खेल के मैदान से निकलकर सियासत की सांप-सीढ़ी का लूडो खेलते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले इमरान खान के सितारे गर्दिश में आ गए हैं. देश के चुनाव आयोग ने उनकी सांसदी को अयोग्य ठहराते हुए अगले पांच साल के लिए उनके चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. बेशक पाकिस्तान के बर्ताव से हम लोग हद दर्जे की नफ़रत करते हैं लेकिन दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में कहें तो "हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन अपना पड़ोसी भला कैसे बदल सकते हैं." लिहाज़ा, इस पड़ोसी मुल्क में होने वाली किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल को लेकर हमारी भी उतनी ही दिलचस्पी होती है जितनी पाकिस्तान के अवाम की भारत में होने वाली हर घटना के पीछे का सच जानने की रहती है.
हालांकि चुनाव आयोग के इस ताजा फैसले के बाद पाकिस्तान से लेकर भारतीय मीडिया में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या अब 70 बरस के इमरान खान का राजनीतिक कैरियर पूरी तरह से खत्म हो गया है? पाक राजनीति के जानकार मानते हैं कि ऐसा नहीं हुआ है बल्कि इस फैसले ने मुल्क की सियासत को एक ऐसा टर्न दिया है जिसका सियासी फायदा उठाने के लिए अगर इमरान खान थोड़ा दिमाग लगाएं तो उनकी पार्टी और ज्यादा मजबूत बन सकती है.
ऐसे सूरत-ए-हाल में पाक में बहस-मुबाहिसा ये हो रहा है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान के पास अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए कोई विकल्प बचा भी है कि नहीं. तो इसका जवाब ये है कि उनके पास विकल्प तो कई हैं लेकिन ऐसी सियासी मुसीबत आने पर किसी भी लोकतांत्रिक देश में एक नेता सबसे पहले जिस विकल्प को आजमाता है वही रास्ता इमरान खान ने भी अपनाया है. उन्होंने सीधे सड़क पर उतरने की बजाय न्यायपालिका की शरण ली है.
इमरान खान ने शनिवार को चुनाव आयोग के फैसले को इस्लामाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देने का जो निर्णय लिया है उसे पाक राजनीति के विश्लेषक सही कदम तो मान रहे हैं लेकिन उनकी एक सोच ये भी है कि अगर पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिलती है तब उनके पास जनता की अदालत में जाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचेगा. लेकिन तब इमरान की सबसे बड़ी दिक्कत ये होगी कि वे मुल्क के अवाम को आखिर ये कैसे समझा पायेंगे कि उन्होंने पीएम पद पर रहते हुए अमानत में खयानत करने जैसा कोई जुर्म नहीं किया है.
दरअसल, प्रधानमंत्री रहने के दौरान विदेशी नेताओं द्वारा मिले उपहारों को तोशाखाना में जमा कराने के बजाए उसे बेचने के मामले में पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ECP) ने इमरान खान के खिलाफ यह फैसला सुनाया है. चुनाव आयोग के इस फैसले के तुरंत बाद उसके दफ्तर के सामने फायरिंग करने की घटना भी हुई है. इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने इमरान खान की अपील को मंजूर तो कर लिया लेकिन साथ ही ये भी कह दिया कि इस पर तत्काल सुनवाई करने की कोई जरुरत नहीं है. हाइकोर्ट इस मामले पर अब सोमवार को सुनवाई करेगा. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की ओर से अदालत में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग के पास किसी भ्रष्ट आचरण पर फैसला लेने या लोगों को अयोग्य घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है. इमरान खान ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह अंतिम निर्णय आने तक चुनाव आयोग के फैसले को निलंबित कर दे.
वैसे सियासत की कई गुगली झेल चुके इमरान खान इतने नादान खिलाड़ी भी नहीं हैं कि वे चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद डरकर बैठ जाएं. उन्होंने इस फैसले के बाद एक वीडियो संदेश जारी कर सभी आरोपों खारिज करते हुए कहा है कि वह चुनाव लड़ने की अपनी अयोग्यता को सड़क पर विरोध के माध्यम से नहीं बल्कि कोर्ट में कानूनी रूप से ही लड़ेंगे. इससे पहले शुक्रवार को इमरान ने अपने समर्थकों से इस फैसले के खिलाफ देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को वापस लेने के लिए कहा था. साथ ही उन्होंने अपने समर्थकों से पार्टी के लॉन्ग मार्च के लिए तैयार रहने का आग्रह भी किया. उन्होंने कहा, "मैंने कहा था कि मैं महीने के अंत तक एक लंबा मार्च निकालूंगा. मैं सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन करूंगा. वास्तविक स्वतंत्रता के लिए मेरा आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कानून की सर्वोच्चता स्थापित नहीं हो जाती." लेकिन कानूनी लड़ाई का आखिरी फैसला आने तक अब उन्होंने अपने इस लॉन्ग मार्च को मुल्तवी कर दिया है.
वहीं, पाकिस्तान में कोई भी विश्लेषक ये कहने की हैसियत में नहीं है कि इमरान खान का जादू खत्म हो गया है या फिर उनकी लोकप्रियता में कमी आई है. इसका ताजा सबूत ये है कि बीते हफ्ते ही वहां नेशनल असेम्बली यानी संसद और पंजाब सूबे की विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे. इनमें मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) और इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ( PTI) के बीच था. लेकिन हैरानी की बात ये है कि संसद और प्रांतीय विधानसभा की 11 सीटों पर हुए उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीटों पर इमरान की पार्टी ने ही जीत दर्ज की है.
पाकिस्तान निर्वाचन आयोग (ईसीपी) के मुताबिक, संसद (नेशनल असेम्बली) की आठ और पंजाब प्रांत की विधानसभा की तीन सीट पर उप चुनाव हुआ था. इमरान की पार्टी ने संसद की सात सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से छह पर उसे जीत मिली. संसद की छह सीट के अलावा पीटीआई ने पंजाब विधानसभा की दो सीटों पर भी जीत दर्ज की. इससे पंजाब सूबे में इमरान की पार्टी के मुख्यमंत्री चौधरी परवेज इलाही की स्थिति और ज्यादा मजबूत हो गई है. कहा जा रहा है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव अपनी लोकप्रियता को परखने का एक मौका था. लेकिन इसमें इमरान की पार्टी अवाम की उम्मीदों पर खरी उतरी है. लिहाजा, ये कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव आयोग के इस फैसले से इमरान खान को अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए एक कारगर औजार मिल गया है. देखना ये है कि वे इसका इस्तेमाल कितनी चतुराई से करते हैं?
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