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दुनिया पर धौंस जमाने वाले "महारथी" से क्यों नहीं कंट्रोल हो रहा अपना 'गन कल्चर'?

हमारे देश में मज़हबी कट्टरता के चलते एक-दूसरे समुदाय पर जमकर जुबानी निशाने साधे जा रहे हैं. इन्हें बर्दाश्त करने में शायद किसी को उतना हर्ज़ भी नहीं है, लेकिन जरा सोचिए कि दुनिया (World) के सबसे ताकतवर मुल्क कहलाने वाले अमेरिका (US) में हथियार (Weapon) रखने को लेकर जो कानून है. वही अगर हमारे देश में भी होता तो आज देश के क्या हालात होते. वहां तो अपनी सनकपन के चलते हर कोई गोली चलाने में देर नही करता, लेकिन हमारे यहां तो मज़हब के नाम पर ही हर रोज़ पता नहीं कितने बेगुनाह लोगों की लाशों को सड़कों पर देखना पड़ता. बहुत अच्छा है कि हमने इन 75 सालों में ऐसे वहशी क़ानून को नही अपनाया और न ही हमें इसे कभी भी अपनाने की कोई जरूरत भी होनी चाहिये.

अमेरिका में पिछले एक साल में गोलीबारी की जो वारदातें हुई हैं, उसे "गन कल्चर (Gun Culture) " का नाम दिया गया है और इससे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) समेत उनकी सरकार बुरी तरह से हिल गई है कि आखिर ये हो क्या रहा है. जानने वाली बात ये है कि गोलीबारी की ऐसी ज्यादा घटनाएं वहां के स्कूलों (Schools) में ही हो रही है. इसलिए सवाल उठता है कि स्कूल में पढ़ने जाने वाले बच्चे अपने बैग में अत्याधुनिक रिवॉल्वर (Revolver) कैसे ले जा रहे हैं और उन्हें कोई रोकता क्यों नहीं है?

इसकी एक बड़ी वजह वो कानून है,जिसे बदलने के लिए जो बाइडेन भी फिलहाल तो असहाय ही नज़र आ रहे हैं. आप ये जानकर हैरान होंगे कि अमेरिका में  21 साल की उम्र से पहले शराब खरीदना -बेचना गैरकानूनी है लेकिन 18 साल की उम्र होते ही बंदूक और राइफल खरीदने की छूट है. यहां तक कि मिलिट्री यानी सेना में इस्तेमाल होने वाली राइफल खरीदने को रोकने के लिए भी वहां कोई ठोस कानून नहीं है.

अमेरिकी मनोविश्लेषक मानते हैं कि इस छूट के चलते ही यहां के युवा मनमाने ढंग से इन खतरनाक हथियारों को न सिर्फ आसानी से खरीदते हैं, बल्कि बाद में अपनी निजी दुश्मनी का बदला लेने के लिए वे इसे बैखौफ होकर इस्तेमाल भी करते हैं. कुछ मामलों में ये भी देखा गया है कि मानसिक अवसाद के चलते किसी एक शख्स ने ही अपने हथियार से कई लोगों की जान भी ले ली.

अमेरिका के अलग-अलग प्रान्तों में हुई अंधाधुंध फायरिंग में कई निर्दोष स्कूली बच्चों की मौत के बाद वहां ये बहस छिड़ गई है कि इस पर काबू पाने का तरीका आखिर क्या है. सब जानते हैं कि अमेरिका में 'बंदूक लॉबी'  इतनी ताकतवर है,जो वहां की सरकार को अपने मुताबिक प्रभावित रखने की ताकत रखती है. हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बंदूक लॉबी पर अपना गुस्‍सा निकालते हुए यही कहा है कि इस लॉबी के खिलाफ सख्‍त फैसला लेने का वक्‍त आ गया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि बाइडेन ये फैसला लेने की हिम्मत आखिर कब जुटाएंगे?

पिछले दो एक सालों में वहां फायरिंग की वारदातें बढ़ने एक बड़ी वजह ये भी है कि दुनिया में अकेला अमेरिका ही ऐसा देश है, जहां गन खरीदना सबसे आसान है. जानकार कहते हैं कि अमेरिका में ‘गन लॉबी’ बहुत ताकतवर है, जिसने इसे देश की संस्कृति का हिस्सा बना दिया है. बताते हैं कि नेशनल राइफल एसोसिएशन अमेरिका में सबसे ताकतवर गन लाबी है, जो वहां के संसद सदस्‍यों को प्रभावित करने और उन्हें अपने मनमाफिक फैसले करवाने के लिए उन पर पानी की तरह से डॉलर बहाती है. यह लाबी गन कल्‍चर (Gun Culture) को खत्‍म करने के लिए प्रस्‍तावित दूसरे संविधान संशोधन में बदलावों का विरोध करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देती है और चाहते हुए भी सरकार को अपने लाए प्रस्ताव पर सीनेट में हार का मुंह देखना पड़ता आया है. इसी गन कल्‍चर के चलते अमेरिका में हत्‍याओं के मामलों में अचानक बेतहाशा से बढ़ोतरी हुई है.

ये जानकर हैरानी होना स्वाभाविक है कि अमेरिका जैसा ताकतवर मुल्क 231 साल बाद भी अपने यहां का एक कानून तक नहीं बदल पाया. पाया. दरअसल, साल 1783 में अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी मिली थी. उसके बाद 1793 में अमेरिका ने अपना संविधान बनाया और उसी के तहत लोगों को हथियार रखने का कानूनी अधिकार मिला. शायद ये जानकर लोगों को थोड़ा ताज्जुब भी होगा कि जिस तरह से हम अपने देश भारत में आसानी से मोबाइल और सिम खरीदते हैं, ठीक उसी तरह अमेरिका में लोग हथियार खरीद लेते हैं और हमारे यहां की तरह उसका लाइसेंस हासिल करने के लिए कोई झंझटबाजी भी नहीं झेलनी होती. इसलिए कि 18 साल की उम्र पार करते ही वहां का कानून अपनी रक्षा के लिए हथियार खरीदने का हक़ देता है और कोई भी हथियार विक्रेता उससे इनकार नहीं कर सकता, वरना वो खुद ही कानूनी लपेटे में आ जाएगा.

कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक इस गन कल्‍चर से सिर्फ हत्याएं ही नहीं बल्कि आत्महत्या के मामलों में भी इतना इज़ाफ़ा हुआ है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सीडीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में अमेरिका में अपने ही हथियार से 23 हजार से ज्‍यादा लोगों ने आत्‍महत्‍या की थी. दुनिया से अगर इसकी तुलना करें, तो अपने ही हथियार से आत्महत्या करने वाले कुल मामलों का ये 44 फ़ीसदी था, जो बेहद चौंकाने वाला है.

सवाल उठता है कि अमेरिका अपने इस गन कल्‍चर को रोकने में आखिर नाकाम साबित क्यों हो रहा है? तो इसका जवाब वहां के राजनीतिक इतिहास के पन्नों को पलटने से मिलता है.पहले देश की कमान संभाल चुके कई राष्‍ट्रपति और विभिन्न राज्‍यों के गवर्नर तक इस संस्‍कृति को बनाए रखने की खुलकर वकालत करते रहे हैं. इनमें पूर्व राष्‍ट्रपति थियोडेर रूजवेल्ट से लेकर फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट, जिमी कार्टर, जार्ज बुश सीनियर, जार्ज डब्ल्यू बुश और डोनाल्ड ट्रंप तक इस गन कल्चर की ये कहते हुए तरफदारी करते रहे हैं कि ये लोगों का संवैधानिक अधिकार है, जिसे इतनी आसानी से नहीं छीना जा सकता है.

सच तो ये है कि वहां की सरकारों के इसी आश्रय के चलते अमेरिका में गन लाबी इतनी मजबूत होती चली गई कि इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया में 46 फीसदी सिविलियन बंदूकें अकेले अमेरिका के पास है. मतलब ये कि नागरिकों के बंदूक रखने के मामले में अमेरिका दुनिया में अव्वल नंबर पर है. तीन साल पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में मौजूदा कुल 85.7 करोड़ सिविलियन गन यानी बंदूकों में से अकेले अमेरिका में ही 39.3 करोड़ सिविलियन बंदूक मौजूद हैं. जबकि दुनिया की आबादी में अमेरिका का हिस्‍सा महज़ पांच फीसदी है, लेकिन वहां के 46 फीसदी लोगों के पास अपने हथियार हैं.

इसी गन कल्चर के चलते पिछले कुछ महीनों में वहां सामूहिक हत्याओं की दर्जनों घटनाएं हुई हैं. लेकिन इस बारे में पिछले दिनों अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जो फैसला दिया है, वो हैरान करने वाला है. अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर के बाहर गन लेकर चलना लोगों का संवैधानिक अधिकार है और किसी भी कानून से इसे सीमित नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि घर के बाहर सड़कों या अन्य सार्वजनिक जगहों (Public Places) पर हथियार लेकर चलना लोगों का संवैधानिक अधिकार (Constitutional Right) है और अगर सरकार इस अधिकार को नियंत्रित करने की कोशिश करती है, तो यह संविधान के 14वें संशोधन का उल्लंघन होगा. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने न्यूयॉर्क (New York) प्रांत की ओर से गन कल्चर को कंट्रोल करने के लिए बनाए गए एक नए कानून को भी रद्द कर दिया.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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