अगर आप किसी गुरुद्वारे में जाते हैं तो वहां अपना सिर ढककर ही प्रवेश करने का दस्तूर है क्योंकि ये आप उस गुरु के प्रति अपना सम्मान जताते हैं जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के रुप में वहां प्रकाशवान हैं. इसे लेकर आज तक देश में या दुनिया के किसी भी कोने में स्थापित गुरुद्वारे में कभी किसी ने कोई परहेज या विरोध नहीं किया क्योंकि ये आस्था से जुड़ा मामला है. लेकिन अपनी आस्था प्रकट करने का स्थान  धर्म स्थल ही होता है फिर चाहे वह किसी भी मजहब का हो. सवाल ये है कि उस आस्था के बहाने स्कूल या कॉलेज को साम्प्रदायिक जहर फैलाने का अड्डा आखिर क्यों और किसके इशारे पर बनाया जा रहा है?


ज्यादा हैरानी की बात ये है कि कर्नाटक के एक कॉलेज से शुरु हुआ हिज़ाब पहनने का मामूली सा विवाद इस हद तक पहुंच गया है कि दुनिया के तमाम इस्लामिक देश इस मुद्दे पर भारत को नसीहत देने की हिमाकत कर रहे हैं. इससे जाहिर होता है कि हिज़ाब तो महज एक बहाना है लेकिन इसके जरिए कई अनछुपे मंसूबों को अंजाम देने की ये किसी अन्तराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा भी तो हो सकता है जिसमें कुछ मासूम मुस्लिम लड़कियों को बरगलाकर आगे कर दिया गया है.  जिससे इस चिंगारी से लगी आग को पूरे देश में फैला दिया जाए.


हालांकि हिज़ाब के विवाद पर फैसला कर्नाटक हाइकोर्ट को ही करना है लेकिन इस्लामिक देशों के संगठन OIC की तरफ से इस मसले को लेकर जो बयान आये हैं वे हैरान करने के साथ ही परेशान करने वाले भी हैं. इसलिये कि देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों के बीच किसी बाहरी विदेशी संगठन को ऐसे बयान देकर हमारे यहां धार्मिक भावनाएं भड़काने का हक़ भला कहां से मिल गया. यही वजह रही कि भारत को इस पर अपना कड़ा रुख अपनाते हुए करारा जवाब देना पड़ा. दरअसल, हिजाब विवाद और हरिद्वार धर्मसंसद के बहाने इस्लामिक देशों के संगठन OIC की तरफ से आये बयानों में भारत पर हमला करते हुए कहा गया था कि यहां मुस्लिम समुदाय असुरक्षित माहौल में रह रहा है.


लेकिन विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ओआईसी सचिवालय की तरफ से दिए गए बयानों को भारत के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाजी का एक और उदाहरण बताया है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हिजाब का मुद्दा भारत के संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार सुलझा लिया गया है. मंत्रालय ने ये भी कहा कि ओआईसी सचिवालय की तरफ से आने वाले बयान यह बताते हैं कि किस तरह इस संगठन को कुछ स्वार्थी हितों और दुष्प्रचार करने वालों ने अगवा कर लिया है. हमने भारत से संबंधित मामलों पर ओआईसी के महासचिव से एक और भ्रामक बयान देखा है. भारत में मुद्दों पर विचार किया जाता है और हमारे संवैधानिक ढांचे के साथ-साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार हल किया जाता है लेकिन ओआईसी की तरफ से आया बयान उसकी सांप्रदायिक मानसिकता को उजागर करता है जिसकी भारत ने कभी सराहना नहीं की और न ही वह इसकी अनुमति देता है.


दरअसल, इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) ने सोमवार को भारत को लेकर गहरी नाराज़गी जताते हुए एक बयान जारी किया था. इसमें हरिद्वार में धर्म संसद, कर्नाटक में हिजाब विवाद और मुसलमानों के ख़िलाफ़ कथित नफ़रत फैलाने के मसले पर उसने चिता जताई थी. ओआईसी के महासचिव की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "संगठन के महासचिव ने भारत के हरिद्वार में हिन्दुत्व के झंडाबरदारों की ओर से मुसलमानों के जनसंहार की अपील और सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर चिंता जताई है. कर्नाटक में मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध भी चिंताजनक है." ओआईसी के महासचिव ने इन मामलों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ख़ास कर संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार परिषद से ज़रूरी क़दम उठाने की अपील की है.


उस बयान में आगे ये भी कहा गया है, ''ओआईसी के महासचिव ने भारत से आग्रह किया है कि वह मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करें. इसके साथ ही मुसलमानों की जीवन शैली की भी रक्षा होनी चाहिए. मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और नफ़रत फैलाने वालों को न्याय के कटघरे में खड़ा करना चाहिए. वैसे तो दुनिया के 57 इस्लामिक बहुल देश  OIC के  सदस्य हैं लेकिन इस पर सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों का ही दबदबा है. खास बात ये है कि इस समूह के सदस्य केवल मुस्लिम देश ही हो सकते हैं. इस संगठन का मकसद दुनिया में अंतरराष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बनाए रखते हुए मुसलमानों के हितों की सुरक्षा करना है. हालांकि इस संगठन में सदस्य देशों के अलावा रूस, थाईलैंड और कुछ दूसरे छोटे देशों को आब्ज़र्वर का स्टेट्स मिला हुआ है लेकिन भारत इसमें शामिल नहीं है.


हालांकि साल 2018 में इस संगठन की हुई कॉन्फ्रेंस में बांग्लादेश ने सुझाव दिया था कि दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले मुसलमानों की कुल आबादी के 10 प्रतिशत से ज़्यादा लोग भारत में रहते हैं लिहाज़ा भारत को आब्ज़र्वर का स्टे्टस दिया जाए. लेकिन भारत में रहने वाले मुसलमानों की फिक्र करने वाले पाकिस्तान ने ही इसका सबसे पहले विरोध कर दिया और थोड़ी नोकझोंक होने के बाद उस सुझाव को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हालांकि उसके बाद अगले साल ही यानी 2019 में ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक हुई थी. उसमें भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पहली बार गेस्ट ऑफ़ ऑनर के तौर पर आमंत्रित किया गया था. तब उन्होंने इस संगठन के तमाम सदस्य देशों को साफतौर बताया था कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत के संविधान में ही सबको समान अधिकार मिले हुए हैं लिहाज़ा आप यहां के मुसलमानों की फिक्र मत कीजिये.अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है और वो इसे पूरा करती रहेगी भले ही देश में किसी भी पार्टी की सरकार हो. वह भरोसा मिलने के बाद ही संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने भारत के साथ अपनी दोस्ती के रिश्ते को आगे बढ़ाया है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)