(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
संन्यासी योगी की सरकार, आखिर क्यों दोहराना चाहती है 'कुम्भ' की दास्तान?
नई दिल्लीः पिछले डेढ़ साल में दुनिया के तमाम देशों के लोग इस हकीकत के गवाह बने हैं कि कोरोना के वायरस ने न किसी का धर्म देखा, न जात देखी और न ही उम्र. वह सबको समान रुप से अपनी चपेट में लेता रहा और यह सिलसिला अभी पूरी तरह से थमा नहीं है. लेकिन शायद अकेला हमारा देश ही ऐसा है, जहां इस महामारी पर भी धर्म की आस्था भारी पड़ रही है.
कोरोना की दूसरी लहर के बीच हमने हरिद्वार के कुंभ में जुटी लाखों लोगों की भीड़ के दृश्य देखे और फिर उसका नतीजा भी भुगता, और अब जबकि देश के तमाम डॉक्टर-विशेषज्ञ तीसरी लहर आने के लिए आगाह कर रहे हैं, तब उत्तर प्रदेश की सरकार ने कांवड़ यात्रा निकालने की इजाजत दे दी है. सिर्फ डॉक्टर ही नहीं बल्कि कोई भी समझदार इंसान इस फैसले को उचित नहीं कहेगा. जहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस संक्रमण को फैलाने में मददगार बने.
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिल स्टेशनों पर जुटे पर्यटकों की भीड़ की तस्वीरें देखकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए लोगों से अपील करते हैं कि वे तीसरी लहर को मौसम का अपडेट समझने की भूल न करें, तो वहीं यूपी सरकार धर्म के प्रति आस्था के इस प्रदर्शन को सूबे की सड़कों पर करने की खुली छूट देने का जोखिमपूर्ण फैसला लेती है. हमारे देश का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म-मज़हब में आस्था रखने व उसके प्रदर्शन करने का अधिकार देता है, लेकिन वो ये हक़ कतई नहीं देता कि आस्था का वह प्रदर्शन किसी दूसरे इंसान की जिंदगी के लिये ख़तरा बन जाये.
देश के हर राज्य के हर शहर के गली-मुहल्ले में शिवालय मंदिर हैं, जहां जल अर्पित करके श्रद्धालु अपनी आस्था पूरी कर सकते हैं. उसके लिए भारी-भरकम म्यूजिक के साथ भीड़ का सड़कों पर आना कोई अनिवार्य बाध्यता नहीं है कि उसके बगैर भोले भंडारी प्रसन्न नहीं हो सकते, और न ही ऐसा किसी धर्मशास्त्र में लिखा है.
सवाल यह भी उठता है कि हरिद्वार कुम्भ के कड़वे अनुभव से सबक लेकर जब उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को कैंसल करने का समझदारी भरा निर्णय लिया है, तब यूपी सरकार ही यात्रा कराने के लिए क्यों अड़ी हुई है? इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है और दोनों प्रदेशों में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. इसलिये अगर यह मान भी लें कि इस यात्रा के जरिये हिंदुत्व-शक्ति का प्रदर्शन करने से चुनाव में कुछ अधिक सियासी फायदा मिल सकता है, तो फिर उत्तराखंड को इसे रद्द करने पर मजबूर क्यों होना पड़ा?
अच्छी बात ये है कि कोरोना काल के दौर में देश की सर्वोच्च अदालत को लोगों की जिंदगी की भी ज्यादा परवाह है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने आज यूपी सरकार के इस फैसले पर स्वत: ही संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है, जिस पर 16 जुलाई को सुनवाई होगी.
हालांकि, यूपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने दलील दी है कि "यह राज्य की जिम्मेदारी है और हम सुनिश्चित करेंगे कि श्रद्धालुओं की आरटीपीसीआर टेस्टिंग हो." स्वास्थ्य मंत्री ने ये भी कहा कि यह आस्था का विषय है और हर साल की तरह यह यात्रा होगी. लेकिन यहां यह याद दिलाना जरुरी है कि कुंभ के दौरान उत्तराखंड सरकार ने भी ऐसी ही दलील दी थी लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बता रही थी. लोगों ने कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाईं, प्रशासन का भीड़ पर कोई नियंत्रण नहीं था और जो टेस्ट हुए भी तो बाद में पता लगा कि उनमें से आधे से ज्यादा फर्जी थे. इसलिये सवाल उठता है कि एक संन्यासी मुख्यमंत्री की सरकार कुंभ की दर्दनाक दास्तान आखिर क्यों दोहराना चाहती है?