हमारे देश में सबसे मीठी व सबसे सस्ती मिठाई कौन -सी है? इसका जवाब शायद किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है कि वो सिर्फ जलेबी ही है. लेकिन सियासत में अलग-अलग नेताओं के दिये बयानों से जब यह अहसास होने लगे कि वे राजनीति को भी एक जलेबी बनाकर ही हमारे आगे परोस रहे हैं, तब मामला थोड़ा पेचीदा हो जाता है, जो ये सोचने पर मजबूर कर देता है कि सत्ता हासिल करने की इस जंग में ये नेता आम जनता को इतना नादान व मूर्ख आख़िर क्यों समझ लेते हैं कि वो उनकी फेंकी चाशनी को पहले चाटेगी और फिर उनकी वाहवाह भी करेगी?


इस वक़्त सिर्फ एक नाम है और वह है- गुलाम नबी आज़ाद जिसने देश की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचा रखी है. वह कांग्रेस की गुलामी से आज़ाद होकर जो कुछ भी बोल रहे हैं, वो उनकी पुरानी पार्टी के नेताओं को जरा भी रास नहीं आ रहा है और इसीलिए वे उनके ख़िलाफ़ हमलावर हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि इस सारे तमाशे से बीजेपी बेहद खुश है. इसलिये कि उसे लगता है कि यही आज़ाद वह शख्स होंगे, जो देश को आजादी मिलने के बाद पहली बार वहां बीजेपी की सरकार बनने का रास्ता आसान कर देंगे. शायद इसीलिए कांग्रेस के बड़े नेता भी अब ये आरोप लगा रहे हैं कि आज़ाद का डीएनए मोदी फाईड यानी "मोदीमय" हो गया है.


गुलाम नबी आज़ाद ने पिछले पांच दशकों से जुड़ी रही पार्टी से अपने रिश्ते क्यों तोड़े, इसका जिक्र उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहने वाले अपने इस्तीफे में विस्तार से लिखा है. लेकिन सियासी गलियारों में एक बड़ा सवाल ये भी उठ रहा है कि वे कांग्रेस से अलग होकर जम्मू-कश्मीर में आने वाली सत्ता का "किंग मेकर" बनने की आस आखिर किसके इशारे पर पाले हुए हैं और उसी अंदाज में आखिर मीडिया के आगे बयान भी क्यों दे रहे हैं? जबकि उन्होंने अपनी नई पार्टी अभी लॉन्च भी नहीं की है.


आज़ाद के पार्टी छोड़ने और उनके बयानों के बाद कांग्रेस में जो आग लगी हुई है, उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी महासचिव जयराम रमेश  ने सवाल किया है कि आजाद हर मिनट अपने ‘विश्वासघात’ (Betrayal) को सही क्यों ठहरा रहे हैं? रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘आज़ाद वर्षों तक जिस पार्टी में रहे, जहां उन्हें सब कुछ मिला, उन्हें उसी पार्टी को बदनाम करने का काम सौंपा गया है. यह उनके स्तर को और गिरा रहा है.’’ उन्होंने आजाद पर निशाना साधते हुए ये सवाल किया, ‘‘आखिर क्यों हर मिनट वह अपने विश्वासघात को सही ठहरा रहे हैं? उन्हें आसानी से बेनकाब किया जा सकता है, लेकिन हम अपना स्तर क्यों गिराएं?’’


जयराम रमेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती कांग्रेस के चतुर चाणक्यों में भी होती है. वे इन दिनों पार्टी के मीडिया व संचार विभाग के भी प्रमुख हैं. शायद इसीलिए उन्होंने आज़ाद पर हर तरीके से निशाना साधने के लिए शब्दों की भी कोई फिक्र नहीं की. उन्होंने तो GNA का DNA मोदी-फाइड बताने से भी कोई परवाह नहीं की.


जयराम रमेश ने कहा कि "कांग्रेस ने बेहद अधिक सम्मान के साथ आजाद के साथ व्यवहार किया और उसने अपने शातिर व्यक्तिगत हमलों से धोखा दिया जो असली चरित्र को उजागर करता है. जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए मोदी-फाइड है." पर, गुलाम नबी आज़ाद भी सियासत के कोई कम मंझे हुए खिलाड़ी नहीं हैं और उन्हें अपने अंदाज में सियासत करना और उसका जवाब देना भी आता है.


आज जिन लोगों को लग रहा है कि आज़ाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारों पर अपनी सियासी गोटियां बिछा रहे हैं, तो उन्हें एक पुराना व सच्चा किस्सा याद दिलाना बेहद जरुरी है. हालांकि उसके सबसे बड़े किरदार आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन जो हैं,उनके और आज़ाद के बीच वैसे ही आत्मीयता भरे रिश्ते आज भी हैं.


मुझे याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार के दौरान  विपक्ष के एक बड़े नेता अपने एक सगे-संबंधी से जुड़े मामले को लेकर अलसुबह बिना बताये गुलाम नबी आज़ाद के घर पहुंच गए थे.तब आज़ाद केंद्रीय नागर विमानन मंत्री थे लेकिन विपक्ष की उस बड़ी शख्सियत को देखकर तब आजाद ने नतमस्तक होते हुए सिर्फ इतना ही कहा था कि इसके लिए तो आप मुझे हुक्म दे देते तो,मैं आपके यहां हाजिर हो जाता.


दरअसल, वह मामला दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास बनने वाले पांच सितारा होटल की ऊंचाई में आवश्यक छूट देने से जुड़ा हुआ था, जो सरकार के फैसले लिये  बगैर संभव ही नहीं था.तब आजाद ने उसके लिए कैबिनेट की बैठक में जरुरी संशोधन  लाकर उसे सिर्फ एक नहीं बल्कि आगे बनने वाले सभी होटलों के लिए पारित भी करवाया.


इससे जाहिर होता है कि आज़ाद कांग्रेस में रहकर  सरकार में मंत्री रहते भी हवा में नहीं उड़ा करते थे और विपक्ष के नेताओं को सम्मान देने या उनकी जायज़ बात मानने में भी  कोई कंजूसी नहीं बरता करते थे. एक जमाने में दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के लिए कहा जाता था कि,"एक सही व्यक्ति गलत पार्टी में है."उन्होंने सालों तक उस जुमले को सुना और  आखिरकार साल 1996 में प्रधानमंत्री बनते ही इसका जवाब भी दे डाला कि "व्यक्ति भी सही है और पार्टी भी वही है."


हम नहीं जानते कि राजनीति में गुलाम नबी आज़ाद के आदर्श कौन हैं लेकिन सोमवार को उन्होंने ये कहकर सियासी हक़ीक़त बताने की कोशिश की है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की नींव कमजोर हो गई है और वह कभी भी बिखर सकती है. उन्होंने कहा कि ‘‘बीमार’’ कांग्रेस (Congress) ‘कंपाउंडर’ से दवा ले रही है,डॉक्टर से नहीं. आजाद ने डीएनए (DNA) का  आरोप लगाने वालों पर भी कहा कि वो पहले अपना डीएनए चेक कराएं कि किस पार्टी के हैं और कहां के हैं.


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