हिंदू परिवारों में भी आखिर क्यों पैदा होना चाहिए ज्यादा बच्चे?
साल 2000 में आरएसएस का सर संघचालक बनने के बाद कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन यानी के.एस. सुदर्शन ने दिल्ली के मंडी हाउस स्थित फिक्की सभागार में हुए बड़े समारोह में एक खास बात पर बार-बार जोर दिया था, जिससे ये साफ पता लगता था कि उस वक़्त संघ की सबसे बड़ी चिंता क्या है. उस समारोह में बड़ी संख्या में महिलाएं भी मौजूद थीं, जिनकी तरफ़ हाथ जोड़ते हुए संघ प्रमुख ने अनेकों बार ये अनुरोध किया था कि "उस ईश्वर के वास्ते ही सही लेकिन अपनी फैमिली को न्यूक्लियर मत बनाइये. कम से कम तीन से चार बच्चे जरुर पैदा कीजिये अन्यथा आने वाले सालों में इस देश में ही हिंदू अल्पसंख्यक बन जायेगा." वे अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उन्होंने अपने भाषण में ऐसे कई उदाहरण देकर वहां मौजूद श्रोताओं को इस बात के लिए कन्विंस करा लिया था की वे जो बोल रहे हैं, वो कटु सत्य है और उनकी उस बात पर तालियां बजाने वालों में महिलाओं की संख्या ही अधिक थी.
22 साल पहले की इस घटना का जिक्र करना इसलिए जरुरी है कि एक तो ये कि मैं खुद उस समारोह की कवरेज के लिये वहां मौजूद था और दूसरा, ये कि संघ को अभी भी यही लगता है कि मुस्लिमों के मुकाबले हिंदुओं की आबादी उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है. पिछले कुछ सालों में मौजूदा संघ प्रमुख मोहन राव भागवत भी इसे कई बार दोहरा चुके हैं और उन्होंने दिवंगत सुदर्शन जी के उस विचार को ही आगे बढ़ाया है.
लेकिन दिवंगत संघ प्रमुख संघ सुदर्शन की वह बात पूरे देश के लिए तो नहीं लेकिन कुछेक इलाकों के लिए सच होती दिख रही है. वह इसलिये कि गुजरात में अपने समाज की घटती जनसंख्या से चिंतित जैन समुदाय ने एक अनोखा कदम उठाया है. एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के बरोई गांव में कच्छ वीजा ओसवाल जैन समुदाय की घटती जनसंख्या को रोकने के लिए 'हम दो, हमारे तीन' योजना (Hum two, our three scheme) की घोषणा की गई है.इसमें संप्रदाय के युवा जोड़ों को और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस योजना के तहत दंपति के दूसरे और तीसरे बच्चे को 10-10 लाख रुपये दिए जाएंगे.बच्चे के जन्म पर एक लाख रुपये और शेष नौ लाख रुपये उसके हर जन्मदिन पर 50,000 रुपये की किस्तों के रूप में 18 साल के होने तक दिए जाएंगे.
आज़ाद भारत के इतिहास में अपनी तरह की ये पहली अनूठी पहल ही कही जाएगी.मुंबईगरा केवीओ जैन महाजनों' (मुंबई चले गए समुदाय के लोगों का एक समूह) की ओर से शुरू किए गए इस अभियान का पैम्फलेट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.इसके मुताबिक 1 जनवरी 2023 के बाद जन्म लेने वाले हर दूसरे और तीसरे बच्चे को इस योजना का लाभ मिलेगा.बरोई केवीओ जैन समाज के सचिव अनिल केन्या ने कहा कि यह योजना केवल हमारे बरोई गांव में जैन समुदाय के लोगों के लिए है क्योंकि यहां जैन समाज अभी भी अल्पमत में है.गांव में 400 परिवार हैं, जिनके सदस्य अब मुश्किल से 1,100 से 1,200 के आसपास ही हैं.
केन्या कहते हैं कि कुछ परिवारों में केवल बुजुर्ग ही होते हैं, तो भविष्य में उनकी देखभाल कौन करेगा? अगले 50 सालों में पूरे समाज का सफाया हो सकता है.आज कई युवा जोड़े अविवाहित या नि:संतान रहना पसंद करते हैं.इसलिये हमने तय किया है कि गांव के जो दंपती समृद्ध नहीं हैं,वे भी दो-तीन बच्चे पैदा करेंगे,तो हम उनकी मदद करेंगे.
गुजरात के इस वाकये को छोड़कर अगर देश की बात करें,तो समाजशास्त्रियों के मुताबिक आबादी बढ़ने का संबंध किसी भी धर्म से नहीं है,बल्कि उस समुदाय में कितनी साक्षरता है और किस हद तक खुशहाली है और उसे परिवार कल्याण की सुविधाएं किस हद तक मिल रही है,ये सब इस पर निर्भर करता है.जाहिर है कि जिस समाज में साक्षरता की दर अधिक होगी,वहां प्रजनन दर भी कम होगी. पिछले तीन दशकों के आंकड़े बताते हैं कि अधिसंख्य हिंदू परिवारों में दो बच्चे होने के बाद पति-पत्नी आपसी सहमति से खुद ही 'रेड सिग्नल' घोषित कर देते हैं.
अब इसका विरोधाभास ये है कि जहां एक तरफ संघ हिंदू परिवारों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित कर रहा है,तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपीशासित राज्यों ने' टु चाइल्ड पॉलिसी'को लेकर कानून बना रखे हैं.हालांकि इसमें विपक्ष शासित कुछ राज्य भी हैं जिन्होंने इसकी नकल की है.लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि राज्यों में लागू हुए कानून की बारीकियों पर गौर करेंगे,तो ये एक खास समुदाय के लोगों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित करने और उन्हें चुनावी-मैदान में उतरने से रोकने का एक सुविचारित व सुनियोजित कार्यक्रम है क्योंकि इससे बहुसंख्यकों पर तो कोई खास असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे अल्पसंख्यकों की कमर जरुर टूट जाएगी.
उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की पिछली सरकार में ही इस कानून का मसौदा तैयार करने की शुरुआत हो गई थी,जिसे अब कानून की शक्ल मिल जायेगी. पिछले साल यूपी स्टेट लॉ कमिशन के चेयरमैन एएन मित्तल ने बताया था कि दो महीने के अंदर इसका मसौदा तैयार किया जाएगा लेकिन 'यह किसी भी तरह से दंडात्मक नहीं होगा लेकिन जो दंपती अपने परिवार को दो बच्चों तक सीमित रखने का फैसला नहीं लेते हैं,उन्हें सरकारी योजनाओं की सुविधा से वंचित होना पड़ेगा. फिलहाल कमीशन असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश के साथ-साथ चीन और कनाडा पर अध्ययन करेगा जहां पहले से यह नीति लागू है.'
बात करते हैं, उन राज्यों की जहां ये कानून बन चुका है. मध्य प्रदेश में पिछले दो दशक से ज्यादा वक्त से बीजेपी की सरकार है. वहां साल 2001 से ही दो बच्चों की नीति लागू है. मध्य प्रदेश के सिविल सर्विस नियमों के अनुसार, अगर तीसरा बच्चा 26 जनवरी 2001 के बाद पैदा होता है, तो वह नागरिक सरकारी नौकरी के पात्र नहीं होगा. गुजरात की बात करें,तो साल 2005 में गुजरात सरकार ने लोकल अथॉरिटी ऐक्ट में संशोधन किया था. तब नरेंद्र मोदी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.उस कानून के मुताबिक दो से अधिक बच्चे होने पर कोई भी नागरिक स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होगा.
इसी तरह राजस्थान में भी दो से ज्यादा बच्चों वाले नागरिक सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं हैं. उधर, दक्षिणी राज्य तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी यही हाल है. तेलंगाना पंचायत राज ऐक्ट 1994 के अनुसार, जिन नागरिकों के दो से अधिक बच्चे हैं, वह चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है. हालांकि उसमें एक छूट ये दी गई है कि 30 मई 1994 से पहले तीसरे बच्चे का जन्म हुआ हो तो उसे अयोग्य नहीं माना जाएगा. इसी तरह आंध्र प्रदेश पंचायत राज ऐक्ट 1994 के अनुसार, दो से अधिक बच्चे होने पर उस नागरिक को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा.इसी तरह के नियम असम, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और कर्नाटक में भी लागू हो चुके हैं. सवाल ये है कि अगर देश के 138 करोड़ लोगों की जिंदगी को हर तरीके से खुशहाल बना दिया जाये, तो फिर आबादी बढ़ाने की नौबत ही क्यों आनी चाहिए?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)