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क्रिकेट की पिच पर खेलने वालों को आख़िर क्यों करती है हमारी राजनीति ही 'आउट'!

अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनिया के 45 से भी ज्यादा देशों के लोगों को प्रभावित करने वाले ओशो रजनीश ने बरसों पहले खेल की उस परिभाषा को समझा दिया था जहां हर पल अब हमें उस पर राजनीति का खौफनाक साया देखने को मिलता है. ओशो ने कहा था कि "हमारी धारणा यही है कि जीवन कृत्य नहीं होना चाहिए, जीवन एक खेल होना चाहिए. 

खेल का यही फर्क है क्योंकि कृत्य का लक्ष्य होता है खेल का कोई लक्ष्य नहीं होता. खेल में कोई फलाकांक्षा नहीं होती लेकिन काम में फलाकांक्षा होती है. बूढों को तो क्षमा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि जिंदगी बीत गई लेकिन अभी तक इतना भी नहीं सीखें कि जीतने में कुछ सार नहीं है हारने में कोई हारता नहीं जीतने में कोई जीतता नहीं. यहां हार और जीत सब बराबर है. इसलिये कि मौत सब को एक सा मिटा जाती है. हारे हुए मिट्टी में गिर जाते हैं और जीते हुए भी उसी मिट्टी में गिर जाते हैं."

दरअसल, सारे लफड़े की जड़ देश की राजनीति है जो आज से नहीं बल्कि पिछले कई दशकों से खेलों को न सिर्फ प्रभावित करती रही है बल्कि वो अपने मनमाफिक तरीके से तमाम खेल संगठनों को अप्रत्यक्ष तरीक़े से हमेशा अपने हाथ में ही रखना चाहती है. इसमें सबसे बड़ा और कमाऊ खेल संगठन है- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी BCCI. पिछले चार दशकों से देखा जा रहा है कि इसकी कमान संभालने के लिए वो नेता लालायित रहते हैं जिन्होंने अपने जिले में भी क्रिकेट टीम को जिताने में कोई योगदान नहीं दिया हो. लेकिन ऐसे सभी खेल संगठनों में होने वाले वार्षिक चुनाव राजनीति का ऐसा अखाड़ा बन जाते हैं कि हम सबको मानना पड़ता है कि जिसकी लाठी, उसकी ही भैंस. समझदार को इशारा ही काफी है कि ऐसे चुनाव में भी धन-बल का कितना बेदर्दी से इस्तेमाल होता होगा जो कभी भी देश के सबसे तेज कहलाने मीडिया की सुर्खियां भी नहीं बन पाया. 

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को मोदी सरकार के दौरान ही BCCI का अध्यक्ष बनाया गया था. वे तब भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी थे और ये पद मिलने के बाद वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भी उतने ही करीबी बन गये. लेकिन बंगाल की राजनीति को करीब से समझने वाले जानकार बताते हैं कि ये पद मिलने से पहले ही ममता बनर्जी ने भी उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था. ऐसा ही ऑफर बीजेपी की तरफ से भी उनके पास आया था लेकिन उन्होंने दोनों दलों तक बड़ी विनम्रता से ये संदेश भिजवा दिया कि फिलहाल मैं सक्रिय राजनीति में आने के लिए मानसिक रुप से तैयार नहीं हूं. लेकिन गांगुली की ममता के लिए कही गई इस "ना" को बीजेपी ने अपने लिए मास्टर स्ट्रोक समझा और BCCI के अध्यक्ष के बतौर उनकी ताजपोशी करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

बता दें कि सौरव गांगुली अक्टूबर 2019 में बीसीसीआई के अध्यक्ष बने थे. उनका कार्यकाल 9 महीने का ही था लेकिन बीसीसीआई के संविधान का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने की वजह से गांगुली तीन साल तक इस पद पर बने रहे. इस बीच अब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने अध्यक्ष पद का चुनाव कराने को लेकर घोषणा कर दी है. सौरव गांगुली फिलहाल पद पर विराजमान हैं लेकिन जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है उससे लगता है कि उन्हें एक और कार्यकाल नहीं मिलने वाला है. लेकिन देश के इस सबसे ताकतवर संगठन को लेकर जिसकी आशंका जताई जा रही थी वो सच साबित होती दिखाई दे रही है. बीसीसीआई के इस चुनाव में ऐसा राजनीतिक तड़का लग गया है कि बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं. 

बीसीसीआई से गांगुली की विदाई को ममता बनर्जी की पार्टी  टीएमसी ने मुद्दा बनाते हुए बीजेपी पर हमला बोल दिया है. टीएमसी सांसद शांतनु सेन ने आरोप लगाया कि सौरव गांगुली को पश्चिम बंगाल का होने की वजह से या फिर बीजेपी में शामिल होने का प्रस्ताव ठुकराने की वजह से हटाया जा रहा है. हालांकि इसके जवाब में बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा कि टीएमसी खेल पर राजनीति ना करे. गौरतलब है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने 18 अक्टूबर को बेहद ही अहम बैठक बुलाई है. ऐसे कयास लगाए जा रहा हैं कि इस बैठक में बीसीसीआई को नया अध्यक्ष मिल सकता है. अभी तक सामने आई जानकारी के मुताबिक बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की रेस में पूर्व क्रिकेटर रोजर बन्नी (Roger Binny) का नाम सबसे आगे चल रहा है. लेकिन सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) ने दोबारा बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की उम्मीद नहीं छोड़ी है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सौरव गांगुली दोबारा बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की रेस में बने हुए हैं. दरअसल, बीसीसीआई के अधिकारियों के बीच एक बैठक हुई है. इस बैठक में सौरव गांगुली को आईपीएल का चेयरमैन बनने का प्रस्ताव दिया गया. सौरव गांगुली ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर ही बने रहना चाहते है. गांगुली ने बाकी अधिकारियों से कहा है कि उन्हें रोजर बन्नी के खिलाफ चुनाव लड़ने दिया जाए. सौरव गांगुली ने मीटिंग में अपनी जीत का दावा भी किया है. 

जाहिर है कि BCCI का नया अध्यक्ष वहीं बनेगा जिसे सरकार में बैठे कारिंदों का वरदहस्त प्राप्त होगा. लेकिन खेलों में होने वाली राजनीति के जानकार मानते हैं कि अध्यक्ष पद के अलावा बीसीसीआई में ज्यादा बदलाव होने की संभावना बेहद कम है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह पहले की तरह बीसीसीआई सचिव के पद पर बने रह सकते हैं. तो वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री  राजीव शुक्ला के पास भी बीसीसीआई उपाध्यक्ष का पद बना रहेगा. हालांकि अरुण धूमल को आईपीएल का चेयरमैन बनाया जा सकता है. वे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के भाई हैं. ये सब नाम पढ़ने के बाद भी आपको लगता है कि हमारे खेल संगठनों पर राजनीति का कोई अंकुश नहीं है तो फिर मुझे आपसे कुछ भी नहीं कहना है!

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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