राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के मुसलमानों और सभी भारतीयों के एक डीएनए को लेकर दिये बयान पर भले ही जुबानी बहस छिड़ गई हो लेकिन इसके गहरे सियासी मायने भी हैं. हालांकि ठीक यही बात भागवत ने तीन साल पहले दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए संघ के एक कार्यक्रम में भी कही थी लेकिन तब शायद इस पर उतनी तीखी बहस नहीं छिड़ी थी,जितनी अब हुई है.
क्या अब लिंचिंग रूक जाएगी?
भागवत ने अपने भाषण में वैसे तो कई बातें की हैं लेकिन मुसलमानों में बैठे डर को ख़त्म करने के लिए उन्होंने मॉब लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा किसी को पीट-पीटकर मार डालने का मुद्दा उठाते हुए इस पर चिंता जताई है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि उत्तर प्रदेश या अन्य बीजेपी शासित राज्यों में ऐसी घटनाएं रुक जाएगी? इस बात की आखिर क्या गारंटी है कि भागवत की इस नसीहत को वे ताकतें आसानी से मान लेंगी जो हिंदुत्व की आड़ लेकर ऐसी हरकतें करती रहती है? इसलिये एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी से लेकर अन्य विपक्षी नेताओं ने जो आशंका जाहिर की है, उसे समझा जा सकता है. लिहाज़ा यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर संघ सचमुच इसे लेकर गंभीर है, तो उसे जमीनी स्तर पर वैसी सख्ती भी करनी होगी, जो हक़ीक़त में नज़र भी आये.
जहां तक सभी भारतीयों का डीएनए एक होने और मुसलमानों के पूर्वजों के भी हिंदू होने के बयान की बात है, यह समझना होगा कि संघ प्रमुख किसी राजनेता की तरह कभी कोई ऐसा बयान नहीं देते, जिससे बाद में मुकरना पड़ जाए या जिसका कोई अर्थ ही न हो. भागवत के इस बयान के पीछे संघ की वह व्यापक सोच है जिसके लिए पिछले कई सालों से वह काम कर रहा है और उसी मकसद से उसने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना करवाई है. हालांकि, संघ कभी यह दावा नहीं करता कि इसे बनाने में उसकी कोई भूमिका है और संघ के पदाधिकारी यही दोहराते हैं कि यह मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के हितों के लिए बनाया गया एक संगठन है, जो राष्ट्रवादी विचाराधारा वाले मुद्दों पर संघ का साथ देता रहता है.
'मुसलमानों के पूर्वज भी हिंदू ही थे'
दरअसल, संघ भारत के मुसलमानों को यह अहसास कराना चाहता है कि उनके पूर्वज भी हिंदू ही थे क्योंकि इस्लाम तो व्यापारियों और आक्रमणकारियों के साथ भारत आया, उससे पहले तक तो सभी हिन्दू ही थे. इसलिये संघ बार-बार यह याद दिलाता है कि भारत में आज जो भी मुसलमान हैं, उनकी आठ-दस पुरानी पीढ़ी के सभी पूर्वज हिन्दू ही थे, लिहाज़ा उनका डीएनए हिंदुओं से अलग कैसे हो सकता है. उसी समान डीएनए की बात को कल भागवत ने फिर दोहराया.
दूसरा, संघ की यह भी सोच है कि मुसलमानों में बैठे इस डर को पूरी तरह से ख़त्म किया जाये कि बीजेपी के राज में उन पर जुल्म ढाया जाएगा या उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा बर्ताव किया जायेगा. इसीलिये भागवत ने अपने भाषण में मॉब लिंचिंग वाले मसले को उठाकर कट्टरवादी विचारधारा रखने वाली ताकतों को भी यह संदेश देने की कोशिश है कि जब हम सबका डीएनए एक ही मानते हैं, तो फिर ऐसा करके वे एक तरह से अपने भाई को ही तो मार रहे हैं. लिहाजा, उन्होंने यह मुद्दा उठाकर भाजपा शासित राज्य की सरकारों को भी इशारों में यह समझाया है कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगनी चाहिये. हालांकि, एक बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर सबका डीएनए एक ही है, तो फिर समाज में इतनी मजहबी नफ़रत क्यों है और बजरंग दल जैसे कट्टरवादी संगठन खड़े करने की जरूरत आखिर क्यों पड़ती है.
'ओवैसी मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं'
संघ की दिल्ली कार्यकारिणी के सदस्य व पूर्व प्रचार प्रमुख राजीव तुली कहते हैं कि "भागवत के बयान पर सियासत करके असदुद्दीन ओवैसी जैसे या दूसरे दलों के नेता कुछ वक्त के लिए अपनी राजनीति तो चमका सकते हैं लेकिन इससे वे देश के मुसलमानों का कोई भला नहीं कर रहे. बल्कि वे उन्हें गुमराह ही कर रहे हैं. संघ की स्थापना के समय से ही गुरु गोलवलकर और उसके बाद आज तक संघ की सोच यही है कि जो भी व्यक्ति भारत को अपनी मातृभूमि व पितृभूमि मानता है, वह भारतीय है और उसके पूर्वज हिंदू ही थे. संघ अपने इस दृष्टिकोण पर अडिग है और आगे भी रहेगा. इसे मानने में आखिर डर क्यों होना चाहिए."
तुली कहते हैं कि एक नासमझ इसे न माने, समझा जा सकता है लेकिन पढ़े-लिखे मुसलमान और फ़िल्म जगत के सितारे भी अपने पूर्वजों को हिंदू मानने से इनकार करें, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. वह तर्क देते हैं कि "शाहरुख खान,सैफ अली खान या आमिर खान अपने बच्चों के नाम भले ही मुस्लिम रख लें लेकिन उन बच्चों के पूर्वज तो हिंदू ही कहलायेंगे क्योंकि उन सबकी मां तो हिंदू ही है." गौरतलब है कि इन तीनों अभिनेताओं की पत्नियां हिंदू परिवार में ही जन्मीं हैं.
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