चुनाव लड़ा था. तीन सीट में हमारी जीत हुई लेकिन बाकी 10 सीट में काफी कोशिश के बावजूद हम हार गए. त्रिपुरा में टिपरा मोथा पार्टी के साथ गठबंधन की हमने कोशिश की थी. उन लोगों ने भी कई सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे, जिसकी वजह से एंटी बीजेपी वोट का बंटवारा हो गया. आपको ये वोटिंग पैटर्न को देखने से भी पता चल जाएगा. त्रिपुरा में सीपीएम, टिपरा मोथा दोनों के साथ गठबंधन की कोशिश हुई थी, लेकिन टिपरा मोथा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया.
जहां तक बात मेघालय की है, तो आपको पता है कि हमारी पार्टी का एक बड़ा गुट तृणमूल कांग्रेस में चला गया. इसका नतीजा सबको भुगतना पड़ा. कांग्रेस ने तो इसका खामियाजा भुगता ही, तृणमूल कांग्रेस को भी नुकसान हुआ. इसका सीधा फायदा एनपीपी और बीजेपी को मिला. एनपीपी और बीजेपी सिर्फ दिखाने के लिए झगड़ा कर रहे थे.
हमारे वोटर्स को नहीं निकलने दिया
जहां तक मेरी जानकारी है, लोगों को वोट डालने के लिए नहीं निकलने दिया गया. हमारे वोटर्स बूथ पर वोट देने के लिए नहीं आ पाए. एक हकीकत ये भी है कि एंटी वोट को एकजुट करने के लिए जिस तरह की कोशिश होनी चाहिए थी, वो नहीं हो पाई. बाकी बीजेपी जिस तरह से आक्रामक तेवर के साथ चुनाव लड़ी, इतना तो हम नहीं कर पाए.
जहां तक नगालैंड की बात है तो वहां वोटर्स को नहीं निकलने दिया गया. केंद्रीय सुरक्षा बलों के पहुंचने से पहले ही किसी ने वोट डाल दिया. राज्य मशीनरी का सरकार ने पूरा इस्तेमाल किया. नगालैंड का चुनाव तो मुझे नहीं लगता है कि इसमें डेमोक्रेसी का ध्यान रखा गया. अभी इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाह रहा हूं.
दिल्ली में जिसकी सरकार रहती है, असम छोड़कर पूरा नॉर्थ ईस्ट उसके साथ चलता है. इसलिए केन्द्र की मदद के बिना किसी भी नॉर्थ ईस्ट की सरकार को चलाना मुश्किल है. यही वजह है कि ये ट्रेंड रहा है कि जब भी जिस पार्टी की केन्द्र में सरकार रहती है, नॉर्थ ईस्ट में भी लोग उनके पक्ष में वोट देते हैं. इसका भी भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिला है.
कई बार कोशिश के बावजूद काम नहीं बन पाता है. मुकुल संगमा और भीम चंद जी की व्यक्तिगत समस्या रही है. त्रिपुरा में भी लेफ्ट के साथ हमारी व्यक्तिगत दिक्कत है. नगालैंड की बात अलग है. हमने वहां पर काफी कोशिश की थी. लेकिन हमारे वोटर्स को ही घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया.
अगले चुनावों पर असर
एंटी बीजेपी पॉलिटिकल पार्टी अगर एकजुट होती है, तो जरूर इसका नॉर्थ ईस्ट को फायदा मिलेगा. नॉर्थ ईस्ट में असम को छोड़कर बाकी राज्यों को देखें तो 10 लोकसभा की सीट है. जब ये महसूस होगा कि केन्द्र में बीजेपी की सरकार नहीं रहेगी, तो ही नॉर्थ-ईस्ट में परिवर्तन दिखेगा.
कुछ दिन पहले जब एआईसीसी की बैठक हुई थी, उसमें हमने ये कहा कि केन्द्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाना पड़ेगा. जितनी विपक्षी पार्टियां हैं वे एकजुट हो जाएं, उसके बाद ही रास्ता खुलेगा. त्रिपुरा में अगर कांग्रेस एकजुट हो जाती तो जरूर हमारी सरकार बन जाती.
मैंने जितना देखा है उस हिसाब से ये कह सकता हूं कि केन्द्रीय नेतृत्व की मदद चाहिए लेकिन स्टेट लीडशिप को ही इस पर काम करना होगा. राहुल गांधी को तो त्रिपुरा में हमने बुलाया ही नहीं, उन्हें सिर्फ मेघालय में ही बुलाया. हमें पता था कि त्रिपुरा में क्या नतीजे आने वाले हैं. नगालैंड में इसलिए नहीं बुलाया क्योंकि हमें पता था कि राहुल गांधी के आने से भी कुछ नहीं होता. आगे हमलोग पूरी कोशिश करेंगे, बेहतर चुनाव लड़ने की. कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उम्मीद करते हैं कि हम बेहतर प्रदर्शन करेंगे. ओल्ड पेंशन स्कीम को भी बड़ा मुद्दा बनाएंगे.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)