किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की केंद्र सरकार से मांग करना बेशक गलत नहीं है लेकिन राहुल गांधी ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जिस तरह से ये मसला उठाया है,उससे सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है? मुख्य विपक्षी दल होने के नाते जनहित से जुड़े किसी मुद्दे पर राजनीति करना कांग्रेस का अधिकार भी बनता है लेकिन बेगुनाह लोगों की मौत जैसे बेहद संवेदनशील मामले पर अपनी सियासी रोटियां सेंकने को क्या जायज़ ठहराया जा सकता है?


कहते हैं कि राजनीति का पहला उसूल ही ये है कि किसी भी मौके को अपने पक्ष में भुनाते हुए उसका फायदा कैसे उठाया जा सके,उसे ध्यान में रखते हुए ही आगे की रणनीति बनाई जाती है.पंजाब व यूपी समेत पांच राज्यों के चुनावों से पहले सरकार द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद इन दोनों प्रदेशों के किसानों की नाराजगी बीजेपी के प्रति कुछ कम हुई है.लिहाज़ा, काँग्रेस को ये अपने लिए खतरे की घंटी बनती दिख रही है.


कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को यही आस थी कि विधानसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेगी और वे किसान आंदोलन की बैसाखी के सहारे सत्ता की दहलीज तक आसानी से पहुंच जाएंगे.लेकिन पीएम मोदी ने अपना  मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए विपक्षी दलों की उम्मीदों को काफी हद तक धो डाला है.चूंकि किसानों के इस आंदोलन का मुख्य असर पंजाब और यूपी के चुनाव पर ही पड़ना था लेकिन कानूनों की वापसी के बाद किसान संगठत आपस में बंट चुके हैं और उनका एक बड़ा तबका ये मानता है कि अब सरकार को कोसने का कोई मतलब नहीं रह गया है.इसलिये कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी को भी यही लगता है कि एक सुनहरा मौका उसके हाथ में आते-आते छूट गया है.


लेकिन कांग्रेस को लगता है कि किसानों का मुद्दा जिंदा रखकर ही वह पंजाब में अपना किला ढहने से बचा सकती है और यूपी में भी कुछ हद तक अपनी जमीन मजबूत कर सकती है.लिहाज़ा,उसी सियासी रणनीति को ध्यान में रखकर ही शुक्रवार को राहुल गांधी ने पार्टी मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस करके मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग उठाई है,ताकि चुनावों तक ये मुद्दा गरमाता रहे.


हालांकि राहुल ने मोदी सरकार को इस बात के लिए भी घेरा है कि वह आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों का आंकड़ा जानबूझकर छुपा रही है.उनका ये आरोप लगाने की वजह भी है.दरअसल,पिछले दिनों ही संसद में ये सवाल पूछा गया था कि क्या सरकार आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवज़ा देगी ? तो कृषि मंत्रालय की तरफ से जवाब दिया गया था कि सरकार के पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए यह कोई सवाल ही नहीं बनता.इसीलिये सरकार पर हमलावर होते हुए राहुल ने कहा कि कितने किसानों की इस आंदोलन में मौत हुई है, सरकार के पास इसका कोई डेटा नहीं है.अगर सरकार के पास नहीं है तो हमारे पास है, हम दे देते हैं. राहुल ने दावा किया है कि 500 लोगों के नाम तो उनके पास है, जिन्हें पंजाब सरकार ने मुआवज़ा और नौकरी भी दी है.


राहुल गांधी के मुताबिक उनके पास ऐसे 403 लोगों की लिस्ट है, जिन्हें पंजाब सरकार ने 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया है और 152 लोगों को नौकरी दी है.इसके अलावा अन्य 100 ऐसे किसानों के नाम,पते, नंबर आदि हैं, जो अन्य राज्यों से हैं. तीसरी ऐसी लिस्ट है, जो सार्वजनिक सूचना में हैं और जिन्हें आसानी से वेरिफाई किया जा सकता है. लेकिन सरकार कहती है कि ऐसी कोई सूची है ही नहीं.पर,सोचने वाली बात ये है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने तो मुआवजा या नौकरी इसलिये दी है क्योंकि वह तो किसान आंदोलन का समर्थन कर रही थी.उसका मकसद तो किसानों को आगे रखकर केंद्र से अपनी सियासी लड़ाई का हिसाब चुकता करना था.


हालांकि मानवीय आधार पर राज्य सरकार की तरफ से दी गई इस सहायता की तारीफ़ ही करनी होगी लेकिन सवाल उठता है कि केंद्र सरकार आखिर किस मुंह से उन्हें मुआवजा देगी,जो उसके खिलाफ ही लड़ने आये थे.


इससे पहले राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा था, 'जब प्रधानमंत्री ने कृषि-विरोधी क़ानून बनाने के लिए माफ़ी मांग ली तो वह संसद में यह भी बतायें कि प्रायश्चित कैसे करेंगे- लखीमपुर मामले के मंत्री की बर्खास्तगी कब? शहीद किसानों को मुआवज़ा कितना-कब? सत्याग्रहियों के ख़िलाफ़ झूठे केस वापस कब? एमएसपी पर क़ानून कब? इसके बिना माफ़ी अधूरी!'


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