देश के मुसलमानों को लेकर बीजेपी के बड़बोले नेता या समर्थक चाहे जितने नफ़रत भरे बयान देते रहें लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत और सोच इस पर लगाम कसने की ही नजर आती है. मुसलमानों में आर्थिक व सामाजिक रूप से सबसे पिछड़ा तबका है- पसमांदा मुस्लिम जिनकी तकरीबन एक दर्जन जातियां हैं. इस साल की शुरुआत में हैदराबाद में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने इस बात पर खास जोर दिया था कि मुस्लिमों के इस सबसे पिछड़े वर्ग की तरक्की व विकास करते हुए उन्हें पार्टी के साथ जोड़ा जाए और ये भी देखा जाये कि केंद्र सरकार की जन-कल्याण से जुड़ी नीतियों का फायदा इस समुदाय को मिल भी रहा है कि नहीं.


दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी के चुनाव में बीजेपी ने पहली बार 4 पसमांदा मुस्लिमों को मैदान में उतारकर ये जताने की कोशिश की है कि वही उनकी सबसे बड़ी खैरख्वाह है. इसमें भी तीन महिलाओं को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने दिल्ली के मुसलमानों में एक बड़ा संदेश ये भी दिया है कि वो नफ़रत फैलाने वाली पार्टी नहीं है. हालांकि ये तो 4 दिसंबर को होने वाले चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि मुस्लिमों के इस पिछड़े तबके ने बीजेपी पर कितना भरोसा जताया है. इसलिये कि पांच साल पहले हुए एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने 7 मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाया था लेकिन सबकी जमानत ज़ब्त हो गई थी. हालांकि तब उनमें से कोई भी पसमांदा मुस्लिम नहीं था. उस लिहाज से दिल्ली के 250 वार्डों में से इस बार ये चार वार्ड ऐसे हैं जिनके नतीजों पर सबकी निगाहें लगी रहेंगी.


सियासी गलियारों से लेकर मीडिया-जगत में भी अक्सर ये सवाल पूछा जाता है कि आखिर कौन हैं ये पसमांदा मुस्लिम? दरअसल, पसमांदा शब्द फारसी भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी में मतलब होता है, पिछड़ा. मुसलमानों में इस शब्द का इस्तेमाल उन जातियों के लिए किया जाता है जो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं या अपने कई अधिकारों से आज भी वंचित  हैं. इनमें बैकवर्ड, दलित और आदिवासी मुसलमान शामिल हैं, लेकिन मुसलमानों में जातियों का ये गणित हिंदुओं में जातियों के गणित की तरह ही काफी उलझा हुआ है और यहां भी जाति के हिसाब से ही सामाजिक हैसियत तय की जाती है.


हालांकि हमारे देश में मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक हैसियत के हिसाब से इन्हें तीन वर्ग में बांटा गया है. अशराफ मुसलमानों को एक तरह से ऊंची जाति वाला माना जाता है जो मुस्लिम बादशाहों के वंशजों से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन अजलाफ और अरजाल समुदाय के लोगों को पसमांदा में शामिल किया गया है. यानि कि वो लोग जो तरक्की के रास्ते में पीछे छूट गए हैं. पसमांदा बिरादरी में कई जातियां शामिल हैं. मसलन, क़साई, नाई, तेली, धोभी, मोची, सकके, लुहार, बढ़ई, धुनें, रंगरेज़, गाड़ा, झोझा, राईन, रंगरेज़, बंजारे फकीर, वन ग़ुज्जर, कसगर, नट, डोम, मिरासी आदि शामिल हैं. अंसारी को पसमांदा समाज में सबसे ऊंची जाति माना जाता है. 


साल 1998 में पहली बार 'पसमांदा मुस्लिम' शब्द' सुनने को मिला था जब पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने पसमांदा मुस्लिम महाज का गठन किया था. उसी समय ये मांग उठी थी कि सभी दलित मुसलमानों की अलग से पहचान हो और उनको ओबीसी के अंर्तगत रखा जाए. पीएम मोदी की सलाह के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को पार्टी के साथ जोड़ने की जमीनी कोशिश की है. इसे लेकर कई जिलों में सम्मेलन भी हो रहे हैं. इसके जरिये बीजेपी नेता लगातार ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे ही पसमांदा मुसलमानों के सच्चे शुभचिंतक हैं. रणनीति तो ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सारी 80 सीटों पर कब्ज़ा हो जाये.


यूपी के रामपुर को समाजवादी पार्टी का सबसे बड़ा सियासी गढ़ समझा जाता रहा है और कहते थे कि वहां से आज़म खान या उनके समर्थित उम्मीदवार को बीजेपी कभी हरा नहीं सकती है. लेकिन बीजेपी को सपा के इस गढ़ को तोड़ने के लिए इन्हीं पसमांदा मुसलमानों का ऐसा साथ मिला कि रामपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में उसने पहली बार अपना परचम लहरा दिया. रामपुर में पसमांदा समाज की खासी आबादी है. बीजेपी नेताओं की मानें तो मुस्लिम बंजारा समुदाय के लोगों ने बीजेपी को एकतरफा वोट दिया जिसके चलते पार्टी ने आजम खान को उनके गढ़ में ही ध्वस्त कर दिया.


दिल्ली बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रभारी और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष आतिफ रशीद कहते हैं कि दिल्ली नगर निगम चुनाव में 4 मुस्लिम उम्मीदवारों में से तीन महिलाओं को मैदान में उतारने का फैसला स्वागत योग्य कदम है. इससे मुस्लिम समाज की महिलाओं मे आत्मविश्वास और देश के प्रति समर्पण बढ़ेगा. चारों ही प्रत्याशी पसमांदा मुस्लिम समुदाय से हैं जो प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इस भरोसे को मजबूत करते हैं कि वे सही मायने में पसमांदा मुस्लिम समुदाय के खैरख्वाह हैं. वे कहते हैं कि कुछ राजनीतिक दलों ने अभी तक मुस्लिम समुदाय को सिर्फ वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया है लेकिन बीजेपी सरकार में मुसलमानों का सिर्फ विकास ही नहीं हो रहा बल्कि उन्हें प्रतिनिधित्व भी दिया जा रहा है. बीजेपी के यह चारों मुस्लिम कैंडिडेट जीतकर एमसीडी पहुंचेंगे और मुस्लिम सियासत की नई इबारत लिखेंगे.


देश की राजधानी के नगर निगम में पार्टी के ये चारों उम्मीदवार अगर जीत जाते हैं तो फिर बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति को पूरी तरह से बदलना होगा जहां मुस्लिमों के लिए नफ़रत नहीं बल्कि मोहब्बत का पैगाम देना होगा.


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