नई दिल्लीः भारत में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बीते कुछ साल में इतना ताकतवर बन चुका है कि इनका संचालन करने वाली अमेरिकी कंपनियों ने हमारे देश के कानून को ठेंगा दिखाते हुए अपनी मनमानियां शुरू कर दी थीं.


नतीजा यह हुआ कि आज सरकार ने जब अंजाम भुगतने की आखिरी चेतावनी दी तब ट्विटर के तेवर ढीले पड़े और उसने उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत अन्य सभी नेताओं के एकाउंट में ब्लू टिक वापस बहाल कर दिया.


लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सोशल मीडिया के लिए सरकार ने बीती 25 फरवरी को जो नये आईटी नियम बनाये थे उन्हें लागू करने के लिए तीन महीने की मोहलत दी गई थी उसके बावजूद इन कंपनियों के हौसले आखिर कैसे बुलंद हो गए कि वे इसे लागू करने को तैयार ही नहीं? भारत के करोड़ों यूज़र्स के जरिये सालाना अरबों रुपये का मुनाफा कमाने वाली ये कंपनियां अगर देश का कानून मानने को तैयार नहीं हैं तो सरकार इनका बोरिया बिस्तर समेटने का आदेश देने से आखिर क्यों कतरा रही है.


फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया एप कोई रोटी, कपड़ा व मकान तो हैं नहीं कि आम भारतवासी इनके बगैर जिंदा नहीं रह पायेगा. जब ये नहीं होंगे, तो इनके विकल्प के रूप में और कई देसी एप आ जाएंगे.


दरअसल, ब्लू टिक एक वेरिफ़ाई हो चुके ट्विटर अकाउंट का निशान होता है. उप राष्ट्रपति नायडू के अकाउंट से ब्लू टिक हटने के बाद अंदेशा जताया गया था कि सरकार के साथ जारी आईटी क़ानून विवाद को लेकर ट्विटर ने यह कार्रवाई की है. हालांकि, शनिवार को पहले नायडू और फिर सरकार के चेतावनी देने के बाद भागवत के हैंडल पर ब्लू टिक दोबारा दिखने लगा. इस पर ट्विटर ने सफाई दी है कि जुलाई 2020 से इन-ऐक्टिव रहने की वजह से वेंकैया नायडू के ट्विटर हैंडल से ब्लू टिक अपने आप हट गया था.


ट्विटर पॉलिसी के मुताबिक़ किसी अकाउंट के काफ़ी समय सक्रिय न रहने पर ऐसा होता है. वहीं मोहन भागवत ने मई 2019 को ट्विटर जॉइन करने के बाद से अब तक कोई ट्वीट नहीं किया है. वैसे 25 फ़रवरी को भारत सरकार द्वारा बनाये गए नए नियमों के अनुसार सोशल मीडिया सहित सभी मध्यस्थों को ड्यू डिलिजेंस या उचित सावधानी का पालन करना होगा. अगर वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें क़ानून के द्वारा दी गईं सुरक्षाएं नहीं मिलेंगी.


इन नियमों के अनुसार ग़ैर-क़ानूनी जानकारी को हटाने की ज़िम्मेदारी भी मध्यस्थों की होगी. सरकार ने इन नियमों को लागू करने के लिए प्लैटफ़ॉर्म्स को 26 मई तक का वक़्त दिया था. सरकार के मुताबिक़ ट्विटर ने 26 मई तक सभी आदेशों का पालन नहीं किया है.


दरअसल, ट्विटर और व्हाट्सऐप की प्राइवेसी और सोशल पॉलिसी भारत और यूरोपीय देशों में अलग-अलग है. भारत में जहां ये कंपनियां अपने बनाए हुए नियमों को ही सर्वोपरि मानती हैं. वहीं दूसरी ओर यूरोपीय देशों में ये सरकारों के हिसाब से अपने को बदल लेती है. भारत में इन कंपनियों को इंटरमीडिटियरी कंपनी के तौर पर मान्यता दी हुई है जो कि आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 79 के भीतर दी गई है, यानी ये कंपनियां अमेरिका में रहकर यहां अपने प्रोडक्ट पर सेवाएं दे सकती हैं.


लेकिन हाल ही में कई देशों में ट्विटर को बैन किया जा चुका है. वजह यह है कि ये अमेरिका में अलग तरह से काम करती हैं, जबकि भारत या दूसरे विकासशील देशों में अलग तरह से. नाइजीरिया में भी ट्विटर बंद है. वहां राष्ट्रपति के अकाउंट के साथ छेड़छाड़ के बाद ट्विटर को बंद कर दिया गया था. घाना में भी इन्हीं कारणों से ट्विटर को बंद कर दिया गया है.


लिहाजा, अगर ये कंपनियां भारत के कानून को मानने में जरा भी देरी करती हैं तो सरकार को इन पर तुरंत प्रतिबंध लगा देना चाहिये.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)