राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पूर्ववर्ती सरकार के दौरान हुई गड़बड़ियों के खिलाफ एक्शन में गहलोत सरकार की विफलता पर सवाल खड़े करते हुए एक दिन का अनशन किया. उनके इस कदम से भले ही हाईकमान नाराज हुआ हो, लेकिन ये हकीकत है कि उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री गहलोत के साथ अपने पुराने विवाद को एक बार फिर से ताजा कर दिया. इसके बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहा है कि जब मुश्किल से राज्य में 8 महीने विधान सभा का चुनाव बचा हुआ है, तो फिर सचिन पायलट ने अचानक अपनी सरकार ही को कटघड़े में क्यों ला खड़ा किया?
दरअसल, सचिन पायलट इस वक्त राजस्थान में अपनी वजूद के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ सीएम अशोक गहलोत ने जिस तरह से अपना ताना-बाना बुनकर राजस्थान में योजनाओं के माध्यम से अपने वर्चस्व को जमाने की कोशिश की है, ताकि शीर्ष नेतृत्व को अपना ध्यान कैसे आकर्षित किया जाए. ये सब सोचकर सचिन पायलट ने अनशन किया. अनशन कर उन्होंने उस मुद्दे को उन्होंने सामने खड़ा किया जो कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समय घोटाले का है.
पायलट ने क्यों किया अनशन?
खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ये मामला उठाते हुए ये कहा था कि वे इसकी जांच कराएंगे, सबकुछ करेंगे. लेकिन सत्ता आने के बाद वे ये बात भूल गए. यही बात सचिन पायलट ने कही है कि उन्होंने CM गहलोत को 2 पत्र लिखे. लेकिन, पत्र लिखने के बाद जब जवाब नहीं आया तो फिर पायलट को लगा कि इस मुद्दे को सामने लाना चाहिए. क्योंकि जब चुनाव आएगा और जनता के बीच जाएंगे तो फिर जनता के सामने आखिर उन वादों को लेकर क्या जवाब देंगे? पायलट ने कहा कि इसीलिए वो चाहते हैं कि इस पर कार्रवाई हो.
अनशन खत्म करने के बाद सचिन पायलट ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि वे कांग्रेस का विघटन करना चाहते हैं या फिर कांग्रेस से नाराज हैं. उन्होंने ये कहा कि वे चाहते हैं कि उस मुद्दे को जो उन दोनों ने उठाए थे, पहली कैबिनेट की बैठक में जन घोषणापत्र को दोनों ने सरकारी दस्तावेज के तौर पर शामिल किया था, उसी की जांच कराना चाहते हैं.
सचिन पायलट महत्वाकांक्षी नेता
सचिन पायलट एक समझदार नेता हैं. ये भी बात सही है कि युवा होने के नेता उनको मिलने वाली जलेबी छीनकर अशोक गहलोत खा गए. ऐसे में दर्द तो होता है. अब आने वाला समय 2023 बहुत ज्यादा दूर नहीं है. टिकट के बंटवारे में अधिकार किसको मिले. अशोक गहलोत कहते हैं कि मुझको मिले जबकि सचिन पायलट ये कहते हैं कि उनको बरबरी का अधिकार मिले, तभी तो वे अपने साथियों और समर्थकों को अपने साथ लेकर चल पाएंगे. ऐसे में वजूद की लड़ाई ज्यादा है.
राज्य में आने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वर्सेज वसुंधरा राजे का मुद्दा नहीं बने, सचिन पायलट भी बीच में आए, इसलिए ये सारी चीजें चल रही हैं. मुझे नहीं लगता है कि सचिन पायलट के खिलाफ कुछ हो पाएगा, क्योंकि वो जिस तरह से राहुल और प्रियंका गांधी के पुराने करीबी रहे हैं. पहली बार ऐसा लग रहा है कि सीएम अशोक गहलोत को कोई चुनौती दे रहा है तो वो युवा नेता सचिन पायलट हैं. राजेश पायलट के बेटे हैं. उनकी मां भी विधायक रही हैं.
2024 चुनाव में टिकट को लेकर ये लड़ाई
2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के अधिकार को लेकर गहलोत और पायलट के बीच की ये लड़ाई कहीं ज्यादा है. ऐसा तो नहीं लगता है कि सचिन पायलट को सीएम बनाया जाएगा. लेकिन अभी भी वे प्रदेश अध्यक्ष बन सकते हैं, उसकी वजह ये है कि स्थिति इतनी खराब नहीं हुई है. एक हकीकत ये भी है कि सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है. उन्होंने सिर्फ वहीं बातें की जो सीएम अशोक की क्लिपिंग में पुरानी बातें थीं.
जहां तक सचिन पायलट के दिल्ली जाने की बात है तो उनका दिल्ली आना जाना लगा रहता है. लेकिन जहां तक बात हाईकमान के बुलाने की बात है तो ये चीज अभी कहीं से कंफर्म नहीं हो पाई है. लेकिन हां, वो दिल्ली जाते हैं तो खरगे से मिलते हैं. अब ये देखना है कि पहले 13 अप्रैल को राहुल गांधी की कोर्ट में सुनवाई है. सबसे पहले तो उनको राहुल गांधी को बरी करवा कर लाना है. हमारे यहां तक कर्नाटक के चुनाव का भी राजस्थान के चुनाव से सीधा संबंध रखता है. इसका कारण है कि हमारे व्यापारी बहुत सारे कर्नाटक में काम करते हैं. दूसरा फाइनेंस सीएम अशोक गहलोत देंगे नहीं. फिर बिना फाइनेंस को कांग्रेस कैसे चुनाव लड़ेगी?
इसके अलावा, कर्नाटक खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय खरगे अध्यक्ष का राज्य है. ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष के राज्य को बचाना या अच्छी स्थिति करना सबका ध्येय बनेगा. जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सफल बनाना है तो उनके राज्य को भी बचाना उनका ध्येय होगा. कर्नाटक के चुनाव के बाद राजस्थान पर फोकस किया जाएगा.
पायलट ने क्यों विवाद किया ताजा
दरअसल, सचिन पायलट को इस अनशन की जरुरत इसलिए भी पड़ी क्योंकि जिस तरह का उन्हें दिलासा दिया गया था, उसके बाद बजट भी आ गया, योजनाएं भी आ गईं, मुख्यमंत्री ने राहत पैकेज का भी एलान कर दिया. इसके अलावा, जयराम रमेश ने जयपुर में जो राहुल गांधी के सामने घोषणाएं की थीं, वो दिल्ली जाकर पलट भी गए और कहा कि हम तो सीएम की योजनाओं के आधार पर चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में उनको लग रहा है कि मैं बीच में रहूं या नहीं रहूं. प्रदेश अध्यक्ष का फैसला भी होना है और हाईकमान के पास प्रस्ताव लंबित है. मुझे लगता है कि ये सचिन पायलट के पक्ष में जा सकता है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]