पाकिस्तान ने अपने ताजा फैसले से ये साबित कर दिखाया है कि अब वह पूरी तरह से चीन की गोद में बैठा हुआ है और अमेरिका से उसे अपने रिश्ते खराब करने में कोई डर नहीं रह गया है. दरअसल, अमेरिका ने 'डेमोक्रेसी समिट' में भारत व पाकिस्तान समेत दुनिया के 110 देशों को आमंत्रित किया था. आज इस समिट का आखिरी दिन है लेकिन पाकिस्तान ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है. माना जा रहा है चीन के कहने पर ही उसने ये फैसला लिया है क्योंकि अमेरिका ने इस सम्मेलन में चीन को नहीं बुलाया. जाहिर है कि चीन की शह पर उठाए गए इस कदम से अमेरिका व पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंध और खराब होंगे और चीन के साथ उसकी बढ़ती नजदीकियां भारत समेत समूचे दक्षिण एशिया में नये तरह के सामरिक खतरे पैदा करेगी.


हालांकि, कल ही इस्लामाबाद कॉनक्लेव में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि पाकिस्तान किसी राजनीतिक गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता है, लेकिन अमेरिका और चीन के बीच की दूरी को कम करने में वो अपनी भूमिका अदा करना चाहता है. उन्होंने ये भी कहा था कि स्थिति एक नए शीत युद्ध की ओर ले जा रही है और इसलिए गुट बन रहे हैं. लेकिन हमें किसी भी गुट का हिस्सा नहीं बनना है "पहले अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच कोल्ड वॉर (शीत युद्ध) से दुनिया भर में काफी नुकसान पहुंचा था और इसलिए पाकिस्तान संभावित एक नए शीत युद्ध में नहीं फंसना चाहता."


लेकिन इसके उलट अमेरिका के न्योते को ठुकराकर पाकिस्तान ने ऐलानिया तौर पर ये जाहिर कर दिया है कि वह चीन के गुट में है और ये स्थिति भारत के लिए भी एक नई चुनौती बन गई है.इसलिये कि चीन और पाकिस्तान, दोनों ही अफगानिस्तान में काबिज़ तालिबान के खैरख्वाह बने हुए हैं और वे भारत को परेशान करने के लिए उसी तालिबान का मिलकर इस्तेमाल करते रहेंगे. दरअसल,पाकिस्तान की शिकायत रही है कि जो बाइडन ने अमेरिका की सत्ता संभालने के बाद से प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को एक फ़ोन तक नहीं किया है. इसकी शिकायत पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ तक ने की है. लेकिन अमेरिका पर पाकिस्तान की इन शिकायतों का कोई असर नहीं हुआ और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इमरान ख़ान से अब तक कोई बात नहीं की है. लेकिन ये एक ऐसा मौका था,जब पाकिस्तान इस समिट में शामिल होकर रिश्तों में जमी बर्फ पिघला सकता था. अमेरिका ने दक्षिण एशिया से भारत, पाकिस्तान, मालदीव और नेपाल को ही इसमें बुलाया  था. बांग्लादेश और श्रीलंका को इसमें नहीं बुलाया गया था. हालांकि, बाइडन प्रशासन ने 110 देशों की इस समिट में चीन, रूस और तुर्की को भी आमंत्रित नहीं किया, जबकि ताइवान को बुलाया गया है. ताइवान को बुलाने पर चीन ने सख़्त आपत्ति जताई थी.


उधर, चीन ने इस समिट में शामिल न होने के पाकिस्तान के फैसले की तारीफ करते हुए उसे अपना असली भाई बताया है.पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के बयान को ट्वीट करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिअन ने लिखा है, ''पाकिस्तान ने लोकतंत्र समिट में शामिल होने से इनकार कर दिया. एक असली और मज़बूत भाई!'' चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की इस टिप्पणी से साफ़ है कि चीन, पाकिस्तान के इनकार से ख़ुश है. इसे लेकर पाकिस्तानी मीडिया में जो रिपोर्ट छपी है, उसमें भी कहा गया है कि पाकिस्तान के इनकार के पीछे की सबसे बड़ी वजह चीन है.


एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, ''यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के इस फ़ैसले के पीछे चीन है लेकिन आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि इस मामले में पाकिस्तान ने चीन से संपर्क किया था. पाकिस्तान के इनकार से साफ़ होता है कि अमेरिका से द्विपक्षीय रिश्ते किस हद तक ख़राब हैं. पाकिस्तान को ये भी डर है कि अमेरिका लोकतंत्र और मानवाधिकारों का हवाला देकर प्रतिबंध भी लगा सकता है.''


जबकि पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, ''एक बड़ी वजह है, इस समिट में चीन को नहीं बुलाना. दोनों देशों के बीच जिस तरह का संबंध है, उसे देखते हुए इस्लामाबाद ने इस समिट से ख़ुद को दूर रखा. एक बड़ा कारण यह भी है कि राष्ट्रपति बाइडन ने पाकिस्तानी पीएम इमरान ख़ान की उपेक्षा की है, ऐसे में पाकिस्तान के लिए शामिल होना बहुत सहज स्थिति नहीं थी.''


पाकिस्तान का ये फ़ैसला सही या ग़लत,इस पर वहाँ के राजनयिक और पत्रकारों की भी प्रतिक्रिया आ रही है. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने ट्वीट किया है, ''लोकतंत्र समिट में पाकिस्तान का नहीं जाना एक संतुलित और चौकस फ़ैसला मालूम पड़ता है.'' बासित के इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए पाकिस्तान के पत्रकार कामरान यूसुफ़ ने लिखा है, ''चौकस? ऐसा लगता है कि हमने ख़ुद को एक कोने में रख लिया है!''


इस मुद्दे पर अब्दुल बासित ने यूट्यूब पर एक वीडियो भी पोस्ट किया है. इस वीडियो में अब्दुल बासित ने इमरान ख़ान के लोकतंत्र समिट में शामिल नहीं होने के फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा है, ''इस लोकतंत्र समिट को देखिए तो ऐसा लगता है कि ये चीन विरोधी कैंपेन है. जिन लोगों को बुलाया गया है और जिन्हें नहीं बुलाया गया है, उससे भी यही पता चलता है.


हम ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि जिस समिट में चीन मौजूद ना हो और ताइवान हो, वहाँ पाकिस्तान जाए. हमें बुलाने की वजह लगती है कि अमेरिका इसके ज़रिए पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा था. हमारा फ़ैसला बिल्कुल दुरुस्त है.क्योंकि लोकतंत्र समिट के ज़रिए अमेरिका ने दाना फेंकने की कोशिश की थी. लेकिन हमने बिल्कुल ठीक फ़ैसला किया. हम अब इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी नहीं हो सकती.''


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