पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच एक बार फिर से आरपार की तकरार होने की नौबत आ गई है. राज्यपाल की शक्तियां कम करने को या फिर कहा जाए कि उनकी शक्तियां छीनने के मकसद से ममता कैबिनेट ने गुरुवार को बड़ा फैसला लिया है. इसके मुताबिक राज्य सरकार के सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर यानी कुलाधिपति अब राज्यपाल नहीं बल्कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी होंगी. इससे संबंधित विधेयक जल्द ही विधानसभा में लाया जायेगा.
चूंकि यह एक राजनीतिक फैसला है, लिहाजा इस मुद्दे पर दोनों तरफ से राजनीति भी जमकर होगी. विधानसभा में कोई भी बिल पास हो जाने के बाद उसे मंजूरी के लिये राज्यपाल के पास भेजा जाता है और उनसे सहमति मिलने के बाद ही वह एक कानून की शक्ल लेता है. जाहिर है कि विधानसभा में बहुमत के चलते ममता के नये शगूफे वाला ये बिल आसानी से पास भी हो जाएगा लेकिन जरुरी नहीं कि राज्यपाल इसे अपनी मंजूरी दे ही दें. वे इसे कुछ आपत्तियों के साथ सरकार को वापस भी भेज सकते हैं और चाहें, तो अपने पास लंबित रखकर इसे लटका भी सकते हैं.
वैसे ममता बनर्जी और राज्यपाल धनखड़ के बीच शुरु से ही छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है. राजनीतिक पृष्ठभूमि रखने वाले धनखड़ कई मामलों में मुखर रहे हैं और उन्होंने ममता सरकार के कुछ फैसलों की खुलकर आलोचना भी की है. इसलिये लगता नहीं कि वे इस बिल पर इतनी आसानी से अपनी मंजूरी देंगे. उल्टे, ममता सरकार ये बिल लाकर केंद्र के साथ सियासी लड़ाई का एक नया अखाड़ा ही खोलेगी.
दरअसल, राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर गवर्नर ही होते हैं जो कुलपतियों की नियुक्ति करते हैं. ममता सरकार मौजूदा कानून में संशोधन करके राज्यपाल से अब ये अधिकार छीन लेना चाहती हैं. कुछ दिन पहले ही विश्विद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति को लेकर बंगाल सरकार और राजभवन के बीच रस्साकसी की खबरें सामने आई थीं. ममता सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल धनखड़ ने राज्य सरकार की सहमति के बिना कई कुलपतियों की नियुक्ति कर दी. इसलिए राज्यपाल की शक्तियां कम करने के लिए ही ममता सरकार ने ये बड़ा कदम उठाया है.
इससे पहले बीती 15 जनवरी को ट्वीट कर राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे. धनखड़ ने ट्वीट कर कहा था कि 24 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को बिना चांसलर की मंजूरी लिए अवैध रूप से नियुक्त कर दिया गया. कोलकाता विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर सोनाली चक्रवर्ती को बिना किसी चयन के पूरे 4 साल का दूसरा कार्यकाल दे दिया गया है. राज्यपाल ने कार्रवाई की चेतावनी देते हुए अपने ट्वीट में लिखा था कि कानूनों की अवहेलना करते हुए 24 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति की गई. ऐसा विशिष्ट आदेशों की अवहेलना करते हुए या कुलाधिपति-नियुक्ति प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना किया गया है. इन नियुक्तियों के लिए कोई कानूनी मंजूरी नहीं ली गई है और अगर जल्द ही इन्हें वापस नहीं लिया जाता तो मजबूरन कार्रवाई की जाएगी.
जनवरी में ही सीएम और गवर्नर के बीच ट्वीटर वार इतनी बढ़ गई थी कि ममता ने जगदीप धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया था. ममता ने कहा था कि वो बंगाल के गवर्नर के ट्वीट से परेशान हो गई थीं, जिसके बाद उन्होंने धनखड़ को ब्लॉक कर दिया. इस दौरान ममता बनर्जी ने धनखड़ पर गंभीर आरोप भी लगाए थे. ममता ने कहा था कि गवर्नर राज्य के चीफ सेक्रेटरी और पुलिस महानिदेशक को धमकी दे रहे थे. तब उन्होंने ये भी कहा था कि उन्होंने गर्वनर के बर्ताव को लेकर पीएम को कई पत्र भी लिखे कि वह नहीं सुन रहे हैं. धनखड़ कई फाइलों को मंजूरी नहीं देते हैं.
अब देखना ये है कि ममता सरकार का ये बिल बंगाल की सियासत में क्या नया तूफान लाता है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)