दुनिया के सबसे बड़े 'नोबेल' पुरस्कार पर भी आखिर क्यों होता है विवाद?
Nobel Award: दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल प्राइज होता है. इसकी धमक पूरी दुनिया में ऐसी है कि राजनीति, विज्ञान, साहित्य और शिक्षा से लेकर शांति कायम करने का झंडाबरदार बनने वाला हर शख्स उसे पाने के लिए बेताब रहता है. ये पुरस्कार अब तक 8 भारतीय नागरिकों को मिल चुका है. इनमें से चार प्रवासी भारतीय भी हैं, लेकिन जानकर हैरानी होगी कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर भारत को आज़ादी दिलाने में अपना योगदान देने वाले महात्मा गांधी को ये पुरुस्कार नहीं मिला.
भारत का कोई प्रधानमंत्री भी आज तक इस खिताब से नवाजा नहीं गया, लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपनी कुर्सी संभालने के महज नौ महीने बाद ही जब ये अवार्ड देने का एलान हुआ तो उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा था, "आखिर ये किसलिये". चूंकि ये दुनिया का सर्वोच्चतम पुरस्कार है, इसलिये इस पर अक्सर विवाद भी उठते रहे हैं.
दुनिया के कई देश इसका फैसला करने वाली ज्यूरी पर भी सवाल उठाते हैं, लेकिन खास बात ये है कि पिछले 121 सालों में नॉर्वे की इस नोबेल संस्था ने तमाम आलोचनाओं और विवादों को दरकिनार करते हुए अपने फैसले का एलान किया है. इसपर विवाद होने की एक बड़ी वजह है कि इस पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में कई बार लिंगवाद, नस्लवाद और पुरस्कार समिति के यूरोसेंट्रिक (Eurocentric) यानी यूरोप पर ही फोकस होने के आरोपों जैसी बातों ने इसे विवादास्पद बनाया है.
6 श्रेणियों में दिया जाता है पुरस्कार
शायद यही वजह है कि शांति के लिए दिए जाने वाले इस पुरस्कार को लेकर अपरिपक्व और गलत तरीके की समझ रखने को लेकर खासी आलोचना पहले भी की गई और इस पर राजनीति से प्रेरित होने के आरोप भी लगाए गए. हर साल अक्टूबर महीने में इस पुरस्कार के विजेताओं के नाम का एलान किया जाता है. दुनिया के सबसे खास मानवाधिकार नेताओं, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और लेखकों की 6 श्रेणियों में ये पुरस्कार दिए जाते हैं. शांति के लिए इस साल ये पुरस्कार संयुक्त रूप से बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बिआलियात्स्की, रूस के मानवाधिकार संगठन 'मेमोरियल' और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन 'सिविल लिबर्टीज़' को देने का एलान किया गया है.
पुरस्कार देने वाली समिति पर कई आरोप
अब आप ये कह सकते हैं कि शांति के क्षेत्र में ये पुरस्कार देने में नोबेल कमिटी ने बेहद डिप्लोमेसी बरती है. इसलिये कि भीषण युद्ध की मार झेल रहे यूक्रेन को भी उसने पूरी तवज्जो तो दी, लेकिन साथ ही दुनिया की दूसरी महाशक्ति कहलाने वाले रूस को भी उसने नाराज नहीं किया. इसलिए पुरस्कार देने वाली समिति पर राजनीति से प्रेरित, व्यक्तिपरक यानी निजी पंसद को ध्यान में रखकर विजेताओं का चुनाव करने के आरोप लगते रहे हैं. ये भी कहा जाता है कि कभी-कभी ये समिति कामयाबियों को दरकिनार कर अपनी तमन्नाओं या चाह को आधार बनाते हुए ही विजेता का चुनाव करती है.
पुरस्कार के लिए मैदान में थे 343 उम्मीदवार
बता दें कि, इस साल नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 343 उम्मीदवार मैदान में थे. इसके लिए दुनिया भर से 251 लोगों ने निजी तौर पर और 92 संगठनों ने दावेदारी पेश की थी. नोबेल पुरस्कारों में शांति के नोबेल को लेकर खासी बेकरारी और इंतजार रहता है, लेकिन अक्सर यह विवादों में भी पड़ जाता है. हालांकि, नोबेल शांति सम्मान की घोषणा के साथ नोबेल प्राइज कमेटी ने अपने बयान में कहा, "पीस प्राइज से सम्मानित व्यक्ति और संस्थाएं अपने-अपने देशों में सिविल सोसायटी का प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने सालों तक सत्ता की आलोचना के अधिकार और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के संरक्षण के लिए काम किया है.
अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिया अवार्ड
कमेटी ने ये भी कहा कि, "उन्होंने युद्ध अपराधों और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों के डॉक्युमेंटेशन के लिए बेहतरीन काम किया है. वे शांति और लोकतंत्र के लिए सिविल सोसायटी की अहमियत को दिखाते हैं." ये अवार्ड अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिया जाता है, जो एक स्वीडिश रसायनज्ञ, इंजीनियर आविष्कारक और व्यापारी होने के साथ ही लोगों की भलाई करने के लिए मशहूर थे. अविवाहित रहते हुए 63 बरस की उम्र तक जोड़ी अपनी सारी कमाई के साथ उन्होंने वसीयत लिख डाली कि इन पैसों से हर साल नोबेल पुरस्कार दिए जाने की शुरुआत की जाए.
उनकी मौत के महज पांच साल के बाद ही इसकी जो शुरुआत हुई वह आज भी अनवरत जारी है. बताया जाता है कि अल्फ्रेड नोबेल ने अपने जीवनकाल में 355 पेटेंट धारण करते हुए विज्ञान में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए थे. नोबेल का सबसे प्रसिद्ध आविष्कार डायनामाइट था, जो नाइट्रोग्लिसरीन की विस्फोटक शक्ति का उपयोग करने का एक सुरक्षित और आसान साधन था. इसे साल 1867 में पेटेंट कराया गया था लेकिन जल्द ही वह दुनिया भर में खनन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ऐसा सबसे उपयुक्त माध्यम बन गया जिसका इस्तेमाल आज भी भारत समेत कई देश करते हैं.
अल्फ्रेड की पुण्यतिथि पर दिए जाते हैं अवार्ड
जानने वाली बात ये भी है कि जिसे पाने के लिए दुनिया बेताब रहती है, उसी नोबेल पुरस्कार को लेने से अब तक सिर्फ दो लोगों ने मना किया है. एक हैं फ़्रांस के लेखक जॉन-पॉल सात्र और दूसरे वियतनाम के नेता ले डुत टो. इसके अलावा चार लोगों को उनके देश ने पुरस्कार नहीं लेने दिया. इस पुरस्कार के तहत स्मृति चिन्ह के साथ नकद राशि 10 मिलियन स्वीडिश क्रोना यानी कि 9 लाख 11,000 अमेरिकी डॉलर दी जाती है. एक ही कैटेगरी में अगर एक से ज़्यादा विजेता हों, तो ईनाम की राशि बराबर बंट जाती है. अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि यानी 10 दिसंबर को ही हर साल ये पुरस्कार दिए जाते हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)