RSS प्रमुख ने 'ईद' पर मुसलमानों को किसलिए दिलाया ये भरोसा?
![RSS प्रमुख ने 'ईद' पर मुसलमानों को किसलिए दिलाया ये भरोसा? Why did the RSS chief Mohan Bhagwat give this assurance to Muslims on eid ul adha RSS प्रमुख ने 'ईद' पर मुसलमानों को किसलिए दिलाया ये भरोसा?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/07/21/ea4bee7d7c524d289b79480d14d3eba6_original.jpeg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
ईद उल अज़हा के पवित्र मौके पर आज आरएसएस ने एक बार फिर देश के मुसलमानों को यह अहसास कराने की कोशिश की है कि मोदी सरकार उनका नुकसान नहीं होने देगी. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने संशोधित नागरिकता कानून (CAA) का मुद्दा छेड़कर मुसलमानों में बैठे डर को दूर करने की कोशिश की है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर संघ को बार-बार यह भरोसा दिलाने की जरुरत क्यों पड़ रही है कि इससे मुसलमानों का कोई नुकसान नहीं होगा? लगता है कि या तो देश का मुस्लिम समुदाय इस कानून को अब तक समझ नहीं पाया है या फिर सरकार ही उसे समझा नहीं सकी है.
दरअसल,ये कानून भारत के मुसलमानों के लिए नहीं बनाया गया है बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल मुल्कों में बसे या वहां से आये अल्पसंख्यक प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने के नियम को आसान करने के लिए लाया गया है. दो साल पहले बने इस कानून के बाद इन तीन देशों के हिंदू, सिख, ईसाई ,बौद्ध, जैन और पारसी धर्म के प्रवासियों को भारत की नागरिकता मिलनी बेहद आसान हो गई है क्योंकि मोदी सरकार ने पुराने कठोर नियमों को सरल कर दिया है.
मसलन, इससे पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था. अब उस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है. यानी इन तीनों देशों के छह धर्मों के जो लोग बीते एक से छह साल के बीच भारत आकर बसे हैं, उन्हें नागरिकता मिल सकेगी. आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है.
चूंकि यह कानून इन तीन देशों के मुस्लिमों को ऐसी नागरिकता पाने का हक़ नहीं देता,लिहाजा इसका खूब विरोध भी हुआ था औऱ इस पर जमकर राजनीति भी हुई. विपक्षी दलों व मुस्लिम नेताओं का मुख्य तर्क यही था जो अब भी है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है.इसलिये मुस्लिमों को इससे बाहर रखना गलत है.
शायद इसीलिये आज गुवाहाटी के एक कार्यक्रम में मोहन भागवत को यह बात दोहरानी पड़ी, ''CAA भारत के किसी नागरिक के विरुद्ध बनाया हुआ कानून नहीं है. भारत के नागरिक मुसलमान को इससे कुछ नुकसान नहीं पहुंचेगा. विभाजन के बाद एक आश्वासन दिया गया कि हम अपने देश के अल्पसंख्यकों की चिंता करेंगे.हम आज तक उसका पालन कर रहे हैं,जबकि पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया.''
भागवत ने यह भी रेखांकित किया कि नागरिकता कानून पड़ोसी देशों में उत्पीड़ित हुए अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करेगा.उन्होंने कहा, “हम आपदा के समय इन देशों में बहुसंख्यक समुदायों की भी मदद करते हैं…इसलिए अगर कुछ ऐसे लोग हैं, जो खतरों और भय के कारण हमारे देश में आना चाहते हैं, तो हमें निश्चित रूप से उनकी मदद करनी होगी.”
इसी तरह NRC यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर भी मुसलमानों के बीच यह भ्रम है कि इसके लागू होने के बाद उन्हें देश से बाहर कर दिया जायेगा. जबकि इसका मकसद अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से निकालना है. खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में ऐसे घुसपैठियों की संख्या अधिक है. इसीलिये भागवत को एनआरसी के बारे में भी ये कहना पड़ा कि सभी देशों को यह जानने का अधिकार है कि उनके नागरिक कौन हैं. उन्होंने कहा, “यह मामला राजनीतिक क्षेत्र में है, क्योंकि इसमें सरकार शामिल है. लेकिन लोगों का एक वर्ग इन दोनों मामलों को सांप्रदायिक रूप देकर राजनीतिक हित साधना चाहता है. जबकि इसका हिंदू-मुसलमान विभाजन से कोई लेना-देना नहीं है."
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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