भारतीय पिचों पर पहले बल्लेबाजी अक्सर क्यों बन जाती है जीत की गारंटी ?
भारत ने विशाखापत्तनम टेस्ट 203 रनों के बड़े अंतर से जीत लिया. टीम इंडिया ने दिखाया कि ड्रेसिंग रूम की प्लानिंग को मैदान में कैसे उतारा जाता है.
2 अक्टूबर को विराट कोहली ने जब टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया तभी टेस्ट मैच में उसकी पकड़ मजबूत हो गई. उसके बाद सोने पर सुहागा हुआ भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाजों का प्रदर्शन. मयंक अग्रवाल के पास ज्यादा अनुभव ज्यादा नहीं और रोहित शर्मा पहली बार बतौर सलामी बल्लेबाज उतर रहे थे. लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों ने 2006 के बाद पहली पारी सलामी बल्लेबाज जोड़ी के तौर पर 300 रनों का आंकड़ा पार कर दिया.
मयंक अग्रवाल ने पहली पारी में 215 रन बनाए. रोहित शर्मा ने 176 रन बनाए. इन दोनों बल्लेबाजों के बीच हुई 317 रनों की साझेदारी ही इस टेस्ट मैच में जीत की बड़ी वजह बनी. क्योंकि पहली पारी में इन दोनों बल्लेबाजों को छोड़कर कोई भी बल्लेबाज नहीं चला. पहली पारी में इन दोनों बल्लेबाजों के बाद रवींद्र जडेजा सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज थे. जिन्होंने सिर्फ 30 रन बनाए थे. वरना विराट कोहली ने 20, पुजारा ने 6, रहाणे ने 15, हनुमा विहारी ने 10 रन बनाए थे.
रोहित और मयंक की साझेदारी ही थी जिसकी बदौलत भारतीय टीम का स्कोर 500 रनों के पार गया और बाद में टीम के काम आया. यही टॉस अगर दक्षिण अफ्रीका के पक्ष में गया होता तो कहानी दूसरी होती. क्योंकि पहली पारी में दक्षिण अफ्रीका ने भी सवा चार सौ से ज्यादा रन बनाए. बल्कि एक यूनिट के तौर पर उनकी बल्लेबाजी में तीन खिलाड़ियों का योगदान था. डीन एल्गर ने टॉप ऑर्डर में रन बनाए. कप्तान ड्यूप्लेसी और क्विंटन डी कॉक ने मिडिल ऑर्डर में रन बनाए.
विराट कोहली ने गेंदबाजों को दिया पूरा समय
विराट कोहली ने अपने गेंदबाजों के दूसरी पारी में दक्षिण अफ्रीका के 10 विकेट लेने के लिए करीब 100 ओवर का समय दिया. व्यवहारिक पक्ष ये है कि अगर जीत हासिल करनी है तो 100 ओवर गेंदबाजों के लिए पर्याप्त होते हैं. गेंदबाजों को यही 100 ओवर देने के लिए दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाजों ने वनडे की तरह बल्लेबाजी की. 11 महीने बाद टेस्ट टीम में वापसी करने वाले आर अश्विन ने पहली पारी में सात विकेट लेकर अफ्रीकी बल्लेबाजों के मन में खौफ पैदा कर ही दिया था.
इसी खौफ का फायदा दूसरी पारी में भी टीम इंडिया को मिला. दूसरी पारी में अफ्रीकी बल्लेबाजों ने आर अश्विन को सावधानी के साथ खेला. ऐसे में असली खेल मोहम्मद शमी ने किया. उन्होंने विकेट टू विकेट गेंदबाजी की. पिच को बेहतर तरीके से समझ कर खेले. उन्होंने ज्यादातर समय इनकमिंग गेंदें फेंकी और बल्लेबाजों के विकेट और पैड को टारगेट किया. इसी सूझबूझ भरी गेंदबाजी का फायदा हुआ कि मोहम्मद शमी ने दूसरी पारी में सिर्फ 10.5 ओवर में 5 विकेट चटकाए. रवींद्र जडेजा ने भी दूसरी पारी में 4 विकेट लेकर अपनी उपयोगिता साबित की.
ईशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, रवींद्र जडेजा और आर अश्विन के साथ इस टेस्ट मैच में उतरे विराट कोहली के लिए राहत की बात ये रही कि उनके गेंदबाजों ने जसप्रीत बुमराह की गैरमौजूदगी में भी विरोधी टीम के 20 विकेट चटकाए. पिछले करीब दो साल में टेस्ट क्रिकेट में भारतीय टीम को मिली कामयाबी का राज ही यही है कि उसके गेंदबाजों ने विपक्षी टीम के 20 बल्लेबाजों को लगातार आउट किया है. विशाखापत्तनम में अपनी पिचों पर भी भारतीय गेंदबाजों ने इस परीक्षा को पास किया.
दक्षिण अफ्रीका से प्लेइंग 11 चुनने में हुई गलती
दक्षिण अफ्रीकी टीम जरूरत से ज्यादा स्पिन के चक्कर में फंस गई. उन्होंने तीन स्पिनर्स को प्लेइंग 11 में जगह दी. तीनों स्पिनर्स ने औसत गेंदबाजी की. यही वजह है कि टेस्ट मैच के पहले दिन से ही दक्षिण अफ्रीका की टीम बैकफुट पर थी. भारतीय टीम के बल्लेबाजों ने दूसरी पारी में जब तेज गति से रन बटोरने शुरू किए तो अफ्रीकी स्पिन गेंदबाज बेबस नजर आए. बेहतर होता अगर दक्षिण अफ्रीका टीम अपनी पारंपरिक तेज गेंदबाजी पर ज्यादा भरोसा करती. अगले टेस्ट मैच में ये बदलाव शायद नजर भी आएगा जब दक्षिण अफ्रीका टीम पुणे के मैदान में उतरेगी.