200 साल तक राज करने वाले अंग्रेजों को मोदी सरकार से क्यों मिला ये करारा जवाब?
जो लोग अखंड भारत में पैदा हुए, जिये और फिर दुनिया से विदा हो गए, उनमें से कुछ लोगों के कड़वे-मीठे अनुभव वाली पुस्तकें आज भी आपको किसी लाइब्रेरी में मिल जाएंगी. उनका लुब्बे लुबाब इतना ही है कि जिन अंग्रेजों ने तकरीबन दो सौ साल तक हमारे प्राचीन आर्यावर्त पर राज किया और फिर अपने स्वार्थ के ख़ातिर इसे कई हिस्सों में बांट दिया, उन ब्रिटिशसर पर कभी भरोसा नहीं करना है. औऱ, गुलामी की जंजीरों से मुक्ति मिलने के बाद अगर आज़ाद हिंदुस्तान की किसी भी सरकार ने इन पर आंख मूंदकर भरोसा किया, तो वो उसकी सबसे बड़ी भूल होगी जिसकी कीमत आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी.
बेशक, भारत के आज़ाद होने के 75 साल बाद ब्रिटेन आज भारत का अच्छा दोस्त है और हम भी उससे बराबरी की दोस्ती निभा रहे हैं, ये जानते हुए भी कि उसने हमारे पुरखों को इतने बरसों तक गुलामी की जंजीर में जकड़ा हुआ था. लेकिन कोई भी कहावत ऐसे ही जन्म नहीं लेती, उसके पीछे उस समय के हालात की कुछ तो ऐसी हक़ीक़त जरुर होती है, जो समूचे समाज को भविष्य के लिए आगाह करती है. इसीलिये, हमारे बुजुर्ग कह गए हैं कि खून अपना रंग जरुर दिखाता है, हो सकता है कि उसे देखने में सालों लग जाएं लेकिन वो एक दिन सामने जरुर आयेगा. ब्रिटेन ने इतने बरसों बाद उसी खून का रंग भारत को दिखाने की हिम्मत तो कर ली लेकिन शायद उसे जरा भी अहसास नहीं था कि बदले में भारत भी अब उसी भाषा में जवाब देने के काबिल हो चुका है.
ये सच है कि कोरोना वायरस की महामारी ने पूरी दुनिया को अपने आगोश में लिया लेकिन करीब पौने दो साल बीत जाने के बाद ब्रिटेन ने भारत से वहां जाने वाले नागरिकों के लिए जो भेदभाव और दोयम दर्जे की नीति अपनाई, उसका जवाब भी उसे उसकी भाषा में देना जरुरी था. अगर न दिया जाता, तो वो और चौड़े होकर हमारी छाती पर मूंग ही दलता. लिहाज़ा, मोदी सरकार के इस फैसले की तारीफ इसलिये भी की जानी चाहिये कि उसने अंग्रेजों को न सिर्फ उनकी हैसियत का आईना दिखाया, बल्कि ये भी अहसास करवा दिया कि अब ये वो भारत नहीं रहा, जहाँ तुम्हारे पुरखे कभी राज किया करते थे.
दरअसल, सारा बवाल ब्रिटेन की तरफ से पैदा किया गया. उसने पहले तो हमारी वैक्सीन को मानने से ही इनकार कर दिया था. भारत की तरफ से सख्ती दिखाने के बाद इतना असर हुआ कि उसने कोविशिल्ड टीके को अपनी अन्तराष्ट्रीय ट्रेवल एडवाइजरी में मंजूरी दे दी . लेकिन उसकी धूर्तता की हद देखिये, कि इन टीकों की दोनों खुराक ले चुके भारत से वहां पहुंचने वाले लोगों पर उसने 10 दिन तक क्वारन्टीनन होने की पाबंदी को बरकरार रखा. ये तो ठीक ऐसा फैसला हुआ कि हम आपकी बात तो मान रहे हैं लेकिन फिर भी भारत से आने वाले लोगों को हमारे कदमों में रहना होगा.
ब्रिटेन का ये हाल तब है जब उनकी विदेश मंत्री लिज़ ट्रूस ने 21 सितम्बर को हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की थी और उस बातचीत में जयशंकर ने साफ इशारा कर दिया था कि अगर ये भेदभाव जारी रहा, तो फिर भारत भी उसी हिसाब से जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. फैसला आपका है, चाहें तो मानें, अन्यथा जो परेशानी हमारे नागरिकों को हो रही है, वही सब ब्रिटेन से भारत आने वाले लोगों को भी झेलना होगा. तब लीज़ के पास भी कोई चारा नहीं था, सो वे आश्वासन देकर लौट गईं. लेकिन ब्रिटेन पहुंचकर वे अपनी सरकार के बनाये इस नये कानून में कोई बदलाव नहीं करवा सकीं. नतीजा ये हुआ कि भारत से ब्रिटेन जाने वाले लोगों के प्रति वहां की सरकार ने अपना रवैया जरा भी नहीं बदला और वैक्सीन की दो डोज ले चुके यात्रियों को वहां अब भी 10 दिन के लिए क्वारन्टीन होना पड़ रहा है.
अब चूंकि अंग्रेज झूठी शान में रहते हुए अपने अहंकार को ही सबसे बड़ा हथियार मानते हैं, तो इस पर चोट करना भी जरूरी था. सो, भारत ने 'जैसे को तैसा' वाली अपनी प्राचीन नीति पर अमल किया और ब्रिटेन के ख़िलाफ़ जवाबी क़दम उठाते हुए भारत की यात्रा करने वाले ब्रिटिश नागरिकों के लिए भी कोविड-19 को लेकर सख़्ती बरतने का फ़ैसला कर लिया. इसके मुताबिक, 4 अक्तूबर से भारत आने वाले सभी ब्रिटिश नागरिकों को, चाहे उनकी वैक्सीन की स्थिति जो भी हो, इनका पालन करना होगा. ब्रिटिश नागरिकों को भारत यात्रा के लिए प्रस्थान से 72 घंटे पहले तक की आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट साथ रखनी होगी. भारत में उनके आगमन के बाद हवाईअड्डे पर उनकी कोविड-19 आरटीपीसीआर जांच की जाएगी. इतना ही नहीं, भारत आगमन के बाद 8वें दिन उन्हें कोविड-19 आरटीपीसीआर जांच दोबारा करवानी होगी. साथ ही सरकार ने यह भी फ़ैसला लिया है कि वैक्सीन की डोज़ लगे होने के बाद भी ब्रिटेन से आने वाले यात्रियों को 10 दिनों के लिए होम क्वारंटीन या उनके गंतव्य स्तान पर क्वारंटीन में रहना होगा.
दरअसल, ब्रिटेन में भले ही चुनाव होते हैं और सरकार भी लोगों के वोटों के दम पर ही चुनकर आती है लेकिन वहां राजशाही का अंत अभी भी नहीं हो पाया है. यही वो जड़ है, जो वहां पैदा होने वाले हर बच्चे के दिमाग में डाल दी जाती है कि भारत वो देश है, जिस पर हमने दो सौ साल तक राज किया था. ये एक तरह का 'सुपिरियरटी कॉम्लेक्स' है, जिस पर अगर हमारी सरकार ने अपना हथौड़ा चलाया है, तो उसकी सराहना इसलिये भी की जानी चाहिए कि ये भारत के 135 करोड़ देशवासियों की अस्मिता से जुड़ा मसला है.
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