पिछले तकरीबन दो महीने से देश के अलग-अलग हिस्सों में साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं में अचानक इजाफ़ा हुआ है. इन हिंसक घटनाओं पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि जिन राज्यों में इस साल या अगले साल चुनाव होने वाले हैं, वहां साम्प्रदायिक तनाव भड़कने की हिंसक घटनाएं ज्यादा हो रही हैं. इसका राजनीतिक फायदा किसे होगा, ये तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे, लेकिन ऐसी घटनाओं में जान-माल का नुकसान तो बेगुनाह आम आदमी का ही हो रहा है.


ख़तरा ये है कि इसके जरिये अल्पसंख्यक समुदाय में डर का माहौल बनाने की जो प्रवृत्ति उभर रही है, भविष्य में उसके नतीजे और भी ज्यादा नुकसानदायक हो सकते हैं. यही वजह है कि राजस्थान में भड़के साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं पर संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी चिंता जताई है. याद होगा कि मुस्लिम लड़कियों के हिज़ाब पहनने का विरोध करने के बहाने साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की शुरुआत कर्नाटक से हुई, जहां अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होने हैं. धीरे-धीरे तनाव की ये आग उन राज्यों में भी फैलने लगी, जहां साल भर के भीतर चुनाव हैं. हिंसा का स्वरूप बदल गया, लेकिन मकसद वही था कि दो समुदायों के बीच नफ़रत को और कैसे बढ़ाया जाए.


राजस्थान और मध्यप्रदेश में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं. एमपी में बीजेपी की सरकार है तो राजस्थान में कांग्रेस की और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की, लेकिन इन तीनों राज्यों में हिंसा का पैटर्न लगभग एक जैसा ही रहा. एमपी के खरगोन में भड़के तनाव को लेकर आरोप लगाया गया कि शोभा यात्रा पर कथित रुप से एक मस्जिद की छत से पथराव किया गया. राजस्थान के करौली में हुई हिंसा की भी यही वजह बताई गई.


राजस्थान में हिंसा का ये दौर अभी थमा नहीं है. करौली के बाद अलवर, फिर जोधपुर और बुधवार की रात भीलवाड़ा में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की एक जैसी घटनाएं होना किसी सुनियोजित साजिश की तरफ इशारा करती है. इधर, दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान जयंती पर निकले जुलुस पर भी मस्जिद से पथराव होने का ही आरोप है. दिल्ली में भी नगर निगम के चुनाव जल्द होने हैं. यानी तनाव की हर घटना की शुरुआत करने का इल्जाम मुस्लिम समुदाय पर ही है, लेकिन ये समझ से परे है कि क्या मुसलमान इतना नासमझ और मूर्ख है कि अल्पसंख्यक होने के बावजूद वो बहुसंख्यक समुदाय से लड़ाई मोल लेकर खुद अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारेगा?


गुजरात की बात करें तो वहां इस साल के अंत में ही विधानसभा चुनाव हैं. क्या आप सोच सकते हैं कि एक मामूली सड़क दुर्घटना भी साम्प्रदायिक दंगे का रुप ले सकती है. गुजरात के वडोदरा शहर में बीती 18 अप्रैल को यही हुआ, जब सांप्रदायिक तनाव इतना फैल गया कि दोनों समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे पर जमकर पथराव करने के साथ ही एक पूजा स्थल तथा वाहनों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया.


उधर, मुंबई में राज ठाकरे ने लाउड स्पीकर के बहाने अजान और हनुमान चालीसा बजाने का जो विवाद छेड़ा है, उसके पीछे भी चुनाव ही बड़ी वजह है. वहां अगले कुछ महीने में मुम्बई महानगर पालिका और ठाणे की कारपोरेशन के चुनाव होने हैं. मुंबई महानगर पालिका पर फिलहाल शिव सेना का कब्ज़ा है. राज ठाकरे को लगता है कि इस मुद्दे के बहाने उनकी पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना को भी कुछ सीटें हाथ लग सकती हैं और वे बीजेपी के साथ मिलकर महानगरपालिका की सत्ता पर कब्ज़ा कर सकते हैं.


कहावत है कि जंग और सियासत में सब जायज़ है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए नफ़रत फैलाने की ये सियासत देश को जिस खतरनाक मुकाम की तरफ ले जा रही है, फिलहाल उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)