एक्सप्लोरर

लोअर और हाईकोर्ट कोर्ट से फांसी, सुप्रीम कोर्ट आते-आते कैसे दोषी हो जाता है बरी, ये है वजह

अपराध से जुड़े किसी भी केस का आधार पुलिस का एविडेंस कलेक्शन है. हमारे देश में पुलिस क्रिमिनल केस को प्रोसिक्युट करती है. पुलिस की ओर से जमा किए गए एविंडेस के आधार पर ही सज़ा मिलती है. अगर हमारे बेसिक पुलिसिंग में डिफेक्ट है, तो सज़ा की तो बात बेमानी है.

कोर्ट से पहले पुलिस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है. अगर किसी भी क्राइम की पड़ताल अच्छे और वैज्ञानिक तरीके से नहीं की गई है, तो निश्चित रूप से फांसी की सज़ा में सुप्रीम कोर्ट से एक्विटल होते रहेगा. इसके पीछे बड़ी वजह है कि जज सबूत के आधार पर निर्णय देते हैं. एविडेंस नहीं होने की वजह से बहुत सारे गंभीर अपराधों में मुजरिमों को छोड़ दिया जाता है.

लोअर कोर्ट में ट्रेनिंग पर हो ख़ास ज़ोर

ये बहुत ही गंभीर मामला है. एविडेंस के लेवल ऑफ अप्रीशीएशन के मामले में लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में काफी अंतर है. यहां एक फर्क ज्ञान के अभाव का भी है. चूंकि लोअर कोर्ट के जो जजेज़ होते हैं उन्हें अच्छे तरीके से ट्रेनिंग नहीं दी जाती है. अच्छी ट्रेनिंग का नहीं होना भी के एक बड़ी वजह है, जिसके कारण लोअर कोर्ट में जज राउन्ड्ली दोषी मानकर फांसी की सज़ा दे देते हैं और जब ये मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचता है, तो वहां से दोषी को बरी कर दिया जाता है.

लोअर जूडिशीएरी पर भी सवाल

इसमें सिर्फ पुलिस के ऊपर ही अंगुली नहीं उठती है, ऐसे मामलों में लोअर जूडिशीएरी के ऊपर भी सवाल खड़े हो जाते हैं. सवाल उठता है कि लोअर कोर्ट पुलिस की तरफ से जमा किए गए साक्ष्यों पर ये क्यों नहीं ध्यान देती कि इन्हें जमा करने में वैज्ञानिक तरीकों का ख्याल रखा गया है या नहीं. ऊपरी अदालतें  सारी कानूनी और संवैधानिक पहलुओं की पड़ताल करके एविडेंस को अप्रीशिएट करते हुए ही फैसला सुनाती हैं. लोअर कोर्ट में भी कानून के आधार पर ही फैसला होता है. अगर मान लिया जाए कि फांसी की सज़ा से जुड़े 35 फीसदी मामलों में हाइअर कोर्ट से एक्विटल हो रहा है, तो फिर मेरा मानना है कि लोअर कोर्ट के जो जजेज़ हैं, कहीं न कहीं अपर्याप्त एविडेंस के आधार पर सज़ा सुना देते हैं. इसी वजह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में लोअर कोर्ट के फैसले को पलट देता है.

'कैपिटल पनिशमेंट' रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस में

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने निर्णयों में इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि 'कैपिटल पनिशमेंट' रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस में देना चाहिए. 1980 में मक्की सिंह का जजमेंट आया था. उसमें ये पैरामीटर डिसाइड हुआ था कि कैपिटल पनिशमेंट किन लोगों को दिया जाना चाहिए. अगर निचली अदालतें उन गाइडलाइन्स और नीतियों को लागू नहीं करती हैं और ऐसे ही सज़ा दे देती हैं, तो निश्चित रूप से उन मामलों में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट फांसी की सज़ा को खत्म कर देगा.

लोअर जूडिशीएरी में हो सुधार

न्याय प्रणाली में लोअर जूडिशीएरी की बहुत बड़ी भूमिका होती है. हमारे देश में लोअर जूडिशीएरी पर्याप्त रूप से डिजिटली साउंड नहीं है. इन अदालतों में वकीलों की गुणवत्ता को भी पर्याप्त नहीं माना जा सकता है. इन अदालतों में वकीलों को बहुत ज्यादा अवसर नहीं मिल पाते हैं. यहीं वजह है कानून के बहुत कम अच्छे जानकार वहां जाकर प्रैक्टिस करते हैं. लोअर जूडिशीएरी में बुनियादी ढांचे की भी कमी है. इन जगहों पर अपर्याप्त नंबर में जज हैं, अपर्याप्त नंबर में सरकारी वकील हैं. ट्रेन्ड वकीलों की कमी है. इन सबकी वजह से सिस्टम में खामियां हैं.

एविडेंस कलेक्शन है सबसे महत्वपूर्ण

फेयर जस्टिस के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटाने होते हैं. इस पर बहुत संजीदगी से ध्यान दिए जाने की जरूरत है. जब आप सुदूर क्षेत्रों में जाएंगे तो पाएंगे कि निचली अदालतों में जज ही एविडेंस लिखते हैं, वहीं दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इसके लिए स्टेनोग्राफर होते हैं. निचली अदालतों में स्टाफ और फाइल मैनेजमेंट भी एक बड़ा मुद्दा है. लोअर कोर्ट में अपर्याप्त व्यवस्था है. सज़ा देने में अपर्याप्त आधार होने की वजह से ही बाद में फांसी की सज़ा ऊपरी अदालतों में बदल दी जाती है. सुप्रीम कोर्ट कानून के मापदंड के आधार पर ही फांसी की सज़ा को बदलता है.  सुप्रीम कोर्ट की नज़र में निचली अदालतों में कोई न कोई चूक हुई होगी. तभी फांसी की सज़ा बरकरार नहीं रह पाती है. किसी दूर-दराज के इलाके में अपराध होने पर फॉरेंसिक टीम के पहुंचने में ही काफी वक्त लग जाता है. ऐसी जगहों पर पुलिस को फॉरेंसिक के बारे में जानकारी ही नहीं होती है. आपराधिक मामलों में अगर थोड़ा सा भी कोई संदेह होता है, चाहे प्रोसिजर में हो या कलेक्शन ऑफ एविडेंस में हो, तो उसका बेनेफिट आरोपी को जाता है. पुलिस में भी सुधार की जरूरत है. उन्हें फॉरेंसिक जैसे सबूत जमा करने की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए.

एविडेंस एक्ट और क्रिमिनल प्रोसेज़र कोड

सज़ा देना और सज़ा को बरकरार रखना, इन दोनों में अंतर होता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी ने मर्डर किया है, उसका वीडियो फुटेज भी है, तब भी उसको सज़ा नहीं मिल सकती है, अगर फुटेज का अच्छे तरीके से कलेक्शन नहीं किया गया है. हमारे यहां एविडेंस एक्ट है, क्रिमिनल प्रोसेज़र कोड है. अगर इनका सही तरीके से पालन नहीं किया गया है, तो ऐसे मामले में लोअर कोर्ट सज़ा दे भी देती है, तो हाइअर कोर्ट में टेक्निकल ग्राउंड पर वो सज़ा बरकरार नहीं रह पाती है. जूडिशीएरी को मजबूत करने की जरूरत है. लोअर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक में सुधार की जरूरत है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

Russia Muslim Population: इस देश में 2030 तक एक तिहाई होंगे मुस्लिम? बदल रहा जनसंख्या का आंकड़ा, जानें हिंदुओं की स्थिति
इस देश में 2030 तक एक तिहाई होंगे मुस्लिम? बदल रहा जनसंख्या का आंकड़ा, जानें हिंदुओं की स्थिति
कला जगत के युग का अंत, स्टैच्यू ॲाफ यूनिटी बनाने वाले मशहूर मूर्तिकार राम सुतार का निधन
कला जगत के युग का अंत, स्टैच्यू ॲाफ यूनिटी बनाने वाले मशहूर मूर्तिकार राम सुतार का निधन
Indian VS Iran Currency:  भारत का 10 हजार इस मुस्लिम देश में आपको बना सकता है अमीर! करेंसी की वैल्यू सुनकर उड़ेंगे होश
भारत का 10 हजार इस मुस्लिम देश में आपको बना सकता है अमीर! करेंसी की वैल्यू सुनकर उड़ेंगे होश
Avatar Fire and Ash: जेम्स कैमरून की ‘अवतार: फायर एंड ऐश’ भारत में कब होगी रिलीज ? कास्ट से लेकर बजट तक सब कुछ जानें यहां
भारत में कब रिलीज होगी ‘अवतार: फायर एंड ऐश’ ? कास्ट से लेकर बजट तक सब कुछ जानें यहां
ABP Premium

वीडियोज

UP News:स्कूल के मिड-डे मील में रेंगते मिले कीड़े, हड़कंप मचने के बाद BSA ने बैठाई जांच! | Mau
Janhit with Chitra Tripathi : सोनिया-राहुल को मिली राहत पर राजनीति? | National Herald Case
डांस रानी या ईशानी की नौकरानी ? Saas Bahu Aur Saazish  (17.12.2025)
Sandeep Chaudhary: नीतीश की सेहत पर बहस, CM पद को लेकर बड़ा सवाल | Nitish Kumar Hijab Row
Bharat Ki Baat: असल मुद्दों पर सियासत..'राम-राम जी'! | VB–G RAM G Bill | BJP Vs Congress

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Russia Muslim Population: इस देश में 2030 तक एक तिहाई होंगे मुस्लिम? बदल रहा जनसंख्या का आंकड़ा, जानें हिंदुओं की स्थिति
इस देश में 2030 तक एक तिहाई होंगे मुस्लिम? बदल रहा जनसंख्या का आंकड़ा, जानें हिंदुओं की स्थिति
कला जगत के युग का अंत, स्टैच्यू ॲाफ यूनिटी बनाने वाले मशहूर मूर्तिकार राम सुतार का निधन
कला जगत के युग का अंत, स्टैच्यू ॲाफ यूनिटी बनाने वाले मशहूर मूर्तिकार राम सुतार का निधन
Indian VS Iran Currency:  भारत का 10 हजार इस मुस्लिम देश में आपको बना सकता है अमीर! करेंसी की वैल्यू सुनकर उड़ेंगे होश
भारत का 10 हजार इस मुस्लिम देश में आपको बना सकता है अमीर! करेंसी की वैल्यू सुनकर उड़ेंगे होश
Avatar Fire and Ash: जेम्स कैमरून की ‘अवतार: फायर एंड ऐश’ भारत में कब होगी रिलीज ? कास्ट से लेकर बजट तक सब कुछ जानें यहां
भारत में कब रिलीज होगी ‘अवतार: फायर एंड ऐश’ ? कास्ट से लेकर बजट तक सब कुछ जानें यहां
IPL 2026 ऑक्शन में सबसे बड़ा उलटफेर! बेहद 'मामूली रकम' में बिके ये 5 दिग्गज खिलाड़ी
IPL 2026 ऑक्शन में सबसे बड़ा उलटफेर! बेहद 'मामूली रकम' में बिके ये 5 दिग्गज खिलाड़ी
Foods That Cause Cavities: इन चीजों को खाने से दांतों में जल्दी होती है कैविटी, आज ही देख लें पूरी लिस्ट
इन चीजों को खाने से दांतों में जल्दी होती है कैविटी, आज ही देख लें पूरी लिस्ट
Minorities Rights Day 2025: अल्पसंख्यकों को सबसे पहले कौन-सा अधिकार मिला था, इससे उन्हें क्या हुआ फायदा?
अल्पसंख्यकों को सबसे पहले कौन-सा अधिकार मिला था, इससे उन्हें क्या हुआ फायदा?
एयर प्यूरीफायर लेने जा रहे हैं? खरीदने से पहले जान लें ये जरूरी बातें
एयर प्यूरीफायर लेने जा रहे हैं? खरीदने से पहले जान लें ये जरूरी बातें
Embed widget